Kargil War में टांग और बाजू गंवाई, बुलंद हौसले से जीती जिंदगी की लड़ाई; पढ़ें 13 जैक राइफल के मुनीलाल की कहानी
Kargil War Stories मुनीलाल बताते हैं कि टांग व बाजू में प्लेट होने के कारण वह 100 प्रतिशत दिव्यांग हैं लेकिन कारगिल युद्ध उनके लिए गर्व का विषय है। 1989 में वह सेना में भर्ती हुए थे। जब कारगिल युद्ध छिड़ा तो उनको द्रास सेक्टर की एफ-40 की पहाड़ी को फतेह करना था। इस दौरान ही उन पर बम का गोला गिरा और वह घायल हो गए।

मंडी, मुकेश मेहरा। Kargil Vijay Diwas कारगिल युद्ध की जीत हर भारतीय के लिए गर्व का एहसास दिलाती है लेकिन इस जीत की दहलीज तक ले जाने वाले जवानों ने हिम्मत और हौसलों से जिंदगी की जंग भी जीती। ऐसे ही एक जवान हैं मंडी जिला के कोटली के रहने वाले 13 जैक राइफल से सेवानिवृत हुए हवलदार मुनीलाल।
द्रास सेक्टर में मुनीलाल के पास बम का गोला गिरा और इनकी एक बाजू और टांग का मांस व हड्डी पूरी तरह से अलग हो गए। एक साल तक बिस्तर में दर्द सहने के बावजूद मुनीलाल ने हौसला नहीं हारा और आज कोटली में पेट्रोल पंप चलाकर छह लोगों को रोजगार दिया है। साथ ही वह लोगों की मदद भी करते हैं।
द्रास सेक्टर की एफ-40 पहाड़ी को फतेह करने का था मिशन
55 वर्षीय मुनीलाल बताते हैं कि टांग व बाजू में प्लेट होने के कारण वह 100 प्रतिशत दिव्यांग हैं, लेकिन कारगिल युद्ध उनके लिए गर्व का विषय है। 1989 में वह सेना में भर्ती हुए थे। जब कारगिल युद्ध छिड़ा तो उनको द्रास सेक्टर की एफ-40 की पहाड़ी को फतेह करना था। इस दौरान ही उन पर बम का गोला गिरा और वह घायल हो गए। उनकी एक टांग व बाजू का मांस व हड्डी पूरी तरह से खत्म थे। साथी उठाकर लाए और आंखें अस्पताल में ही खुली।
मुनीलाल श्रीनगर अस्पताल में छह महीने रहे और वहां पर उनको प्लेटें डाली गईं। वह पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर थे। दो नर्स हमेशा उनकी देखरेख में रहती थीं। इन छह महीनों में परिवार भी उनके साथ नहीं था। श्रीनगर अस्पताल में छह महीने दाखिल रहने के बाद चंडीगढ़ आए और यहां पत्नी दया कौशल भी आ गईं। नर्स व पत्नी ने ही देखरेख की।
'बैसाखी भी नहीं ले सकता था'
मुनीलाल ने कहा, "एक साल बाद बिस्तर से उठने के लायक हुआ। टांग व बाजू दोन दोनों चोटिल होने से बैसाखी भी नहीं ले सकता था। पत्नी सहारा देती थी। चलने के लायक हुआ तो सेना मुख्यालय में तैनाती दी गई, लेकिन अधिक काम न कर पाने के कारण कुछ समय बाद वह सेवानिवृत हो गए।"
उन्होंने कहा कि सेना से वापस आने के बाद कोटली में ही पेट्रोल पंप खोला। यहां छह लोग काम करते हैं। उन्होंने कहा, "अभी आराम से चल फिर सकता हूं। साथ ही अगर कोई जरूरतमंद आए तो उसकी मदद कर दिया करता हूं। बेशक वो साल मेरा दर्द भरा था, लेकिन कारगिल युद्ध की जीत इस दर्द से कहीं आगे हैं। गर्व होता है जब हमें कोई कहता है कि हम कारगिल युद्ध लड़कर आए हैं।"
पीठ पर लगे थे बम के छर्रे, मगर नहीं हारी हिम्मत
मुनीलाल की ही तरह 13 जैक राइफल में तैनात जोगेंद्रनगर के यशपाल की पीठ पर बम के छर्रे लगे थे। यशपाल बताते हैं कि बम से चोटिल होने के बाद उनको श्रीनगर अस्पताल ले जाया गया, दो महीने वहां दाखिल रहे और उसके बाद तीन महीने पालमपुर अस्पताल में। पीठ में अधिक जख्म होने के कारण झुकने में दिक्कत होती है, लेकिन कारगिल युद्ध में शामिल रहे इसका गर्व इस दर्द को भूला देता है।
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