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    देवदार व चीड़ की लकड़ियों की मशाल लेकर की गांव की परिक्रमा, ढोल-नगाड़ों की थाप पर मनाई बूढ़ी दिवाली

    By Jagran NewsEdited By: Virender Kumar
    Updated: Thu, 24 Nov 2022 02:09 PM (IST)

    Old Diwali in Karsog देवभूमि हिमाचल में जिला मंडी के तहत अनूठी संस्कृति और रीति रिवाजों के लिए विख्यात करसोग में बूढ़ी दिवाली पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। मशालें जलाकर और ढोल नगाड़ों की थाप पर नृत्य करते हुए गांव की परिक्रमा कर दशकों पुरानी लोक परंपरा को निभाया।

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    ढोल-नगाड़ों की थाप पर मनाई बूढ़ी दिवाली।

    करसोग, कुलभूषण वर्मा। Old Diwali in Karsog, देवभूमि हिमाचल में जिला मंडी के तहत अनूठी संस्कृति और रीति रिवाजों के लिए विख्यात करसोग में बूढ़ी दिवाली पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। यहां बुधवार की आधी रात को ग्रामीण क्षेत्रों च्वासी क्षेत्र के महोग, खन्योल च्वासी मंदिर व कांडी कौजौन ममलेश्वर महादेव देव थनाली मंदिर में लोगों ने देवदार और चीड़ की लकड़ियों की मशालें जलाकर रोशनी की और फिर ढोल नगाड़ों की थाप पर नृत्य करते हुए गांव की परिक्रमा कर दशकों पुरानी लोक परंपरा को निभाया। शाम के समय देव थनाली नाग माहूं बनेछ के नृत्य के साथ बूढ़ी दिवाली मानने का पर्व शुरू हुआ और हाथों में मशालें लेकर गांव की परिक्रमा पूर्ण करने के बाद वीरवार तड़के लोगों के वापस मंदिर में लौटने पर लोक नृत्य के साथ पर्व संपन्न हुआ। ममलेश्वर महादेव मंदिर देव थनाली के कारदार युवराज ठाकुर ने बताया कि गांव में अन्न-धन और सुख समृद्धि की कामना के लिए दिन के समय मंदिर में भंडारे का भी आयोजन रखा गया है।

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    देव गुरों ने खेलते हुए बावड़ी में छलांग लगाकर किया स्नान

    बूढ़ी दिवाली के उपलक्ष्य में कांडी कौजौन ममलेश्वर महादेव देव थनाली मंदिर में रात को भंडारे के बाद गुरों में देवता आने बाद खेलते हुए करीब 10 फीट गहरी बावड़ी में छलांग लगाकर कड़ाके की सर्दी में ठंडे पानी में स्नान किया। इसके बाद जयकारों के साथ आधी रात को करीब एक बजे ग्रामीणों ने दरेछ (मशालें) जलाकर गांव की परिक्रमा की और सुबह करीब चार बजे वापस मंदिर में लौट आए। इस दौरान लोगों ने गांव में खुशहाली और शांति बनाए रखने के लिए देवता से आशीर्वाद लिया।

    इसलिए मनाई जाती है बूढ़ी दिवाली

    मान्यता है कि भगवान राम जब 14 वर्ष बाद लंका पर विजय प्राप्त करके दिवाली के दिन वापस अयोध्या पहुंचे थे तो लोगों को इसकी जानकारी एक महीने बाद मिली दी। इस कारण करसोग के कई ग्रामीण इलाकों में दिवाली के एक महीने बाद बूढ़ी दिवाली मनाने की परंपरा है।

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