आस्था-पर्यटन का अनूठा संगम मंडी का देवीदढ़, देवदार के घने जंगलों के बीच बना आकर्षण का केंद्र; कैसे पहुंचे?
हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में स्थित देवीदढ़ एक खूबसूरत पर्यटन स्थल है। यहाँ देवदार के घने जंगल, मुंडासन माता का मंदिर और विशाल देवदार का पेड़ है। यह स्थान प्रकृति प्रेमियों और श्रद्धालुओं के लिए एक अद्भुत संगम है। यहाँ मटर और आलू के खेत, पहाड़ी नदी-नाले और पक्षियों की आवाजें पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। देवीदढ़, कमरूनाग की बहन मुंडासन के मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है।

आस्था-पर्यटन का अनूठा संगम मंडी का देवीदढ़। फोटो जागरण
मुकेश मेहरा, मंडी। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में स्थित देवीदढ़ की प्राकृतिक सुंदरता यहां आने वालों का मन मोह लेती है। यह स्थान आस्था और पर्यटन का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है। यहां देवदार के घने जंगलों के बीच एक खुला मैदान है।
यहां मंडी के अधिष्ठाता देवता कमरूनाग की बहन मुंडासन का मंदिर है, साथ ही एक विशाल देवदार का पेड़ भी है। देवीदढ़ के जंगल में प्रवेश करते ही पर्यटकों की सारी थकान एक पल में दूर हो जाती है।
समुद्र तल से लगभग 7800 फीट की ऊंचाई पर स्थित देवीदढ़ उभरता हुआ पर्यटन स्थल है। मंडी जिले के नाचन उपमंडल की ज्यूणी घाटी की पंचायत जहल में स्थित इस खूबसूरत स्थल का मैदान ढलानदार है। यह क्षेत्र पूरी तरह से देवदार के घने जंगलों से ढका हुआ है। मैदान के साथ ही चट्टानों से अठखेलियां करते पहाड़ी नदी-नालों और पक्षियों की आवाजें पर्यटकों को प्रकृति के करीब रखती हैं।
यहां आस-पास हरे-भरे खेतों में मटर और आलू की लहलहाती फसलें और ढलते सूरज का नज़ारा मनमोहक है। कच्चे स्लेटपोश मकानों की बनावट आपको पुराने घरों की याद दिलाएगी। स्वच्छ हवा और प्राकृतिक छटाओं का आनंद लेने के लिए यह स्थल बेहतरीन विकल्प है। हिमाचल के अलावा पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली से भी पर्यटक यहां पहुंच रहे हैं।
देवीदढ़ शिकारी माता और देव कमरूनाग के लिए एक प्रमुख ट्रेकिंग प्वाइंट भी है। शिकारी माता यहां से मात्र आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कमरूनाग पहुंचने के लिए यहां से पैदल ट्रेक के साथ ही संपर्क सड़कें भी हैं। हर साल हजारों प्रकृति प्रेमी यहां सप्ताहांत बिताने आते हैं।
देवीदढ़ में देवदार का सबसे बड़े तने वाला पेड़ भी है, जिसका तना 25 से 26 फुट का है। यह पेड़ एक तने से शुरू होकर तीन हिस्सों में बंटता है। कहा जाता है कि देवता कमरूनाग जब भी देवीदढ़ आते हैं, इसी पेड़ के नीचे बैठते हैं, जिससे इसका धार्मिक महत्व भी बढ़ जाता है।
देवीदढ़ का नाम यहां स्थित माता मुंडासन से जुड़ा है। स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, 'दढ़' का शाब्दिक अर्थ मैदान होता है और 'देवी' शब्द जुड़ने से इसका अर्थ 'देवी का मैदान' है। माता मुंडासन का छोटा सा मंदिर यहां स्थित है। मुंडासन मंडी जनपद के आराध्य देव कमरूनाग की बहन मानी गई हैं।
मेले के दौरान कमरूनाग के पुजारी पांच दिन यहां निवास करते हैं। मान्यता है कि चंड-मुंड संहार में मुंड को हराने पर देवी दुर्गा का नाम मुंडासन पड़ा। शेर पर सवार उनकी मूर्ति मंदिर में स्थापित है।
देवीदढ़ में बच्चों के खेलने के लिए पार्क भी बनाए गए हैं, जिसमें ट्रेकिंग ट्रेल, बोटिंग, झूले आदि शामिल हैं। सेल्फी प्वाइंट भी बनाया गया है। नाले पर बना पुराना पुल हर किसी को आकर्षित करता है। थोड़ी ऊंचाई पर शिकारी माता मार्ग से और भी मनमोहक नजारे देखे जा सकते हैं।
कैसे पहुंचे देवीदढ़
निकटतम हवाई अड्डा कुल्लू जिले के भुंतर में लगभग 94 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रेलगाड़ी से जोगेंद्रनगर तक पहुंच सकते हैं। पठोनकोट-जोगेंद्रनगर रेलवे ट्रैक अभी बंद है लेकिन जल्द ही इसपर रेलगाड़ियों का परिचालन शुरू हो जाएगा। यह देवीदढ़ से 111 किलोमीटर की दूरी पर है। सड़क से जाने के लिए कीरतपुर-मनाली फोरलेन से मंडी-डडौर-चैलचौक-देवीदढ़ सड़क पर 55 किलोमीटर का सफर तय करना होता है।
ठहरने के लिए होम स्टे
यहां ठहरने के लिए होमस्टे की अच्छी सुविधा सुलभ दामों पर उपलब्ध है। वन विभाग के दो विश्रामगृह और इको टूरिज्म के तहत पांच टेंट भी लगाए गए हैं। इन रेस्ट हाउस को आप इको टूरिज्म की साइट से आनलाइन बुक करवा सकते हैं। खाने के लिए स्थानीय राजमा, आलू के अलावा अन्य व्यंजन भी उपलब्ध रहते हैं।
देवीदढ़ में वन विभाग की ऊंचाई वाले क्षेत्रों की एक नर्सरी भी है, जहां लुप्त होने के कगार पर पहुंची जड़ी बूटियों के साथ अन्य पौधे भी मिलते हैं। देवीदढ़ हिमाचल और मंडी का उभरता हुआ पर्यटन स्थल है। सीजन के दौरान यहां पर्यटकों की अच्छी खासी आमद रहती है। वन विभाग की ओर से यहां रहने और खाने की उचित व्यवस्था की गई है।
- एसएस कश्यप, डीएफओ वन विभाग मंडल नाचन।

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