2012 की भूख ने दी नई दिशा, हजारों की थाली में परोस रहे प्रेम; बेहद प्रेरणादायक है श्रीराम राणा की कहानी
वर्ष 2012 में कमरुनाग यात्रा के दौरान श्रीराम राणा ने यात्रियों को भूख से तड़पते देखा। इस अनुभव ने उन्हें लंगर सेवा शुरू करने की प्रेरणा दी। उन्होंने शिव शरण लंगर समिति की स्थापना की और रोहांडा रैहनगलु और हेलीपैड में लंगर सेवा शुरू की। आपदाग्रस्त थुनाग में भी वे 5 जुलाई से लंगर चला रहे हैं जहाँ हर दिन 3000 से अधिक प्रभावितों को भोजन परोसा जा रहा है।

जागरण संवाददाता, जंजैहली (मंडी)। कभी-कभी जीवन में एक दर्दभरा अनुभव ऐसी राह दिखा जाता है, जो खुद को ही नहीं, समाज के सैकड़ों-हज़ारों लोगों की ज़िंदगी बदल देता है। वर्ष 2012 की कमरुनाग यात्रा में बिलासपुर जिले के घुमारवीं के श्रीराम राणा ने जब खुद और दूसरों को भूखा तड़पते देखा, तो उस भूख ने उनके भीतर करुणा की जो चिंगारी जगाई, वह आज लंगर सेवा की एक प्रेरणादायक ज्योति बन चुकी है।
बात वर्ष 2012 की बात है। सरानाहुली मेले में आस्था और श्रद्धा से लबरेज़ कमरुनाग यात्रा अपने चरम पर थी। सैकड़ों श्रद्धालु पैदल रोहांडा से होते हुए कमरुनाग के दर्शन को निकले थे। उन्हीं में से एक थे श्रीराम राणा, जो पहली बार सरानाहुली मेले में भाग लेने आए थे।
श्रीराम राणा के साथ कुछ बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे भी थे। चढ़ाई कठिन थी, रास्ता लंबा और ऊबड़-खाबड़। जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया, शरीर की थकान और पेट की भूख दोनों एक साथ हावी होने लगे। लोगों ने कुछ किलोमीटर बिना पानी और बिना भोजन के तय किए। कहीं कोई दुकान नहीं, न कोई लंगर।
शाम होते-होते कई बुजुर्ग लड़खड़ाने लगे, महिलाएं बैठ गईं और बच्चे रोने लगे। तब श्रीराम राणा ने एक पेड़ की छांव में बैठकर अपनी आंखों से इस पीड़ा को देखा। वहीं, उसी क्षण उन्होंने मन में एक संकल्प लिया। अगर भगवान ने शक्ति दी, तो अगले साल से इस राह में कोई भूखा नहीं रहेगा। वहीं से शुरू हुई शिव शरण लंगर समिति की यात्रा।
अगले साल से राणा ने अपने प्रयासों से तीन स्थानों रोहांडा, रैहनगलु और हेलीपैड में लंगर सेवा शुरू की। लोगों ने शुरुआत में इसे एक छोटा प्रयोग समझा, लेकिन धीरे-धीरे यह सेवा श्रद्धालुओं के लिए एक आशीर्वाद बन गई। रोहांडा में लंगर लागने के लिए तीन साल तक जमीन किराये पर ली। इसके बाद वहां भव्य हनुमान मंदिर का निर्माण करवाया।
करसोग के राजमिस्त्री को आठ लाख रुपये मंदिर निर्माण का दिया। आपदाग्रस्त थुनाग में 5 जुलाई से चल रहा लंगर। हर दिन 3000 से अधिक आपदा प्रभावितों को स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन परोसा जा रहा है।
भोजन में दाल, चावल, सब्जी, रोटी, हलवा और कभी-कभी खीर भी होती है। लेकिन सबसे खास चीज होती है सेवा की मुस्कान। श्रीराम राणा स्वयं हर दिन थाल परोसते हैं, प्रभावितों से संवाद करते हैं, बुजुर्गों के पैर छूते हैं और कहते हैं कि उस दिन की भूख ने मुझे जीवन भर की तृप्ति का रास्ता दिखा दिया।
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