Himachal Disaster: 'तू ही तो सहारा...', मां-पत्नी के मना करने पर भी स्कूल के लिए निकले सोहन, तेज सैलाब ने छीन ली जिंदगी
सोहन सिंह नामक एक शिक्षक की बादल फटने से आई बाढ़ में मौत हो गई। सरकारी आदेश का पालन करते हुए प्रतिकूल मौसम में भी वह स्कूल जाने के लिए निकले थे। देजी गांव में रात को वह एक ढाबे में रुके थे जहाँ बादल फटने से उनका कमरा बह गया। अब उनका परिवार शोक में डूबा है।

सुभाष आहलुवालिया, नेरचौक। सोहन सिंह… एक जिम्मेदार शिक्षक, एक समर्पित पिता, एक आज्ञाकारी बेटा व एक ऐसा इंसान, जिसे कभी कोई गुस्से में नहीं देख पाया। लेकिन अब वह लौटकर नहीं आएगा। सोमवार को सरकारी आदेश की पालना करते हुए वह घर से निकला था। मौसम प्रतिकूल था, स्वजन ने बहुत मिन्नतें कीं।
मां ने कहा, बेटा बाहर मत जा, तू ही तो है हमारा सहारा है। पत्नी भावना ने विनती की छुट्टी ले लो, बच्चे भी डर रहे हैं, लेकिन सोहन ने सिर्फ इतना कहा कि सरकारी आदेश है, जाना तो पड़ेगा। घर से निकलकर वह सराज की पखरैर पंचायत के देजी गांव में वह एक पुराने परिचित के कमरे में ठहरा था।
रात को साथ लगते एक ढाबे में डिनर करने के बाद पत्नी को फोन किया था, आवाज में थकान थी लेकिन उम्मीद भी, सुबह जल्दी उठना है, स्कूल निकलना है। पत्नी को कहा था कि कॉल कर जल्दी उठा देना।
सूख गईं पत्नी भावना की आंखें
कौन जानता था कि यह आखिरी बात होगी, जो उन्होंने अपनी पत्नी से कही। रात 11 बजे का समय था, बाहर मूसलाधार वर्षा हो रही थी। अचानक बादल फटने से आए सैलाब में देजी गांव के घर ध्वस्त हो गए। पानी के तेज बहाव में कमरे समेत सब कुछ बह गया।
इस हादसे में ढाबा मालिक किसी तरह जान बचाने में सफल रहा। अब बल्ह हलके के भियूरा गांव का हर कोना सोहन सिंह की याद में डूबा है। बूढ़ी मां द्वार पर बैठी है, आंखें दरवाजे की चौखट से नहीं हट रही, मानो अभी आवाज आएगी मां मैं आ गया। पत्नी भावना की आंखें सूख गई हैं, लेकिन हर आवाज पर चौंकती हैं। शायद कहीं से कोई खबर आई हो।
क्या इंसानी जान से बड़ी होती है हाजिरी?
पुलिस में कार्यरत भाई सुरेश कुमार खुद मदद कर रहा है, लेकिन वह भी जानता है। भाई अब शायद किसी आंकड़े में सिमट गया है, जिसकी फाइल सरकारी टेबल पर एक सादा सा नाम बनकर रह जाएगी। एक बेटा घटनास्थल पर खोज में लगा हुआ है।
दूसरा कांगड़ा जिले के देहरा में ब्यास की खाक छान रहा है। यह सिर्फ एक हादसा नहीं है। यक्ष प्रश्न यह है कि क्या इंसानी जान से बड़ी होती है हाजिरी? क्या शिक्षकों की जिंदगी की कोई कीमत नहीं? अगर उस दिन आदेश आता कि शिक्षक भी घर पर रहें, तो आज यह परिवार उजड़ने से बच जाता।
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