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    कम पड़ती जा रही अनूठी संस्कृति की चमक, भवन निर्माण से लेकर अन्य पक्षों में दिख रहा परिवर्तन

    समुद्रतल से करीब आठ हजार से अधिक ऊंचाई पर बसे मलाणा के वासी स्वयं को सिकंदर के वंशज बताते हैं। मलाणा को ख्याति या कुख्याति मलाणा क्रीम के लिए मिली। कोई भी पर्यटक यहां आ सकता है। कहा तो यह भी जाता है कि चरस से अब मलाणावासी दूरी बना रहे हैं किंतु यह पूरा सत्‍य नहीं है। मलाणा क्रीम भांग अब भी मांग में है।

    By Jagran News Edited By: Nidhi Vinodiya Updated: Tue, 13 Feb 2024 06:55 PM (IST)
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    मलाणा क्रीम भांग अब भी मांग में है। Malana Village

    जसवंत ठाकुर, मनाली। Malana Village: नवंबर, 2021 के दूसरे सप्ताह में ठाकुर जयराम दो किलोमीटर खड़ी चढ़ाई चढ़ कर मलाणा पहुंचे थे। मुख्यमंत्री रहते हुए भी ठाकुर जयराम को देवता जमलू यानी जमदग्नि से गांव में प्रवेश की अनुमति लेनी पड़ी थी। वही मलाणा, जहां के वासी स्वयं को सिकंदर के वंशज बताते हैं। वही मलाणा, जिसका परिचय कभी प्राचीन प्रजातांत्रिक ढांचे के लिए था पर ख्याति या कुख्याति मलाणा क्रीम के लिए मिली। 

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    गांव में रात नहीं बिता सकते पर्यटक

    अब कोई भी पर्यटक मलाणा जा सकता है। हां, रात उसे गांव से बाहर बने अतिथि गृहों में बितानी होगी। अतिथि गृह ऐसे, जो शेष हिमाचल में बन रहे आम भवनों की तरह है। पहले सारे मामले देवता जमलू यानी ऋषि जमदग्नि निपटाते थे, अब पुलिस और प्रशासन देखते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि कई बार आग का शिकार हुआ मलाणा जब पुन: उठा तो लकड़ी के घर पुनर्जीवित नहीं हुए अपितु उन्होंने कंक्रीट पहन लिया और टीन ओढ़ ली। लंबे समय तक सबसे कटा रहने वाला मलाणा अब शेष हिमाचल की तरह हो रहा है। कुछ परिवर्तन अच्‍छे हैं किंतु कुछ उसे शेष हिमाचल की तरह बना रहे हैं।  

    बेहतरी के लिए हो परिवर्तन 

    पहले मलाणा गांव से बाहर कोई रिश्ता नहीं जोड़ता था, लेकिन अब विवाह भी गांव से बाहर होने लगे हैं। हालांकि ग्रामीण मान रहे हैं कि परिवर्तन बेहतरी के लिए हो। बेशक, अब भी मलाणा के लोग पौराणिक मान्यताओं का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं किंतु वे ये भी मानते हैं कि अब देवनीति में राजनीति दखल देने लगी है। मलाणा के पूर्व प्रधान भागी राम कहते हैं कि सरकार की ओर से होने वाले विकास के कार्य ठप हैं। बहुत कम लोग सरकार की योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। मलाणा में एकमात्र स्कूल है जिसमें भी अध्यापक पूरे नहीं हैं। युवा पीढ़ी पढ़ना चाहती है लेकिन सरकार का सहयोग नहीं मिल रहा। मलाणा के बेचणी, तोडांग, मैजिक, भयाडी, योशके व थोसके में लगभग 300 घरों में आज भी बिजली नहीं पहुंची है।

    पर्यटन कारोबार को बढ़ने नहीं दे रहे लोग

    स्ट्राबेरी से जैम बनाने वाले मलाणा के पहले व्यक्ति परस राम आज पंचायत में सरपंच है। वह कहते हैं कि सरकारी विभागों के प्रतिनिधि ग्रामीणों को सही तरीके से जागरूक नहीं कर रहे। जिस कारण लोग सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। ग्रामीण मोती राम कहते हैं कि मलाणा में अब देवनीति के साथ राजनीति भी हो रही है जो गलत है। लोगों ने होटलों व गेस्ट हाउस तो बनाए हैं, लेकिन कुछ लोग देव नीति में राजनीति लाकर पर्यटन कारोबार बढ़ने नहीं दे रहे। उन्होंने बताया कि वह लोगों को हिम केयर कार्ड, आभा कार्ड व आधार कार्ड बनाने को प्रेरित कर रहे हैं ताकि सरकार की योजनाओं का सभी को लाभ मिले।

    मलाणा क्रीम और भांग की अब भी है मांग

    कहा तो यह भी जाता है कि चरस से अब मलाणावासी दूरी बना रहे हैं किंतु यह पूरा सत्‍य नहीं है। मलाणा क्रीम भांग अब भी मांग में है। हिमपात के चलते साल में एक ही फसल होती है। ग्रामीण अब गेहूं, आलू, मटर, गोभी, टमाटर, राजमाह उगा रहे हैं।

    अग्निकांड ने छीनी मलाणा की प्राचीन कठकुणी शैली...

    समुद्रतल से करीब आठ हजार से अधिक ऊंचाई पर बसे मलाणा गांव की प्राचीन कठकुणी शैली को अग्निकांड ने प्रभावित किया है। बड़ा अग्निकांड 2006 में हुआ था जब एक साथ मलाणा में 100 घर जलकर राख हो गए थे। दूसरा अग्निकांड 2021 में हुआ जिसमें 16 बड़े बड़े मकान आग की भेंट चढ़ गए। घर जल जाने के बाद ग्रामीण महंगाई के चलते पुरानी शैली के घर नहीं बना पाए और काठकुणी की जगह कंकरीट ने ले ली।

    गांव की अपनी संसद 

    मलाणा गांव की अपनी संसद है जिसमें छोटे और बड़े सदन हैं। बड़े सदन में 11 सदस्य है, जिनमें आठ सदस्य गांव के चुने जाते हैं जबकि तीन स्थायी सदस्यों में कारदार, गूर (देवता के प्रतिनिधि) और पुजारी शामिल होते हैं। मलाणा गांव में कानून बनाए रखने के लिए अपना थानेदार और अन्य प्रशासनिक अधिकारी हैं। गांव में संसद का काम चौपाल में होता है, जिसमे छोटे सदन के सदस्य नीचे, जबकि बड़े सदन के सदस्य ऊपर बैठते हैं। सदन की बैठक के दौरान ही गांव से जुड़े सभी मुद्दों का निर्णय होता है। अगर सदन को कोई निर्णय नहीं मिलता है, तो अंतिम निर्णय जमलू देवता ही लेते हैं लेकिन अब आदेश नहीं भी माने जा रहे हैं।