शिमला, यादवेन्द्र शर्मा। World Alzheimer Day 2021, दिमाग का कम इस्तेमाल करने वालों को अल्जाइमर यानी डीमेंसिया रोग होता है। हालांकि यह वंशानुगत रोग भी है। सेवानिवृत्ति के बाद अपनी दिनचर्या को बदलने और मानिसक कार्य कम करने वाले इसका ज्यादा शिकार हो रहे हैं। अनुवांशिक तौर पर यह बीमारी आयु के पड़ाव से 20 वर्ष से अधिक समय पूर्व आ जाती है। प्रदेश में साठ वर्ष से अधिक आयु के 65 फीसद लोगों में अल्जाइमर रोग देखने को मिल रहा है। अल्जाइमर रोग के मामले में विश्‍व में चीन पहले और भारत दूसरे नंबर पर है। अल्जाइमर रोग भूलने का रोग है। इसका नाम अलोइस अल्जाइमर के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने सबसे पहले इसकी जानकारी दी। बीमारी के शुरुआती दौर में नियमित जांच और इलाज से इसके बढ़ने को रोका जा सकता है। अभी तक इसका कोई स्थायी उपचार नहीं है।

विशेषज्ञों की माने तो जो कम पढ़े लिखे हैं या उम्र बढ़ने के साथ दिमागी कसरत कम करते हैं, उन्हें इसका ज्यादा खतरा रहता है। प्रदेश के अस्पतालों में आने वाले रोगियों में तीस वर्ष की आयु वर्ग को भी इस रोग की चपेट में देखा जा रहा है। यह इस बात का संकेत है कि दिमाग की कोशिकाएं मर रही हैं। दिमाग में एक सौ अरब कोशिकाएं होती हैं। हर कोशिका बहुत सारी अन्य कोशिकाओं से संवाद कर एक नेटवर्क बनाती हैं और इस नेटवर्क का काम विशेष होता है।

कुछ सोचती हैं, सीखती हैं और याद रखती हैं। अन्य कोशिकाएं हमें देखने, सुनने, सूंघने आदि में मदद करती हैं। इसके अलावा अन्य कोशिकाएं हमारी मांसपेशियों को चलने का निर्देश देती हैं। शरीर को चलते रहने के लिए समन्वय के साथ बड़ी मात्रा में आक्सीजन और ईंधन की जरूरत होती है। अल्जाइमर रोग यानी भूलने की बीमारी में कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं।

यह हैं लक्षण

  • याददाश्त की कमी होना छोटी-छोटी बातें याद न रहना
  • बोलने में दिक्कत आना
  • रक्तचाप, मधुमेह, आधुनिक जीवनशैली भी कारणों में शामिल है
  • यादाश्त खोना छोटी और बड़ी बातें याद न रहना
  • सामान्य कामकाज करने में कठिनाई
  • भाषा के साथ समस्या जैसे साधारण शब्द या असामान्य समानार्थक शब्द भूलना।
  • समय और स्थान में असमन्वय कि वह कहां है कैसे आया।
  • निर्णय लेने में कठिनाई या गलत निर्णय, गर्मी में बहुत से कपड़े या ठंड में काफी कम कपड़े।
  • चीजों को गलत स्थान पर रखना
  • स्वभाव में बदलाव, अकारण ही रोने या गुस्सा करना।
  • व्यक्तित्व में बदलाव, संदेह करनेवाला, भयभीत या किसी पर अत्यधिक निर्भर।

क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ

न्यूरोलजी विभाग आईजीएमसी के विभाग अध्‍यक्ष डा. सुधीर शर्मा का कहना है जो लोग दिमाग का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, उन्हें भूलने का रोग नहीं होता है। बुजुर्गों की उपेक्षा, मानसिक तनाव, विटामिन बी की कमी अनुवांशिकता आदि इसके प्रमुख कारण हैं। दिमाग जब सिकुड़ जाता है तो यह स्थिति पैदा होती है। बेहतर खान-पान और व्यायाम सहित दिमाग के ज्यादा इस्तेमाल से इस रोग से बचा जा सकता है। सेवानिवृत्ति के बाद ऐसे ही बैठना भी इस रोग को बढ़ाता है। इसका समय पर उपचार करने से इसे बढऩे से रोका जा सकता है इसका कोई स्थायी उपचार नहीं है। हर ओपीडी में एक से दो मरीज ऐसे आ रहे हैं।

Edited By: Rajesh Kumar Sharma