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    कुल्लू दशहरा में भगवान रघुनाथ की विशेष पूजा-अर्चना, शाही स्नान और भक्ति भजनों से गूंजा उत्सव

    Updated: Sat, 04 Oct 2025 06:00 PM (IST)

    कुल्लू दशहरा उत्सव में भगवान रघुनाथ जी की विशेष पूजा-अर्चना का महत्व है। अस्थाई शिविर में उनकी चार बार पूजा और सात बार आरती होती है। सुबह शाही स्नान के बाद उन्हें कीमती आभूषणों और वस्त्रों से सजाया जाता है जो राज परिवार की महिलाएं तैयार करती हैं। हर दिन वस्त्र बदले जाते हैं। शुक्रवार को छड़ीबदार महेश्वर सिंह ने पूजा की जिसके बाद भोजन होता है।

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    रघुनाथ के दर्शन के लिए अस्थाई शिविर में लगा श्रद्धालुओं का तांता (फोटो: जागरण)

    संवाद सहयोगी, कुल्लू। देवी-देवताओं का महाकुंभ दशहरा उत्सव कई परंपराओं को आज भी संजोए हुए हैं। यहां पर अलग अलग देवता की अपनी मान्यता है। इसमें सबसे अहम भगवान रघुनाथ जी पूजा अर्चना और आरती का खास महत्व है।

    अस्थाई शिविर में भी भगवान रघुनाथ जी की चार बार पूजा अर्चना होती है और सात बार आरती होती है। पहले भगवान रघुनाथ की मूर्ति का शाही स्नान किया गया। सुबह प्रात: पूजा होती है इसमें दो बार आरती होती है। इसमें एक उठाने की और उसके बाद स्नान की आरती की जाती है। इसके बाद मध्यन पूजा की जाती है।

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    इसके बाद शयन आरती और सेजा आरती होती है। भगवान रघुनाथ की चौथे पहर की पूजा की जाती है। इसके बाद सायं काल की आरती होती है। इसके बाद अंतिम चुघडी आरती होती है। हर दिन भगवान रघुनाथ जी को कीमती आभूषणों और सुंदर वस्त्रों से सजाया जाता है। हर वर्ष इनके नए वस्त्र तैयार किए जाते हैं।

    इन वस्त्रों को राज परिवार की महिलाएं ही तैयार करती है। हर दिन वस्त्रों को बदला जाता है। शाम को आरती के बाद रघुनाथ, माता सीता और हनुमान जी के दर्शन सभी श्रद्धालुओं को करवाए जाते हैं। भगवान रघुनाथ जी को हर दिन के हिसाब से वस्त्र पहनाए जाते हैं। शुक्रवार को रघुनाथ के छड़ीबदार महेश्वर सिंह भगवान रघुनाथ की पूजा की।

    बड़ी पूजा का विशेष महत्व होता है। बड़ी पूजा के बाद भोजन होता है। भगवान रघुनाथ जी भी व्यक्ति की तरह स्नान और शयन का समय तय है। हर कार्य समय के साथ ही किया जाता है। देवी-देवताओं के महाकुंभ दशहरा उत्सव में भगवान रघुनाथ जी का अस्थाई शिविर आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इसके अलावा ढालपुर मैदान में पहुंचे देवी-देवताओं की सुबह छह बजे से देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना का क्रम शुरू होता है।

    पूजा अर्चना के दौरान भगवान रघुनाथ की नगरी वाद्ययंत्रों, शंख की ध्वनि से गूंजी। उत्सव में आए सैकड़ों देवी-देवता अपने अपने रीति रिवाज के साथ पूजा आरती करते हैं। पूजा अर्चना में सबसे अहम भगवान रघुनाथ की आरती होती है। भगवान रघुनाथ प्रतिदिन सीता माता के साथ अपने अस्थाई शिविर में अपने सिंहासन पर विराजमान होते हैं।

    भगवान रघुनाथ के अस्थाई शिविर में उनके दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। पूजा करने के बाद यहां पर भजन कीर्तन का दौर चला जहां पर महिलाएं बच्चे बुजुर्ग भगवान की भगती में मग्न होकर नाचते गाते हैं। दिन भर भगवान रघुनाथ जी के आशीर्वाद को लोगों की भीड़ लगी रही।