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    हिमाचल: AI से खुला त्रिलोकीनाथ मंदिर के 500 साल पुराने शिलालेख का रहस्य, पहली बार पढ़ा गया टांकरी लिपि में लिखा श्लोक

    By Jagran News Edited By: Rajesh Sharma
    Updated: Mon, 03 Nov 2025 03:01 PM (IST)

    हिमाचल प्रदेश में AI तकनीक ने त्रिलोकीनाथ मंदिर के 500 साल पुराने शिलालेख के रहस्य को उजागर किया है। टांकरी लिपि में लिखे इस लेख को पहली बार पढ़ा गया है, जिससे मंदिर के इतिहास पर नई जानकारी मिली है। यह खोज मंदिर की प्राचीनता और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती है।

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    हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी में स्थित त्रिलोकीनाथ मंदिर और इनसेट में वर्षों पुराना शिलालेख। जागरण

    जागरण संवाददाता, मंडी। ओम गणेशाय नम: ओम शिवा शिवा करेतु कल्याणं संपदा परमेश्वर:। भगवान शिव व गणेश की महिमा में लिखा यह श्लोक त्रिलोकीनाथ मंदिर में मौजूद उस 500 साल पुराने शिलालेख की पहली पंक्ति में है, जिसका रहस्य अब खुला है। 

    मंडी के टांकरी लिपि के संरक्षक पारुल अरोड़ा ने आर्टिफिशियल इंटेलजेंस की मदद से इस शिलालेख को पढ़ा है। इस लेख में भगवान गणेश व शिव की महिला के साथ मंत्र लिखे हैं, जिनका प्रयोग आज भी किया जा सकता है। 

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    1520 में अजबर सेन की रानी द्वारा बनवाए मंदिर में 16 पंक्ति का शिलालेख

    1520 ई में ब्यास नदी किनारे बने त्रिलोकीनाथ मंदिर का निर्माण राजा अजबर सेन की रानी सुल्ताना देवी ने करवाया था। इस मंदिर के गर्भगृह के ठीक बाहर यह शिलालेख लगा है। 16 पंक्तियों का यह शिलालेख खस्ताहालत में है और इसके कई शब्द मिटने के कगार पर हैं।

    कलियुग के 4622वें वर्ष में इसे लिखा

    पारुल अरोड़ा बताते हैं कि पहले उनको लगता था कि यह शारदा लिपि में लिखा है, लेकिन पढ़ने में आया कि यह टांकरी लिपि में कलियुगाब्ध 4622 और 4722 पढ़ने में आया है। यानी विक्रम संवत के अनुसार कलियुग के 4622वें वर्ष में इसे लिखा गया है। 

    Mandi Shila Lekh

    मंडी के मंदिर में स्थापित शिलालेख। 

    पत्र को संरक्षित करने की मांग उठाई

    पारुल डोगरा ने पुरातत्व विभाग और उपायुक्त को लिखे पत्र में इस लेख को संरक्षित करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि अगर इसका पुराना चित्र मिलता है तो इसे सही से पढ़ा जा सकता है। 

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    Mandi Parul Aroda

    मंडी के पारुल अरोड़ा। 

    डेढ़ साल का समय लगा पढ़ने में 

    पारुल अरोड़ा ने बताया कि पहले उन्होंने शिलालेख को पढ़कर शब्द निकाले और उसके बाद इनका संस्कृत में अनुवाद किया। जो शब्द समझ नहीं आए, उसके लिए एआई की मदद ली। अभी भी शिलालेख में कई शब्द नहीं पढ़े गए हैं। इसे पढ़ने के लिए डेढ़ साल का समय लगा। इस बार नवरात्र में लगातार नौ दिन इस पर काम किया तो जितना पढ़ पाया वह सामने आया है।

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