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    भाखड़ा बांध के गहरे ब्लॉक में बढ़ता झुकाव खतरे का संकेत, गोबिंदसागर झील में 24 प्रतिशत तक गाद; विशेषज्ञों का क्या है सुझाव?

    By Jagran News Edited By: Rajesh Sharma
    Updated: Thu, 27 Nov 2025 01:52 PM (IST)

    भाखड़ा बांध में बढ़ता झुकाव विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय है, जो पिछले 30 सालों से बढ़ रहा है। 1995 से शुरू हुआ यह झुकाव कई बार अनुमेय सीमा से अधिक पाया गया है। विशेषज्ञों ने बांध की स्थिति का अध्ययन किया है और पाया कि गोबिंद सागर झील में गाद भरने से जल दबाव बढ़ सकता है। उन्होंने सुरक्षा मूल्यांकन और निगरानी प्रणाली को मजबूत करने की सलाह दी है।

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    भाखड़ा बांध में झुकाव भविष्य के लिए चिंतनीय है। जागरण आर्काइव

    हंसराज सैनी, मंडी। देश के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण कंक्रीट ग्रेविटी बांधों में शामिल भाखड़ा बांध में झुकाव (डिफ्लेक्शन) बढ़ने की प्रवृत्ति ने विशेषज्ञों और एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है। सामान्य तौर पर ग्रेविटी बांधों में झुकाव खतरे का संकेत नहीं माना जाता, लेकिन जब यह अनुमेय सीमा को पार करने लगे तो यह निगरानी का अहम हिस्सा बन जाता है। 

    भाखड़ा बांध में लगभग 30 वर्ष से अधिकतम व न्यूनतम दोनों तरह का झुकाव लगातार बढ़ रहा है जो भविष्य के लिए चुनौती बनकर उभर रहा है।

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    1995 में शुरू हुआ था झुकाव

    बांध के ब्लाक-20 में 1964 से लगी प्लंब लाइन के आंकड़े बताते हैं कि 1995 से झुकाव बढ़ना आरंभ हुआ। 1995, 1998, 2008, 2010, 2011 और 2013 में झुकाव 1.03 इंच की अधिकतम अनुमेय सीमा से अधिक पाया गया था। 2010 में झुकाव 1.1122 इंच के उच्चतम स्तर तक पहुंच गया था। हालांकि अभी तक बांध में न कोई संरचनात्मक तनाव दिखाई दिया है और न ही रिसाव या स्पिलवे संचालन में किसी तरह की समस्या सामने आई है, लेकिन गहरे ब्लाकों में दिख रहा बढ़ता झुकाव विशेषज्ञों को चिंतित कर रहा है।

    कुछ वर्ष पहले किया था संयुक्त अध्ययन

    बांध की वास्तविक स्थिति जानने के लिए केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी), केंद्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधान केंद्र (सीएसएमआरएस), राष्ट्रीय सीमेंट एवं भवन निर्माण सामग्री परिषद (एनसीसीबीएम) और डिसाल्ट सिस्टम के विशेषज्ञों ने कुछ वर्ष पहले संयुक्त अध्ययन किया था। इसमें बांध की संरचना, नींव और चट्टानों की मजबूती की विस्तृत जांच की थी।

    3डी मॉडल से किया विशलेषण

    बीबीएमबी ने डिजाइन, निर्माण इतिहास और मानीटरिंग उपकरणों से जुटाए सभी डेटा उपलब्ध कराए थे। इन्हीं के आधार पर बांध का 3डी माडल तैयार कर विभिन्न परिस्थितियों में उस पर पड़ने वाले भार का विश्लेषण किया गया। 

    1981 और 1998 में रुड़की विश्वविद्यालय द्वारा किए गए 2डी विश्लेषण में पाया था कि बांध के निचले हिस्से का झुकाव वास्तविक आंकड़ों से मेल खाता है, जबकि ऊपरी हिस्से में तापीय प्रभावों के कारण अंतर मिला है। बाद के 3डी अध्ययन में भी कुछ स्थानों पर तनाव मान सुरक्षित सीमा से अधिक पाए गए थे।

    2016 में भूकंप की दृष्टि से किया मूल्यांकन

    2016 में आइआइटी रुड़की ने भूकंप की दृष्टि से बांध की सुरक्षा का पुनर्मूल्यांकन किया था। भूकंप की स्थिति में झुकाव और बढ़ने का अनुमान है। डिजाइन आधारित भूकंप (डीबीई) और अधिकतम माना गया भूकंप (एमसीई) दोनों परिस्थितियों में बांध का झुकाव 1.53 इंच की सीमा को पार कर सकता है। 

    चुनौतीपूर्ण हो सकती है जल दबाव बढ़ने की स्थिति

    खासतौर पर अधिकतम माने गए भूकंप में 0.3 सेकंड के भीतर ही बांध में तेज दोलन देखे गए जो चिंताजनक माने जाते हैं। अध्ययन में यह बात भी सामने आई थी कि गोबिंद सागर झील में लगभग 24 प्रतिशत तक गाद भर चुकी है। इससे बांध पर जल दबाव बढ़ने की स्थिति भविष्य में और चुनौतीपूर्ण हो सकती है।

    क्या कहते हैं विशेषज्ञ

    विशेषज्ञों का कहना है कि आधुनिक तकनीक से नियमित सुरक्षा मूल्यांकन, उपकरणों को अपग्रेड करने, संचालन प्रोटोकाल को मजबूत बनाने और आपातकालीन निकासी योजनाओं को अपडेट करने की जरूरत है। साथ ही यह भी जरूरी है कि बांध की निगरानी प्रणाली को और सटीक बनाया जाए, ताकि किसी भी संभावित खतरे को समय रहते पहचाना जा सके।