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    पालमपुर में 1400 मीटर की ऊंचाई में उगाई जाती है देश की सबसे बेहतर चाय

    By Richa RanaEdited By:
    Updated: Sat, 19 Dec 2020 10:42 AM (IST)

    पालमपुर की यात्रा करने वाले पर्यटकों के लिए चाय के बागान प्रमुख आकर्षण है। शहर के विशाल चाय बागानों के कारण पालमपुर उत्तर पश्चिमी भारत की चाय राजधानी के रूप में जाना जाता है। चाय के बागान इस क्षेत्र के अनेक स्थानीय लोगों की जीविका का साधन हैं।

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    पालमपुर की यात्रा करने वाले पर्यटकों के लिए चाय के बागान प्रमुख आकर्षण है।

    पालमपुर, कुलदीप राणा। पालमपुर की यात्रा करने वाले पर्यटकों के लिए चाय के बागान प्रमुख आकर्षण है। शहर के विशाल चाय बागानों के कारण पालमपुर उत्तर पश्चिमी भारत की चाय राजधानी के रूप में जाना जाता है। कई एकड़ भूमि में फैले हुए ये चाय के बागान इस क्षेत्र के अनेक स्थानीय लोगों की जीविका का साधन हैं।

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    पालमपुर को उत्तरी भारत की चाय राजधानी के रूप में जाना जाता है और यह पूरे देश में हरे-भरे चाय के बागानों के लिए प्रसिद्ध है। हिमाचल के प्रसिद्ध कांगड़ा क्षेत्र में जलवायु, विशिष्ट स्थान, मृदा की स्थिति, एवं बर्फ से ढके पहाड़ों की ठंडक; सभी मिलकर चाय की गुणवत्ता से भरपूर चाय की एक अलग कप तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

     

    विशेष रूप से सुगंध और स्वाद के साथ पहला फ्लश जिसमें फल का एक अमिश्रित रंग है। कांगड़ा चाय का इतिहास 1849 का है जब बॉटेनिकल चाय बागानों के अधीक्षक डॉ.जेम्सन ने इस क्षेत्र को चाय की खेती के लिए आदर्श बताया। भारत के सबसे छोटे चाय क्षेत्रों में से एक होने के नाते कांगड़ा ग्रीन और ब्लैक-टी बहुत ही अनन्य है। जहां ब्लैक-टी में स्वाद के बाद मीठी सुगंध होती है, वहीं ग्रीन-टी में सुगंधित लकड़ी की सुगंध होती है। कांगड़ा चाय की मांग लगातार बढ़ रही है और इसका अधिकांश हिस्सा मूल निवासियों द्वारा खरीदा जाता है। पूर्व में पेशावर के रास्ते काबुल और मध्य एशिया में निर्यात किया जाता था। अब कांगड़ा चाय का मुख्य बाजार अमृतसर व कलकत्ता हैं। कांगड़ा चाय एक पंजीकृत भौगोलिक संकेत (जीआई) है।

    चाय की विशेषताएं

    कांगड़ा चाय का पहला फ्लश गुणवत्ता, अनूठी सुगंध और फल के स्वाद के लिए जानी जाती है। स्वाद के मामले में दार्जिलिंग चाय की तुलना में थोड़ी हल्की, कांगड़ा चाय में अधिक घनत्व और लिकर है। कोविड-19 संक्रमण का सामना करने के लिए शरीर की क्षमता बढ़ाने के लिहाज से टी-एचआइवी दवाइयों के सेवन को कारगर माना जा रहा है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने रोग-प्रतिरोधक शक्ति यानि इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की जगह इन दवाइयों के सेवन को बेहतर बताया गया है। इन सबके बीच हर्बल तरीकों से इम्यूनिटी बढ़ाने की भी कोशिशें की जा रही हैं।

    कहां हाे सकता है चाय उत्पादन

    समुद्र तल से 900 से 1400 मीटर की ऊंचाई पर चाय उगाई जाती। चाय के लिए वार्षिक बारिश 270 से 350 सै.मि. की अावश्यकता हाेती है। जाे इसे कांगड़ा में भी अासानी से पूरी हाे जाती है। इसलिए हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी काे अंग्रेजाें ने चाय की खेती के लिए चुना था। टी बोर्ड के आंकड़ों अनुसार करीब 2,300 एकड़ में चाय के बागान फैले हुए हैं। लेकिन जमीनी स्तर में ये एरिया घटकर 1,150 एकड़ तक पहुंच गया है। कांगड़ा-टी न केवल देश बल्कि दुनिया भर में अपने अलग-अलग फ्लेवर के लिए भी मशहूर है।

    चाय की चुस्की के साथ सैरगाह का लुत्फ

    पालमपुर की यात्रा करने वाले पर्यटकों को चाय बागानों की सैर करना कभी मिस नहीं करना चाहिए। पर्यटक यहां आकर हरे भरे चाय के बागानों के लुहावने दृश्य देख सकते हैं और पालमपुर चाय निगम चाय कारखाने में वास्तविक चाय बनाने की प्रक्रिया को देखने की भी अनुमति है। पर्यटक चाय के बागानों में कुछ शानदार तस्वीरें भी क्लिक कर सकते हैं। चाय बागानों में एक झोंपड़ी में गर्म कांगड़ा चाय के एक कप का स्वाद लेना भी आपके लिए बेहद खास साबित हो सकता है। इन उद्यानों में पैदा होने वाली चाय को विभिन्न ब्रांड नामों के तहत मार्क किया जाता है, जैसे दरबारी, बागेश्वरी, बहार और मल्हार अदि। इन सभी ब्रांडों का नाम भारतीय शास्त्रीय संगीत के विभिन्न रागों के नाम पर रखा गया है। कोई भी चाय कारखाने से सीधे इन ब्रांडों को खरीद सकता है।

    सीएसअाइअार-हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) के निदेशक डा. संजय कुमार ने बताया कि एंटी-एचआइवी दवाइओं की तुलना में कांगड़ा चाय में मौजूद केमिकल्स इम्यूनिटी बढ़ाने और कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने में भी मदद करता है।