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    IIT मंडी के शोधार्थियों ने AI आधारित एल्गोरिदम किया तैयार, पुलों और भवनों की उम्र का लगेगा सटीक अंदाजा

    By hans raj sainiEdited By: Deepak Saxena
    Updated: Wed, 13 Sep 2023 05:26 PM (IST)

    आईआईटी मंडी (IIT Mandi) के शोधार्थियों ने एआई (AI Based) आधारित एक एल्गोरिदम को तैयार किया है जिससे पुल और भवनों की सटीक उम्र का पता लग सकेगा। इसके साथ ही पुलों (Bridge) और भवनों के जीवनकाल (Age of Buildings) और उपलब्धता के बारे में भी पता चल सकेगा। इस तकनीक की मदद से संभावित खतरे से पहले भी निपटा जा सकेगा।

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    AI आधारित एल्गोरिदम की मदद से भवनों और पुलों की सटीक उम्र का लगेगा पता।

    मंडी, जागरण संवाददाता: देश के नए पुराने पुल, रोप-वे, बहुमंजिला भवन, एयरोस्पेस संरचना और ट्रांसमिशन टावर कितने सुरक्षित हैं। इसका सटीक पूर्वानुमान लगाना अब संभव होगा। संभावित खतरे की सूचना समय पर मिलने से जानमाल के नुकसान को कम किया जा सकेगा।।

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    भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मंडी के शोधार्थियों ने पुलों और अन्य संरचनात्मक ढांचे का मूल्यांकन करने के लिए रियल टाइम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित एल्गोरिदम विकसित किया है। यह तकनीक संरचनात्मक स्थिति निगरानी दृष्टिकोण डीप लर्निंग और आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क पर आधारित है। मानव हस्तक्षेप के बिना एप्लीकेशन के माध्यम से पुलों और अन्य संरचनाओं की संरचनात्मक क्षति की पहचान होगी। फ्रांस का आईएनआरआईए संस्थान इसमें सहयोग कर रहा है।

    भारी सड़क यातायात से समस्या और बढ़ी

    देश के बुनियादी ढांचे में पुलों की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह संरचनाएं तापमान में परिवर्तन, पानी और हवा जैसे पर्यावरणीय कारकों के कारण प्राकृतिक रूप से पुरानी हो जाती हैं। भारी सड़क यातायात से समस्या और बढ़ी है। परंपरागत रूप से पुल की स्थिति का आंकलन दृश्य निरीक्षण के माध्यम से किया जाता रहा है।

    विशेषज्ञों ने इस पद्धति को अपर्याप्त माना है। यह सभी संरचनात्मक मुद्दों का पता लगाने में असफल रहता है। इसके साथ ही ये अधिक समय लेने वाली प्रक्रिया है। इसमें कई तस्वीरों का मैन्युअल विश्लेषण होता है।

    आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से खुली निगरानी की बड़ी संभावना

    इंस्ट्रुमेंटेशन, डेटा विश्लेषण और डीप लर्निंग जैसी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने पुलों और अन्य संरचनाओं के संरचनात्मक स्थिति की निगरानी के लिए बड़ी संभावनाएं खोल दी हैं। यह प्रौद्योगिकी समय के साथ दोषों की पहचान करने, मापने, समझने और इससे संबंध में भविष्यवाणी को आसान बनाएगी। नवीनीकरण या मरम्मत कार्य के लिए अधिक प्रभावी योजना बनाने में लोगों और इंजीनियर की मदद करेगी। इससे रखरखाव लागत भी कम होगी। पुलों के जीवनकाल की और उपलब्धता बढ़ेगी। पर्यावरणीय गतिविधियों का विश्लेषण होने से संरचनात्मक क्षति की पहचान होगी।

    तकनीक में बुनियादी ढांचे के जोखिम को कम करने की क्षमता

    आईआईटी मंडी के एसोसिएट प्रोफेसर डा.सुभमोय सेन का कहना है कि एक पुल की स्थिति का अनुमान लगाने पर उसके बचे उपयोगी जीवन की भविष्यवाणी करने के लिए मशीन लर्निंग, एआई और बायेसियन सांख्यिकीय अनुमान जैसा डेटा के संचालित तरीकों को तैयार किया है। इसमें परिचालन और प्रतिकूल लोडिंग स्थिति के तहत बुनियादी ढांचे के जोखिम को कम करने की क्षमता है। विशेष रूप से हिमाचल में प्रीस्ट्रेस्ड कंक्रीट और केबल आधारित पुलों में तापमान के उतार-चढ़ाव से पुल की गतिशील क्षमता बहुत प्रभावित होती हैं।

    क्षतिग्रस्त पुल पर एल्गोरिदम की क्षमताओं का आंकलन

    आईआईटी मंडी के शोधार्थियों ने क्षति का पता लगाने में एल्गोरिदम की क्षमता का आंकलन करने के लिए इसका परीक्षण एक क्षतिग्रस्त पुल पर किया। इसके बाद क्षति के स्थान को इंगित करने में एल्गोरिदम की सटीकता का मूल्यांकन करने के लिए जानबूझकर कंप्यूटर मॉडल में क्षति को इंगित किया। जिसके बाद इस परीक्षण के माध्यम से संरचात्मक क्षति की पहचान करने में एल्गोरिदम की प्रभावशीलता की पुष्टि हुई।

    कई बुनियादी ढांचों का मूल्यांकन करने में सक्षम

    एक अन्य अध्ययन में विभिन्न संरचनात्मक घटकों की स्थिति का अनुमान लगाने के लिए उनके कनेक्शन के प्रत्यक्ष माप की आवश्यकता के बिना उन्नत फिल्टरिंग तकनीकों का उपयोग किया। यह तकनीक प्रत्येक घटक की स्थिति का अलग-अलग मूल्यांकन करने में सक्षम है। यह तकनीक केवल पुलों तक ही सीमित नहीं है। इसका उपयोग रोपवे, ऊंचे भवनों, एयरोस्पेस संरचनाओं, ट्रांसमिशन टावरों और समय पर स्थिति मूल्यांकन और सुरक्षा उपायों की आवश्यकता वाले विभिन्न बुनियादी ढांचों जैसी संरचनाओं में भी किया जा सकता है।

    शोध मैकेनिकल सिस्टम्स एंड सिग्नल प्रोसेसिंग, न्यूरल कंप्यूटिंग एंड एप्लीकेशन जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इस शोध पर स्कूल ऑफ सिविल एंड एनवायर्नमेंटल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुभमोय सेन और उनके शोधार्थी डॉ. स्मृति शर्मा, ईश्वर कुंचम, नेहा असवाल और फ्रांस के आईएनआरआईए रेनेस के डा.लारेंट मेवेल ने काम किया है।

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