किसी 'जन्नत' से कम नहीं है हिमाचल की पिन वैली, दूसरी दुनिया का अहसास कराती सफेद चादर में लिपटी यह जगह
लाहुल स्पीति की पिन वैली अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के कारण पर्यटकों को आकर्षित करती है। पिन नदी के किनारे बसी यह घाटी बौद्ध संस्कृति और दुर्लभ वन्यजीवों का घर है। मुद गांव में होमस्टे संस्कृति पर्यटकों को अनूठा अनुभव कराती है। यहाँ का स्थानीय भोजन, जैसे थुकपा और तिंगमो, पर्यटकों को खूब पसंद आता है। पिन वैली नेशनल पार्क में हिम तेंदुए जैसे दुर्लभ जीव पाए जाते हैं।

किसी 'जन्नत' से कम नहीं है पिन वैली, दूसरी दुनिया का अहसास कराती सफेद चादर में लिपटी यह जगह
हंसराज सैनी, मंडी। हिमाचल प्रदेश के शीत मरुस्थल लाहुल स्पीति की पिन वैली ऐसा अहसास देती है, मानो आप किसी दूसरी ही दुनिया में कदम रख चुके हों। जहां सड़कें खत्म होती हैं, वहीं से इस घाटी की खूबसूरती शुरू होती है। काजा से आगे बढ़ते ही बदलते रंगों वाली पहाड़ियां बर्फ यात्रियों का स्वागत करती है।
पिन नदी के किनारे फैला यह क्षेत्र प्राकृतिक नजारों के लिए ही नहीं, बौद्ध संस्कृति, दुर्लभ वन्यजीवों और सरल ग्रामीण जीवन के कारण पर्यटकों का दिल जीत लेता है। मुद जैसे छोटे–छोटे गांवों में मिलने वाला आतिथ्य और घर जैसा भोजन पर्यटकों के सफर को यादगार बना देता है। यहां का हर मोड़ नई कहानी सुनाता है।
कहीं बर्फ से ढकी चोटियां हैं, कहीं शांत मठ, तो कहीं पहाड़ों के बीच पगडंडियां रोमांच का निमंत्रण देती हैं। पिन वैली वास्तव में प्रकृति और रोमांच का अनोखा संगम है। स्पीति घाटी के सबसे दुर्गम और शांत क्षेत्रों में शामिल पिन वैली देश-विदेश के पर्यटकों की पसंदीदा मंजिल बनने लगी है।
प्राकृतिक सौंदर्य का जीवंत चित्र
पिन नदी के तट पर फैली यह घाटी चारों ओर ऊंचे, नुकीले और बहुरंगी पर्वतों से घिरी है। मौसम बेहद ठंडा रहता है, लेकिन यही कठोरता पिन वैली को अनोखा बनाती है।
सर्दियों में जब तापमान माइनस 20 डिग्री तक गिर जाता है, तब घाटी सफेद चादर में ढक जाती है और मानो स्वर्ग का दृश्य धरती पर उतर आता है। साफ नीला आसमान, चमकती बर्फ और शांत हवा यात्रियों को आत्मिक सुकून प्रदान करती है।
पिन वैली नेशनल पार्क से है घाटी की पहचान
घाटी की पहचान पिन वैली नेशनल पार्क है, जो हिमालयी जीव जंतु संरक्षण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां हिम तेंदुआ (स्नो लेपर्ड), आइबेक्स, रेड फाक्स, स्नो फिंच और कई दुर्लभ पक्षी प्रजातियों का निवास है।
कठोर जलवायु के कारण ये जीव ऊंचे पर्वतों में रहते हैं। सर्द मौसम में इनके नीचे आने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे पर्यटकों को दुर्लभ वन्यजीवों को देखने का अवसर मिलता है।
मुद गांव है घाटी का अंतिम बसेरा और यात्रियों का पसंदीदा ठिकाना
पिन वैली का अंतिम और सबसे प्रमुख गांव मुद है। मिट्टी व पत्थर से बने पारंपरिक घर, खेतों की छोटी-छोटी पट्टियां और हर घर पर फहराती प्रार्थना पताकाएं इस गांव को शांत आध्यात्मिक स्वरूप प्रदान करती हैं। मुद से कई प्रसिद्ध ट्रैक शुरू होते हैं जैसे पिन पार्वती पास ट्रैक और पिन भाबा पास ट्रैक। पिन भाबा ट्रैक से ट्रैकर किन्नौर पहुंचते हैं।
होमस्टे संस्कृति का अनोखा अनुभव
पिन वैली में भव्य होटल नहीं हैं, लेकिन यहां की होम स्टे संस्कृति पर्यटकों को अलग अनुभव देती है। मुद गांव में स्थानीय लोगों द्वारा चलाए जा रहे होम स्टे स्वच्छ, आरामदायक और पारंपरिक शैली में बने होते हैं। अधिकांश कमरे लकड़ी और मिट्टी के बने होते हैं। सर्दियों में बुखारी या लकड़ी का तंदूर कमरे को गर्म रखता है। गर्म बिस्तर, साफ कमरे और घर जैसा व्यवहार यात्रियों को अपनेपन का एहसास देता है।
खानपान: स्थानीय स्वाद का भरपूर आनंद
पिन वैली का भोजन सादगी और स्वाद का बेहतरीन मिश्रण है। होम स्टे में परोसा जाने वाला भोजन ताजा, स्वास्थ्यवर्धक और स्थानीय कृषि पर आधारित होता है। थुकपा (तिब्बती नूडल सूप) सर्दियों में शरीर को गर्म रखने का सबसे लोकप्रिय व्यंजन है।
तिंगमो, भाप में बना मुलायम ब्रेड, सब्जियों और दाल के साथ परोसा जाता है। बटर टी, ऊनी कपड़ों और आग की गर्मी के बीच बैठकर पीना एक अलग ही अनुभव है। जौ और काले मटर के आटे से बना जरा पर्यटकों को खूब लुभाता है। स्थानीय राजमा, जौ और सूखे पनीर से बने व्यंजन भी खास पहचान रखते हैं। शाकाहारी भोजन भी आसानी से उपलब्ध है और हर व्यंजन में स्थानीय स्वाद की गूंज मिलती है।
कैसे पहुंचें पिन वैली?
मनाली से अटल टनल रोहतांग होते हुए या फिर शिमला से रिकांगपिओ होते हुए सड़क से काजा पहुंचा जाता है। दोनों ओर से बस व टैक्सी सेवा उपलब्ध है। काजा से पिन वैली की दूरी 50 किलोमीटर है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।