फिर मिलने का वादा कर लौटे देवी-देवता
कमलेश वर्मा कुल्लू लंका दहन के बाद देवमहाकुंभ अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में आए सभी देवी ...और पढ़ें

कमलेश वर्मा, कुल्लू
लंका दहन के बाद देवमहाकुंभ अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में आए सभी देवी-देवता फिर मिलने का वादा कर देवालयों में लौट गए। इसी के साथ देवसमागम का भी समापन हो गया। हालांकि इस बार कोरोना महामारी के कारण उत्सव में सात ही देवी-देवताओं को बुलाया था, लेकिन बिना निमंत्रण के भी छह-सात देवी-देवता पहुंचे थे।
जिलाभर के सभी देवी-देवताओं के उत्सव में न आने के कारण इस बार पहले ही देवता और लोग मायूस थे लेकिन सात दिन के बाद अन्य जो भी देवी देवता आए थे उनकी रवानगी से भी ढालपुर मैदान सूना-सूना हो गया। सात दिन तक जहां अठारह करडू की सौह (ढालपुर मैदान) सहित रघुनाथ नगरी रामरास से सराबोर रही। देव व मानस के इस महामिलन के बाद देवी-देवताओं की विदाई ने सभी लोगों को भावुक कर दिया। देवताओं की रवानगी के साथ ही पूरा ढालपुर मैदान एक साल के लिए फिर सूना पड़ गया। लंकादहन के बाद रघुनाथजी के मंदिर में आयोजन हुआ, जिसमें सैकड़ों लोगों ने भाग लिया। परंपरानुसार लंका दहन के बाद विजय की खुशी में कुल्लू में रामरास हुई। देवी-देवताओं के वाद्ययंत्र की धुन पर देव पूजा के बाद रामरास में रघुनाथजी के भक्त जमकर थिरके।
हर साल दशहरा समापन के बाद यहां सुल्तानपुर स्थित भगवान रघुनाथजी के मंदिर में रामरास (भजन कीर्तन) का आयोजन होता है। इसके अलावा कुल्लू स्थित रघुनाथजी के मंदिर में अयोध्या की तर्ज पर सालभर रघुनाथजी के सभी आयोजन होते हैं और जिला के सैकड़ों भक्त इन आयोजनों में शामिल होते हैं। लिहाजा, सात दिन तक चले देवमहाकुंभ अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का शनिवार को उत्सव में मौजूद देवी-देवताओं के मेल-मिलाप और लंका पर चढ़ाई करने के बाद रावण परिवार के साथ बुराई के अंत के साथ ही यह देवी-देवता एक वर्ष के लिए फिर से अलविदा कहकर अपने देवालय लौट गए।

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