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    कामयाबी में स्वाभिमान की अहम भूमिका

    आप अन्य लोगों के अंदर भी वही देखते हैं जो स्वयं आपके भीतर होता है, यदि आपको स्वयं पर विश्वास हो तो आ

    By Edited By: Updated: Thu, 20 Oct 2016 05:57 PM (IST)

    आप अन्य लोगों के अंदर भी वही देखते हैं जो स्वयं आपके भीतर होता है, यदि आपको स्वयं पर विश्वास हो तो आप अन्य लोगों के भीतर भी स्वयं के महत्व को जगा सकते हैं। स्वयं का महत्व अर्थात स्वाभिमान यह शब्द दो शब्दों के मेल से बना है। स्व और अभिमान जिसका अर्थ है स्वयं पर अभिमान। कुछ लोग इस शब्द को नकारात्मक दृष्टिकोण से देखते हैं। दरअसल वह इसका अर्थ घमंड से लेते हैं, लेकिन हम इसे सकारात्मक दृष्टिकोण से देखें तो यह पाएंगे कि जो हम सोचते हैं, वह गलत है। सच तो यह है कि हमारी कामयाबी में स्वाभिमान की एक अहम भूमिका होती है। यदि हम स्वयं के महत्व को सही ढंग से पहचाने व अपने आत्मसम्मान को ध्यान में रखते हुए कोई कार्य करें तो अवश्य ही सफलता हमारे कदम चूमेगी। स्वयं के महत्व को जानने से हममें आत्मविश्वास बढ़ता है। इससे हमें खुशहाली, संतुष्टि और मकसद से भरी ¨जदगी मिलती है। आत्मसम्मान अर्थात स्वयं को जानना। अपने स्वाभिमान को पहचानने से सीधा सा मतलब है खुद को सम्मान। यानी अपनी दृष्टि में अपना मूल्य व स्वयं के बारे में अपना नजरिया कि हम कितने उपयोगी हैं। हम स्वयं को जितना अधिक उपयोगी समझेंगे हमारे आत्मसम्मान में उतना ही इजाफा होगा, अर्थात हमारा ऊंचा स्वाभिमान होगा। क्योंकि अपने बारे में जो हम महसूस करते हैं वही दूसरे के व्यवहार में हमारे प्रति झलकता है। ईश्वर ने प्राय: सभी जीवों में स्वाभिमान का गुण दिया है। इसका पता हमें तभी चलता है जब हम स्वयं व अपने भीतर की क्षमता को पहचानें। चूंकि मनुष्य विवेकायुक्त है। उसमें इसे जानने व पहचानने की अपेक्षाकृत ज्यादा योग्यता व क्षमता होती है। इसके लिए यह जरूरी है कि हमें यह विश्वास करना चाहिए कि हम महत्वपूर्ण हैं तो हममें खुद पर विश्वास आता है। हमें आंतरिक शक्ति प्राप्त होती है। हममें आत्मविश्वास की भावना जागृत होती है। मनुष्य को स्वयं के महत्व को समझना चाहिए। अपने अंदर के आत्मसम्मान को जागृत रखना चाहिए व खुद पर विश्वास करना चाहिए। यदि आपका कदम सही दिशा में है तो चाहे कितनी भी मुसीबत आए घबराना नहीं चाहिए। यह नहीं सोचना चाहिए कि यह काम मुझसे नहीं होगा। यह भी नहीं सोचना चाहिए कि मैं बच्चा, बूढ़ा, निर्धन व स्त्री हूं बस यह सोचना चाहिए कि मैं यह काम कर सकता हूं।

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    ये हमारे समाज की विडंबना है कि यहां स्त्री व पुरुष में भेदभाव किया जाता है। बच्चों को कमजोर समझा जाता है, बूढ़ों को असहाय समझा जाता है। यदि ऐसा है तो वह है आत्मविश्वास की कमी है। क्योंकि जिनको समाज ने जैसा माना उन्होंने स्वयं को वैसा ही स्वीकार कर लिया। शायद इसलिए हमारे समाज में ¨लगानुपात में अंतर देखने को मिलता है। दिन-प्रतिदिन लड़कियों की संख्या में कमी आती जा रही है। समाज में भ्रूण हत्या जैसे अपराध बढ़ते जा रहे हैं। महिलाओं पर अत्याचार किया जा रहा है। इसे वह सह लेती हैं। कारण यह है कि वह स्वयं के महत्व को नहीं जानती पर सच तो यह है कि समाज में हर वर्ग का अपना महत्व है। यदि हम अपने स्वाभिमान को महत्व देते हुए निष्ठापूर्ण कार्य करें तो सफलता मिलती है। जब यह विश्वास हममें जागृत होता है तो हम आत्मविश्वास और भौतिक लक्ष्य को प्राप्त करते हैं।

    मैंने एक समय रविंद्रनाथ टैगोर का उदाहरण पढ़ा था। टैगोर का एक शिष्य था जो एक उत्तम चित्रकार था। वह ¨चतित था कि अन्य व्यक्ति उसके व उसके कार्य के विषय में क्या सोचते होंगे। जब उसने यह बात टैगोर के समक्ष रखी तो टैगोर ने उसे अपने हृदय की सुनने की सलाह दी। यह कहा कि जब भी कला का विषय हो तो उसे वही चित्र बनाना चाहिए जो स्वयं चाहता है न कि औरों के विचार हों। एक दिन उसने टैगोर का चित्र बनाया ऐसा चित्र जो प्रत्येक रूप में संपूर्ण था। स्वयं टैगोर ने उसे पसंद किया। ¨कतु शिष्य के मन में शंका थी। उसने टैगोर से पूछा कि यदि उस चित्र के विषय में अन्य लोगों की राय ली जाए तो टैगोर ने सोचा कि यह शिक्षा प्रदान करने का उचित अवसर है। टैगोर ने कहा कि ठीक है यदि तुम वास्तव में यह जानना चाहते हो तो प्रात:काल इस चित्र को व्यस्त मंडी के किसी कोने में स्थापित कर दो। मेरा एक वास्तविक फोटोग्राफ कुछ पैंसिल एवं एक निवेदन पत्र लोगों के अभिप्राय के लिए वहां रख दो। वहां उसे पूरा दिन रहने देना तथा संध्याकाल उसे अपने साथ ले आना। शिष्य ने वैसा ही किया। दो दिन के बाद वह टैगोर के पास आया। उसने तिरस्कार की भावना से चित्र को टैगोर के समक्ष रखा और कहा मैं अपनी चित्रकला से स्तंभित हूं। आपने कहा यह निष्कलंक है, ¨कतु मुझे पता था कि ऐसा नहीं है अन्य लोगों का भी यही मानना है कि संपूर्ण चित्र काले ¨चहों से भरा हुआ था। वास्तव में काले चिन्हों ने पूरा चित्र बिगाड़ दिया था। लोगों ने चित्र में कई दोष निकाल रखे थे। टैगोर ने कुछ क्षण शांत रहकर कहा इन लोगों के मत का अर्थ कुछ भी नहीं है। मुझे यह चित्र अब भी उत्तम लग रहा है। तुमने उस पत्री में क्या लिखा था। शिष्य ने कहा कि उस पत्री में लिखा था कृपया इस चित्र की तुलना वास्तविक फोटोग्राफ से करें तथा जहां कहीं भी कुछ चूक हो वहां चिह्न लगाएं। टैगोर ने कहा ठीक है काले चिन्हों को मिटाकर इस चित्र को वापस ले जाओ। इस समय अपनी पत्री को वापस बदल का लिखो कृपया इस चित्र की तुलना वास्तविक फोटोग्राफ से कर असंगतियों को सुधारें। इस प्रयोग के अंत में वह चित्र को टैगोर के पास वापस लाया और उसने कहा इस समय एक भी चिह्न नहीं है। ऐसा क्यों यह वही चित्र है ¨कतु किसी ने कोई सुधार नहीं किया है। टैगोर ने कहा पुत्र दोष निकालना सरल है। सर्वाधिक व्यक्ति दोष और विशेष लक्षण में भेद नहीं कर पाते तो वे स्वयं को विशेष लक्षणों को बनाने में व्यस्त रहते हैं न कि अन्य लोगों के दोष निकालने में जब अपनी स्वयं की कला हो तो अपनी सूझबूझ पर विश्वास करो। यदि आप जो है एवं जो कार्य करते हैं उसमें विश्वास नहीं करते हैं उसमें विश्वास नहीं करते। संभवत: आप कैसे किसी और से यह आशा कर सकते हैं कि वे आप के प्रस्ताव का समर्थन करें स्वयं से तथा आपसे एवं आपके कार्य के अभिप्रायों से निष्कपट बनने से सकारात्मक स्वाभिमान आता है। स्वयं से प्रेम करना सीखें, स्वयं का ध्यान रखें, स्वयं का सत्कार करें, स्वयं में विश्वास रखें और इस प्रकार हम स्वयं के महत्व का अनुभव कर सकते हैं।

    - केएस गुलेरिया, प्रधानाचार्य डीएवी सेंटेनरी पब्लिक स्कूल मंडी।

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    जीवन भले छोटा हो, पर परिपूर्ण हो

    मुझे गर्व है कि हम ऐसे समय पर पैदा हुए हैं जब साहित्य विभिन्न विधाओं के साथ अपने यौवन पर है। इसी को ध्यान में रखते हुए हमें अपनी क्षमताओं को प्रतिफल उजागर करना है क्योंकि आज यह हमारी प्रथम आवश्यकता है। जीवन छोटा सा भले हो पर परिपूर्ण होना चाहिए। मैं समाज के बिना नहीं और समाज व घर मेरे बिना नहीं है। हमें नवीन दृष्टिकोण अपनाना होगा। मेरा विचार है कि बदलते परिवेश में आधुनिक पीढ़ी को लेकर उनके साथ तालमेल बैठाकर आगे बढ़ना होगा। हम समय रूपी बालू पर अपने पद चिह्न छोड़कर जाएं।

    - राजेश्वरी ¨सह, शिक्षिका डीएवी सेंटेनरी पब्लिक स्कूल मंडी।

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    स्वयं को महत्वपूर्ण मानें

    यदि आप स्वयं को महत्वपूर्ण समझते हैं तो औरों को महत्वपूर्ण होने का अनुभव करवाने में समर्थ होंगे। यदि आप स्वयं से प्रेम करते हैं तो औरों को स्नेह देना सहज होगा। जो हमारे भीतर वास्तव में है हम उसी की अनुभूति अन्य को करवाते हैं। यदि आपको उसकी अनुभूति करने की आशा है जो आप वर्तमान में नहीं हैं, तो केवल इतना करें कि अन्य लोगों को वही अनुभव प्रदान करना आरंभ करें। प्रकृति निश्चित रूप से प्रतिदान करेगी। आरंभ करें। स्वयं को महत्वपूर्ण मानें, दूसरों को उनकी विशिष्टता की अनुभूति कराएं और आदर अभिव्यक्त करें। नेक नीयत व यथार्थ बनें।

    - मुकेश ठाकुर, प्रवक्ता भौतिक शास्त्र डीएवी सेंटनेरी पब्लिक स्कूल मंडी।

    स्वाभिमान से आता है आत्म सम्मान

    स्वयं का महत्व यदि व्यक्ति जान ले तो सफलता उसे अपना साथी बना लेती है। स्वयं के महत्व से स्वाभिमान आता है और स्वाभिमान से आत्मसम्मान। आत्मसम्मान से नैतिक मूल्यों की रक्षा होती है। इससे आत्म सम्मानी निर्धनता से निरुत्साहित नहीं होता। इससे व्यक्ति के मन का सौंदर्य बढ़ता है। जिससे उसमें सकारात्मक सोच बनी रहती है और उसे खुशी व आनंद की अनुभूति होती है। प्रत्येक मनुष्य में स्वयं के महत्व को जानने व आत्मसम्मान की भावना होती है। पहले आप खुद को जानें, अपनी पहचान करें और ऊंचे स्वाभिमान की चाहत को कभी मंद न पड़ने दें।

    - सुनील कुमार, हिंदी अध्यापक डीएवी सेंटेनरी पब्लिक स्कूल मंडी।

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    अपने को जानने के लिए ताकत पहचानें

    भगवान उसी की सहायता करते हैं जो खुद की सहायता करते हैं। अर्थात हमें अपनी मदद खुद करनी चाहिए। स्वयं से बड़ा कोई मित्र नहीं होता हमें अपने आप से मिलाने का काम भी वही करता है। हमारी अंतरआत्मा हमें अपने भले-बुरे विचारों से अवगत करवाती है। अर्थात अपने आप को जानना अत्यंत आवश्यक है। अपने आप को जानने के लिए पहला कदम यही है कि हम अपनी ताकत और योग्यता को पहचानें। इसके लिए हमें अपने आप ही अपने विचारों व कार्यो पर मनन करना चाहिए।

    - मेघना ठाकुर, छात्रा डीएवी (सीपीएस) मंडी।

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    दूसरों पर निर्भर व्यक्ति का जीवन व्यर्थ

    स्वयं पर निर्भर रहना अर्थात अपनी जरूरतों और सुख-सुविधाओं को स्वयं पूरा करना मनुष्य के जीवन में बहुत आवश्यक है। दूसरों पर निर्भर व्यक्ति का जीवन व्यर्थ होता है, उसकी स्वयं की शक्ति योग्यता और स्वाभिमान का हास होता है। स्वयं को जानने वाला व्यक्ति किसी भी परिस्थिति से लड़ने के लिए सक्षम होता है। उसे जीवन में फैसले लेने के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं होना पड़ता। स्वयं का महत्व जानने वाले व्यक्ति में कर्तव्य की भावना विकास करती है। समाज में उसे इसी के कारण विशिष्ट स्थान प्राप्त होता है। जीवन संघर्ष, विषमताओं, कष्ट और सुख के मिले-जुले ताने बाने का नाम है। जीवन में संघर्ष उसे लड़ने की प्रेरणा देता है।

    - मानसी राज, छात्रा डीएवी सीपीएस मंडी।

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    स्वाभिमान की चाहत मंद न पड़ने दें

    दुनिया में बहुत से लोग रहते हैं, जिनका अलग-अलग व्यक्तित्व होता है। यह वह व्यक्ति है जो हरेक को दूसरे से अनोखा व अलग बनाता है। हम कभी भी एक तरह के दो लोगों को नहीं देख सकते। यह कभी नहीं बदलता व एक-दूसरे के जीवन का फैसला करता है। मैं अपना उदाहरण लेता हूं। मैं इस दुनिया में बहुत खास हूं व मेरा व्यक्तित्व दूसरों से अलग है। मैं काफी जिम्मेदार इंसान हूं। मैं सदा दूसरों की मदद करता हूं। पहले आप खुद को जाने, अपनी पहचान करें और ऊंचे स्वाभिमान की चाहत को कभी मंद न पड़ने दें। आत्म सम्मान से स्वाभिमान से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और फिर आप आत्मनिर्भरता को प्राप्त होते हैं।

    - लक्ष्य, छात्र डीएवी (सीपीएस) मंडी।