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    भगवान रघुनाथ के आशीर्वाद के लिए PM Modi ने तोड़ा था प्रोटोकॉल, रथयात्रा के साथ आज शुरू होगा Kullu Dusshera उत्सव

    By Jagran NewsEdited By: Mohammad Sameer
    Updated: Tue, 24 Oct 2023 06:45 AM (IST)

    Kullu Dussehra 2023 साल 2022 में प्रधानमंत्री मोदी पांच अक्टूबर को कुल्लू पहुंचे थे और रथयात्रा को नजदीक से निहारा था। इस दौरान वह प्रोटोकाल तोड़ते हुए भगवान रघुनाथ जी के रथ तक पहुंचे और नतमस्तक होकर उनका आशीर्वाद लिया।

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    भगवान रघुनाथ के आशीर्वाद के लिए PM Modi ने तोड़ा था प्रोटोकॉल

    संवाद सहयोगी, कुल्लू। भगवान रघुनाथ की रथयात्रा के साथ मंगलवार को ढालपुर में अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव शुरू होगा। 30 अक्टूबर तक चलने वाले देव महाकुंभ के लिए जिला प्रशासन एवं आयोजन समिति ने कुल्लू जिले के 332 देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया है।

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    देवमहाकुंभ का विधिवत शुभारंभ राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल शाम को लाल चंद प्रार्थी कला केंद्र में करेंगे। सुबह देव परंपरा का निर्वहन करने के लिए देवी-देवी भगवान रघुनाथ से मिलने सुल्तानपुर स्थित रघुनाथ के मंदिर में जाकर शीश नवाएंगे।

    लगभग एक बजे के बाद भगवान रघुनाथ जी को रथ मैदान ढालपुर लाया जाएगा। इसके बाद भुवनेश्वरी भेखली माता का इशारा मिलते ही रघुनाथ जी की रथयात्रा शुरू होगी। रघुनाथ जी को रथ में बैठाकर सैकड़ों लोग इसकी डोर को खींचकर ढालपुर स्थित अस्थायी मंदिर तक लाएंगे और रघुनाथ जी अस्थायी मंदिर में विराजमान होंगे। सात दिन मुख्य छड़ीबरदार (पुजारी) महेश्वर सिंह पूजा-अर्चना करेंगे।

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बन चुके हैं रथयात्रा के साक्षी

    2022 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में रघुनाथ जी की रथयात्रा में शामिल हो चुके हैं। पिछले साल प्रधानमंत्री पांच अक्टूबर को कुल्लू पहुंचे थे और रथयात्रा को नजदीक से निहारा था। इस दौरान वह प्रोटोकाल तोड़ते हुए भगवान रघुनाथ जी के रथ तक पहुंचे और नतमस्तक होकर उनका आशीर्वाद लिया।

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    कुल्लू दशहरा का अयोध्या
से है नाता कुल्लू दशहरा उत्सव का इतिहास 400 वर्ष से भी अधिक पुराना है। दशहरा उत्सव का अयोध्या से नाता है। कुल्लू के तत्कालीन राजा जगत सिंह को लगे शाप से मुक्ति दिलाने के लिए अयोध्या से भगवान श्रीराम की मूर्ति लाई थी।

    1653 में इस मूर्ति को मणिकर्ण मंदिर में रखा गया और 1660 में इसे पूरे विधि-विधान से कुल्लू के रघुनाथ मंदिर में प्रतिष्ठापित किया गया। राजा ने अपना सब कुछ भगवान रघुनाथ के नाम कर दिया तथा स्वयं उनके छड़ीबरदार बने।