हिमालयी झीलें अब नहीं बनेंगी खतरा, मशीन लर्निंग से होगी सटीक पहचान व निगरानी, IIT मंडी के शोधार्थियों का बड़ा दावा
हिमालय की ग्लेशियर झीलें जलवायु परिवर्तन के कारण खतरा बन रही हैं। आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने मशीन लर्निंग आधारित एक मॉडल विकसित किया है, जो उपग्रह चित्रों से झीलों की पहचान करेगा। यह मॉडल 94.44% सटीकता के साथ झीलों की पहचान कर सकता है और आपदा प्रबंधन में मददगार होगा। इस तकनीक से झीलों के आकार और विस्तार की निगरानी की जा सकेगी।

हिमाचल के लाहुल स्पीति जिला के बाराचाला के पास स्थित टशो झील। सौजन्य : शोधार्थी भावना पाठक
हंसराज सैनी, मंडी। गुमनाम शत्रु से भय इसलिए भी लगता है क्योंकि उसका आकार-प्रकार पता नहीं होता। जैसे हिमालय की बर्फीली चोटियों के नीचे बढ़ते खामोश खतरे का पता। खतरा, जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार बढ़ती हिमालय की ग्लेशियर झीलों का। ये अचानक टूट कर बाढ़ जैसी भयंकर आपदा बनती हैं और निचले क्षेत्रों में जान माल, बुनियादी ढांचे और पारिस्थितिक तंत्र के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रही हैं।
इस बढ़ते जोखिम को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणाली में विज्ञानियों ने एक क्रांतिकारी तकनीकी समाधान का दावा किया है। यह शोध अमेरिका के नेचर साइंटिफिक जर्नल में भी प्रकाशित हो चुका है।
आईआईटी शोधार्थी ने विकसित किया स्वचालित माडल
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी के एसोसिएट प्रोफेसर डेरिक्स पी शुक्ला के नेतृत्व में शोधार्थी भावना पाठक ने एक ऐसा मशीन लर्निंग आधारित स्वचालित माडल विकसित किया है, जो उपग्रह चित्रों की मदद से हिमालय की ग्लेशियल झीलों की तेजी और 94.44 प्रतिशत सटीकता के साथ पहचान और मैपिंग कर सकता है।
आपदा प्रबंधन में गेमचेंजर
दावा यह है कि यह प्रणाली जलवायु परिवर्तन से उपजे जोखिमों की निगरानी और आपदा प्रबंधन में गेमचेंजर साबित हो सकती है। यह प्रणाली सेंटिनल्स एक, सेंटिनल्स दो, शटल रडार टोपोग्राफी मिशन से प्राप्त डिजिटल एलिवेशन माडल और प्लैनेटस्कोप जैसे बेहद स्पष्ट उपग्रह चित्रों के डेटा को रेंडम फारेस्ट मशीन लर्निंग एल्गोरिदम के साथ जोड़ती है।
बड़ी बात यह है कि इससे पहले झीलों का पता लगाने के लिए विज्ञानियों को मानवीय विश्लेषण पर निर्भर रहना पड़ता था।
तेज, सटीक और किफायती प्रक्रिया
अब यह प्रक्रिया तेज, सटीक और किफायती हो गई है। माडल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह हिमालय जैसे कठिन और विविध भू-भागों के अनुसार खुद को अनुकूलित कर लेता है। महंगे ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट हार्डवेयर की आवश्यकता भी नहीं है। इसलिए यह तकनीक छोटे शोध केंद्रों और सरकारी संस्थाओं के लिए भी सुलभ है।
सामने आती हैं झीलों की वास्तविक और स्पष्ट सीमाएं
इसके साथ स्मार्ट पोस्ट-प्रोसेसिंग और विश्लेषण नदियों, छायाओं और बर्फ के पिघलाव से उत्पन्न झूठी पहचान को कम करता है। इससे झीलों की वास्तविक और स्पष्ट सीमाएं सामने आती हैं। प्लैनेटस्कोप उपग्रह से मिले उच्च-रिजाल्यूशन चित्रों पर किए गए परीक्षणों ने इस तकनीक की मजबूती और विश्वसनीयता को और पुख्ता किया है।
आपदा प्रबंधन एजेंसियों और नीति निर्माताओं के लिए भी उपयोगी
विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रणाली न केवल विज्ञानियों के लिए बल्कि आपदा प्रबंधन एजेंसियों और नीति निर्माताओं के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी, क्योंकि इसके जरिए झीलों के आकार और विस्तार की रियल-टाइम निगरानी की जा सकेगी।
मशीन लर्निंग क्या है
मशीन लर्निंग आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का भाग है जो कंप्यूटर सिस्टम को स्पष्ट रूप से प्रोग्राम किए बिना डेटा से सीखने और भविष्यवाणियां या निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है। मशीन लर्निंग में, कंप्यूटर को एक कार्य पूरा करने के लिए नियमों का एक सेट बताने के बजाय, उसे डेटा देते हैं। मशीन इस डेटा में पैटर्न और संबंध ढूंढती है और फिर एल्गोरिदम से एक माडल बनाती है। ई मेल सिस्टम में स्पैम का फिल्टर किया जाना या वर्चुअल असिस्टेंट द्वारा मनुष्य की भाषा को समझना मशीन लर्निंग के उदाहरण हैं।
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ग्लेशियल झीलों की सूची
शोध से संकेत मिलता है कि लिटिल आइस एज की समाप्ति के बाद से ग्लेशियर पीछे हट रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप पहले से ग्लेशियरों से ढके क्षेत्रों में ग्लेशियल झीलों का विस्तार हो रहा है। पूर्ववर्ती अध्ययनों में वर्ष 2011-2013 के दौरान 500 वर्ग मीटर से बड़ी 958 ग्लेशियल झीलों का मानचित्रण किया गया था। हालिया अध्ययन में बताया गया है कि हिमाचल के सतलुज नदी बेसिन में ग्लेशियल झीलों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है जो वर्ष 2019 में 562 से बढ़कर 2023 में 1,048 तक पहुंच गई है। वर्ष 2023 में कुल 1,981 ग्लेशियल झीलों का मानचित्रण किया।

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