Shimla Literature Festival : ...जब खाली बैठे गुलजार को विशाल भारद्वाज ने बूढ़े पहाड़ों के एलबम में दिया था ब्रेक
Shimla Literature Festival संभवत यह सुनने में बहुत ही अटपटा लगेगा कि गीतकार संगीतकार एवं निर्देशक विशाल भारद्वाज ने महानता के शिखर पर बैठे गुलजार को ब्रेक दिया था। हुआ यूं था कि लंबे समय से खाली बैठे गुलजार साहब को गीत लिखने के लिए विशाल भारद्वाज ने संपर्क किया।

शिमला, राज्य ब्यूरो। Shimla Literature Festival, संभवत: यह सुनने में बहुत ही अटपटा लगेगा कि गीतकार, संगीतकार एवं निर्देशक विशाल भारद्वाज ने महानता के शिखर पर बैठे गुलजार को ब्रेक दिया था। हुआ यूं था कि लंबे समय से खाली बैठे गुलजार साहब को 'बूढ़े पहाड़ों के एलबम' में गीत लिखने के लिए विशाल भारद्वाज ने संपर्क किया। इसी दौरान पंजाब के हालात पर माचिस फिल्म बनाने का विशाल ने इरादा किया। माचिस फिल्म की कहानी गुलजार ने लिखी, मजेदार बात ये है कि इस फिल्म के गीतों के लिए 'Situation' गुलजार के सामने रखी गई और हिट गीत सामने आए। गेयटी थियेटर के वायसराय सभागार में फिल्मी गीतों में साहित्यिक सौंदर्य को लेकर बातचीत पर आधारित कार्यक्रम में दर्शकों ने ये सत्य भी सुना कि गुलजार को विशाल भारद्वाज द्वारा दी गई 'Situation' पर गीत लिखने पड़े। इस पूरी चर्चा के दौरान बीच-बीच में ये उल्लेख सामने आता रहा कि फिल्मों के लिए गीत पहले भी फिल्म की जरूरत के हिसाब से लिखे जाते थे और आज भी।
विशाल भारद्वाज ने हारमोनियम थाम रखा था और गिटार पर साथ दे रहे थे मयूख सरकार। विशाल भारद्वाज के दिल तो बच्चा है जी से लेकर जूता करता है चुर्रर... सहित कई गानों ने माहौल बनाकर रखा। इस कार्यक्रम के दौरान ऐसा तानाबाना बुना गया था कि गुलजार फिल्मों के एक सदी के सफर का सिलसिलेवार उल्लेख कर रहे थे और मौजूदा दौर से जोड़ते हुए विशाल गाते जा रहे थे। इश्क सा उम्र के किसी भी दौर में प्यार के शब्द पहले सीधे कहे जाते थे और अब उसे तुलनात्मक ²ष्टि से आग्रह किया जाता है। थियेटर में बैठे पुराने जमाने की हर महिलाएं खिलखिलाकर हंस रही थी। क्योंकि गुलजार शाहिर लुधियानवी, शैलेंद्र, इंदीवर, शहरयार द्वारा लिए गए गीतों का उल्लेख करते हुए बता रहे थे कि किस तरह से पुराने गीतकार 'Situation' के हिसाब से तुरंत गाने लिखते थे।
भीतर साहित्य के बदलते स्वरूप पर गहन चिंतन-मंथन बाहर ठंड का अहसास
भले की साहित्य चिंतन, मंथन और गंभीरता का विषय है। इसका अंदाजा तो गेयटी थियेटर के मुख्य द्वार को लांघते ही साहित्यकारों को देखकर हो रहा था। हर सत्र के दौरान साहित्यकार, लेखक, कवि और कलाकार अपनी बात को बेहद सलीके से रख रहे थे। हाथों में लिए रखे कागजों को पढ़ते हुए इसका प्रमाण मिल रहा था। शिमला के मौसम ने सभी साहित्यकारों को हलकी सर्दी का न भूल पाने का एहसास दिया। बाहर निकलते ही मुख्य द्वार के साथ चाय के काउंटर पर हर कलाकार चाय मांगता नजर आ रहा था। रिज से दूर हिमालय की चोटियों पर पड़ी बर्फ को बैकग्राउंड में लेकर अधिकांश ने फोटो खिंचवाए। गेयटी थियेटर के एक सभागार से दूसरे सभागार तक का सफर देश के विभिन्न भागों से आए कलाकारों के लिए भारी पड़ता नजर आया। अधिक उम्र के साहित्यकारों के लिए व्हील चेयर का विशेष तौर पर प्रबंध किया गया था। लिफ्ट से रिज गेयटी थियेटर तक लाने और वापस छोडऩे की विशेष व्यवस्था थी। अधिकांश लोग शिमला के मौसम से खासे प्रभावित थे।
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