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    हिमाचल के 4 जिलों में मनाई जाती है अनोखी दीवाली, 20 अक्टूबर नहीं एक महीने बाद त्योहार मनाएंगे लोग, सदियों से निभा रहे परंपरा

    By Jagran News Edited By: Rajesh Sharma
    Updated: Sun, 19 Oct 2025 03:27 PM (IST)

    हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में दीपावली एक महीने बाद मनाई जाती है, जिसे बूढ़ी दिवाली कहते हैं। कुल्लू के निरमंड में यह पर्व 20 से 23 नवंबर तक मनाया जाएगा। इस दौरान रस्साकशी, मशाल जुलूस और पारंपरिक नृत्य होते हैं। मान्यता है कि इस समय गाए जाने वाले विशेष गीत भूत-पिशाचों को भगाते हैं और मुंजी घास की रस्सी घर में रखने से सांप-चूहे दूर रहते हैं।

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    हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में बूढ़ी दीवाली मनाते लोग। जागरण आर्काइव

    देविंद्र ठाकुर, कुल्लू। हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा पर्व दीपावली है। इस बार यह पर्व 20 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। वहीं, हिमाचल प्रदेश के कुछ इलाकों में दीवाली का पर्व एक माह के बाद मनाया जाता है। 

    कुल्लू जिला के निरमंड में इस बार 20 से 23 नंवंबर तक बुढ़ी दिवाली मनाई जाएगी। इसके अलावा सिरमौर के गिरिपार, शिमला के कुछ गांवों और लाहुल स्पीति में भी दिवाली पर्व मनाया जाता है। 
    आज भी इन क्षेत्रों में पुरातन परंपरा को संजोए हुए हैं। जहां पर पुरातन संस्कृति को बचाए रखने के  लिए लोग आगे आते हैं। 

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    वैदिक काल से चल रही परंपरा

    निरमंड में माता अंबिका और भगवान परशुराम के कारदार पुष्पेंद्र शर्मा बताते हैं कि यह पर्व वैदिक काल से चला आ रहा है। इसका वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है। बूढ़ी दीवाली का रामायण और महाभारत से जुड़ाव है। 

    रस्साकशी के बाद मशालें लेकर गांव में पहुंचते हैं लोग

    पहले दिन निरमंड में रातभर इस पर्व को मनाते हैं। दूसरे दिन कौरव और पांडव के प्रतीक के तौर पर दो दल रस्साकशी करेंगे। विशेष तौर से बनाई गई मूंजी घास के रस्से से दोनों दल एक-दूसरे के साथ शक्ति प्रदर्शन करेंगे। इसके अलावा रात को एक दल गांव में मशालों के साथ प्रवेश करता है। रात को राज कवि काव्य, रामायण, महाभारत के वीर रस का पान करवाते हैं।

    बाड़ नृत्य व माला नृत्य के साथ तीन दिनों के बाद निरमंड की बूढ़ी दीवाली का समापन होता है। इसके बाद लगातार फरवरी माह तक दीपावली यानि दियाली मनाने का सिलसिला जारी रहता है।

    भूत पिशाच भगाने के लिए गाते हैं अनोखे गीत

    देवता शमशरी महादेव की पूजा करने के बाद तीन मशालें जलाई जाती हैं। शमशरी महादेव के पुरोहितों द्वारा महादेव को नचाया जाता है और अनोखे कांव गीत गाए जाते हैं जिसमें किया माऊए किया काज बड़ी राजा देऊली राज देऊली बोले देऊलीए... पारा ओरोऊ आई वुडिली ढेण तैसे नहीं सुना मेरा काम आदि स्थानीय बोली में गीत गाए जाते हैं। बुजुर्गों के अनुसार इन गीतों को भूत पिशाच भगाने के लिए गाए जाते हैं।

    रस्सी को काटकर घर ले जाते हैं लोग

    सुबह के समय एक लंबा रस्सा बनाया जाता है। इसे एक विशेष घास से बनाया जाता है जिसे मुंजी का घास कहा जाता है। उस रस्सी के अगले सिरे में महादेव के गुर नाचते हैं और पीछे से हजारों लोग नाचते हैं। मंदिर की परिक्रमा की जाती है और उसके बाद उस रस्सी को काटा जाता है और उस रस्सी को लोग अपने-अपने घर ले जाते हैं। कहा जाता है कि इसको अपने घर पर रखने से चूहे और सांप आदि नहीं निकलते हैं।

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