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    Kullu Dussehra: न रामलीला...न रावण दहन, देवलोक से पहुंचते हैं 300 से अधिक देवी-देवता, जानिए क्या है मान्यता और इतिहास

    कुल्लू दशहरा एक अनोखा उत्सव है जो हिमाचल प्रदेश के कुल्लू घाटी में मनाया जाता है। यह उत्सव सात दिनों तक चलता है और भगवान रघुनाथ की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। इस उत्सव में 300 से अधिक देवी-देवता भाग लेते हैं और अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। कुल्लू दशहरा का इतिहास साढ़े तीन सौ वर्ष से अधिक पुराना है और इसका एक अनोखा महत्व है।

    By Jagran News Edited By: Sushil Kumar Updated: Mon, 14 Oct 2024 05:06 PM (IST)
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    Kullu Dussehra: क्यों मनाया जाता है कुल्लू दशहरा? क्या है इसकी मान्यता।

    डिजिटल डेस्क, कुल्लू। हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू में दशहरा उत्सव मनाया जाता है। यह उत्सव नवरात्रि के अंतिम दिन राणव वध दशहरा के अगले दिन से शुरू होता है। सात दिनों तक यह उत्सव मनाया जाता है।

    भगवान रघुनाथ की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। जिले भर के 332 देवी-देवताओं को प्रशासन की ओर से निमंत्रण दिए जाते हैं। सभी देवी-देवता भगवान रघुनाथ से मिलने आते हैं।

    देव महाकुंभ अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का रविवार को आगाज हो गया है। सात दिनों तक इसकी धूम रहेगी। पूरे इलाके में भक्तिमय माहौल बना रहेगा। देव समागम के प्रति अटूट आस्था के चलते रथ खींचने के लिए भारी भीड़ उमड़ पड़ती है। देश-विदेश से भी लोग पहुंचते हैं।

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    कुल्लू दशहरा की विशेषता

    खास बात है कि इस दशहरे उतस्व के दौरान कोई रामलीला नहीं होती है और ना ही रावण का दहन होता है। कुल्लू दशहरा का बहुत मान्यता है। यह हर साल मनाया जाता है। अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि से शुरू होता है। इस बार 13 अक्टूबर से कुल्लू दशहरा उत्सव का आगाज हुआ है। 19 अक्टूबर को इसका समापन होगा।

    परंपरा के पीछे क्‍या है राज?

    इस परंपरा के पीछे भी राज छुपा हुआ है। 17वीं शताब्‍दी में राजा जगत सिंह अयोध्‍या से भगवान रघुनाथ की एक मूर्ति अपने साथ कुल्‍लू ले आए थे, फिर उन्‍होंने उस मूर्ति को कुल्‍लू के महल मंदिर में स्‍थापित कर दी थी।

    300 से अधिक देवी-देवता लेते हैं भाग

    मान्यता है कि इस उत्‍सव में 300 से अधिक देवी-देवता भाग लेने आते हैं। साथ ही श्री रघुनाथ भगवान को अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। दशहरा का यह उत्‍सव माता हिडिम्‍बा के आगमन से शुरू होता है।

    उत्सव के दौरान अलग-अलग राज्‍यों के सांस्‍कृतिक दल और विदेशों से लोक नर्तक अपनी अद्भुत प्रस्तुतियां प्रस्‍तुत करते हैं। इस दौरान यहां उत्‍सव में भाग लेने देश और विदेश से भारी संख्‍या में पर्यटक आते हैं।

    क्‍या है कुल्‍लू दशहरा का इतिहास?

    कुल्लू दशहरा का इतिहास साढ़े तीन सौ वर्ष से अधिक पुराना है। कहा जाता है कि राजा जगत सिंह के शासनकाल में मणिकर्ण घाटी के गांव टिप्परी में एक गरीब ब्राह्मण रहता था।

    उस गरीब ब्राह्मण ने राजा जगत सिंह की किसी गलतफहमी के कारण आत्मदाह कर लिया था। ब्राह्मण के इस आत्मदाह का दोष राजा पर लगा, जिसकी वजह से राजा को एक असाध्य रोग भी हो गया था।

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