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ये वादियां बुला रही हैं तुम्‍हें: हिमाचल के वह पर्यटन स्‍थल जहां बार-बार जाना चाहेंगे आप; जानिए इनके बारे में

प्रकृति की गोद में बसी देवभूमि हिमाचल की खूबसूरती अन्य राज्यों से अलग है। हिमाचल पर प्रकृति ने वो नेमतें बख्शी हैं जो विदेशों में भी नहीं है।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Sat, 21 Sep 2019 09:27 AM (IST)Updated: Sat, 21 Sep 2019 11:49 AM (IST)
ये वादियां बुला रही हैं तुम्‍हें: हिमाचल के वह पर्यटन स्‍थल जहां बार-बार जाना चाहेंगे आप; जानिए इनके बारे में
ये वादियां बुला रही हैं तुम्‍हें: हिमाचल के वह पर्यटन स्‍थल जहां बार-बार जाना चाहेंगे आप; जानिए इनके बारे में

धर्मशाला, जेएनएन। प्रकृति की गोद में बसी देवभूमि हिमाचल की खूबसूरती अन्य राज्यों से अलग है। हिमाचल पर प्रकृति ने वो नेमतें बख्शी हैं जो विदेशों में भी नहीं है। तभी तो इस छोटे से प्रदेश में मिनी स्विट्डरलैंड, छोटी काशी, मिनी ल्हासा जैसे कई शहर बसते हैं। इसी वजह से यहां पर्यटन कारोबार में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। खास बात यह है कि हिमाचल की हर ऋतु में घूमने का लुत्फ लिया जा सकता है। प्रदेश के कई स्थान ऐसे हैं जहां हर मौसम में घूमने की अलग ही अनुभूति होती है। धार्मिक पर्यटन  के साथ-साथ यहां साहसिक खेलों के जरिये भी प्रकृति को निहारने का मौका मिलता है।

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कालका से राजधानी शिमला में पहाड़ों को चीरकर 102 सुरंगों से (पहले 103 सुरंगें थीं) होकर निकलती टॉय ट्रेन का सफर सभी को अपनी और आकर्षित करता है। प्रदेश में पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए पिछले पांच साल के दौरान एशियन विकास बैंक की मदद से 900 करोड़ रुपये की करीब 25 परियोजनाओं पर कार्य चल रहा है। प्रदेश के अनछुए पर्यटन स्थलों को विकसित करने की दिशा में प्रदेश सरकार काम कर रही है। 27 सितंबर को विश्व पर्यटन दिवस मनाया जा रहा है, ऐसे में प्रदेश के पर्यटन स्थलों की बात न हो, ऐसा नहीं हो सकता है। आइए प्रदेश के कुछ पर्यटन स्थलों के बारे में जानें...

 

समरहिल शिमला

शिमला उत्तर भारत के सबसे लोकप्रिय हिल स्टेशन में से एक है। ब्रिटिश भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी से प्रसिद्ध यह शहर अपने मनोरम प्राकृतिक सुंदरता और वातावरण की वजह से किसी भी पर्यटक को दोबारा यहां आने पर मजबूर करता है। शिमला हवाई मार्ग से, रेल से और सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। प्रसिद्ध टॉय ट्रेन कालका और शिमला के बीच चलती है। इस 96 किलोमीटर की दूरी को तय करने में इस ट्रेन को लगभग साढ़े पांच घंटे का समय लगता है। सड़क मार्ग से चंडीगढ से शिमला की दूरी लगभग 120 किलोमीटर है और साढ़े तीन घंटे में पहुंचा जा सकता है। हवाई मार्ग से भी शिमला पहुंचा जा सकता है। शिमला से 24 किलोमीटर की दूरी पर जुब्बड़हट्टी में चंडीगढ़ और दिल्ली से उड़ाने आती हैं और जुब्बड़हट्टी से टैक्सी से शिमला पहुंचा जा सकता है।

मालरोड की सैर

रिज एक बाजार ही नहीं है बल्कि यह एक शहर का एक शहर का सामाजिक केंद्र भी है। मालरोड और रिज की सैर जहां पर अंग्रेजी हकूमत में घूमने पर रोक थी। यहां से चारों ओर शिमला के प्राकृतिक नजारों का लुत्फ लिया जा सकता है। रिज और मालरोड के एक किनारे पर मात्र 200 मीटर दूरी पर माता श्यामला का मंदिर जिसके नाम पर शिमला नाम पड़ा स्थित है। रिज पर क्राइस्ट चर्च शिमला की एक खास पहचान बन गई है। मालरोड की सैर के साथ ऐतिहासिक गेयटी थिएटर को देखने का मौका मिलता है। रिज के साथ मात्र 200 मीटर नीचे जाने पर आइसस्केटिंग रिंक है जहां पर सर्दियों में प्राकृतिक बर्फ पर स्केङ्क्षटग का आंनद लिया जा सकता है। 

जाखू मंदिर

रिज से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित जाखू हिल, हिल स्टेशन की 8000 फीट पर सबसे ऊंची चोटी है। इस पहाड़ी पर हनुमान जी का प्राचीन मंदिर है। कहा जाता है कि जब हनुमान जी संजीवनी बूटी के लिए गए थे तो यहां पर कुछ देर के लिए रुके थे। यहां पर हनुमान जी की 108 फीट ऊंची मूर्ति है। जाखू की पहाड़ी पर स्थापित यह मूर्ति शहर के करीब क्षेत्र से दिखाई देती है।

कुफरी

शिमला से 17 किलोमीटर दूरी पर स्थित एक ऐसी जगह है जो यहां आने वाले पर्यटकों को बेहद आकर्षित करती है। प्रकृति प्रेमियों और साहसिक खेलों के शौकीन लोगों का यह पसंदीदा स्थल है। यहां हर मौसम में पर्यटकों की भीड़ नजर आती है।

नालेदहरा

शिमला से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नालेदहरा गोल्फ कोर्स के लिए प्रसिद्ध है। लॉर्ड कर्जन ने यहां एक गोल्फ कोर्स की स्थापना की थी। देवदार के घने पेड़ और यहां की शानदार हरियाली इस जगह के वातावरण को बेहद आकर्षक बनाती है। इस क्षेत्र में घोड़े की सवारी भी कर सकते हैं। नालदेहरा में सूर्योदय और सूर्यास्त नजारा बेहद आकर्षक लगता है।

तत्तापानी

शिमला से 55 किलोमीटर की दूरी पर तत्तापानी नामक स्थान है। यहां पर सतलुज में रिवर राफ्टिंग के साथ बोटिंग का आनंद भी लिया जा सकता है। यहां पर प्राकृतिक गर्म पानी के चश्मे भी हैं। यहां के गंधकयुक्त पानी में नहाना चर्म रोग दूर करता है, ऐसा भी प्रसिद्ध है।

कुल्लू-मनाली

कुल्लू की घाटी को देवताओं की घाटी भी कहा जाता है। बसंत ऋतु में यहां का मौसम बेहद सुहावना होता है। सर्दियों में यहां की चोटियां बर्फ की सफेद चादर से चमक उठती हैं। कुल्लू में द ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में भूरे भालू, हिम तेंदुए, बाघ और विभिन्न प्रकार के हिमालयी पक्षी देखें जा सकते हैं। कुल्लू से निकटतम रेलवे स्टेशन जोगिंद्रनगर है, जो 125 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कुल्लू जाने के लिए बस और टैक्सी आसानी से उपलब्ध होती है। हवाई मार्ग से यहां पहुंचने के लिए भुंतर एयरपोर्ट है, जो कुल्लू से मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कुल्लू जिले मनाली शहर की बात तो निराली है। यूं तो यहां हर मौसम में पर्यटकों की भीड़ रहती है, लेकिन बर्फबारी के दौरान इस शहर की रौनक कुछ अधिक बढ़ जाती है।

रघुनाथ मंदिर

कुल्लू के बीचोंबीच रघुनाथ जी का मंदिर है। इस मंदिर में स्थापित रघुनाथ जी की मूर्ति राजा जगत ङ्क्षसह ने अयोध्या से मंगवाई थी। दशहरा उत्सव पर रघुनाथ जी की शोभायात्रा के दौरान सभी देवताओं का दर्शन एक ही स्थान पर ढालपुर मैदान में किया जा सकता है। कुल्लू से करीब 20 किलोमीटर दूर नग्गर है। करीब 1400 साल तक यह कुल्लू की राजधानी रही है। यहां 16वीं शताब्दी में बने पत्थर और लकड़ी के आलीशान महल हैं जो अब होटल में बदल चुके हैं।

मणिकर्ण और बिजली महादेव

कुल्लू से 14 किलोमीटर दूर पहाड़ी बिजली महादेव का मंदिर है। यहां का मुख्य आकर्षण 100 मीटर लंबी ध्वज छड़ी है। इस ध्वज पर लगभग हर साल बिजली गिरती है। मंदिर के अंदर शिवलिंग पर भी बिजली गिरती है जिससे शिवङ्क्षलग खंडित हो जाता है। पुजारी खंडित शिवलिंग को मक्खन से जोड़ता है। कुल्लू से करीब 43 किलोमीटर दूर मणिकर्ण गर्म पानी के चश्मों के लिए प्रसिद्ध है। यहां का पानी इतना गर्म होता है कि इसमें दाल और सब्जी पकाई जा सकती है।

धौलाधार के आंचल में बसा धर्मशाला

धौलाधार के आंचल में कांगड़ा जिला का मुख्यालय धर्मशाला शहर...इसकी खूबसूरती शब्दों में बयां करना संभव नहीं है। यहां शहीद स्मारक के साथ-साथ क्रिकेट स्टेडियम जैसे कई घूमने योग्य स्थान हैं। अब केंद्र सरकार के प्रोजेक्ट के कारण धीरे-धीरे स्मार्ट बन रहे इस शहर का स्वरूप में कुछ बदला नजर आ रहा है। धर्मशाला से करीब 10 किलोमीटर दूर मैक्लोडगंज की पहचान तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा के निवास स्थान के कारण अधिक है। सड़क, रेल और हवाई यात्रा से भी धर्मशाला आसानी से पहुंचा जा सकता है। धर्मशाला से मात्र 22 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा रेलवे स्टेशन कांगड़ा मंदिर है। चंडीगढ़ से धर्मशाला 275 किलोमीटर और दिल्ली से लगभग 520 किलोमीटर की दूरी पर है। धर्मशाला से करीब 13 किलोमीटर दूर गगल स्थित हवाई अड्डे तक दिल्ली से एयर इंडिया और स्पाइस जेट की उड़ानें मिलती हैं।

शहीद स्‍मारक व शक्‍ितपीठ

शहर के बीचों-बीच घने पेड़ों से घिरा शहीद स्मारक उन वीर योद्धाओं की याद दिलाता है जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया है। शहीद स्मारक के बाहर रखा पाकिस्तान से जीता जंगी टैंक जवानों के शौर्य का प्रतीक है। यह टैंक पाकिस्तान से वर्ष 1971 के युद्ध के दौरान जीता गया था। शहीद स्मारक के साथ ही युद्ध संग्र्रहालय में भारतीय सेना के तीनों अंगों से जुड़े संघर्ष की गाथा प्रदर्शित है। धर्मशाला से 11 किलोमीटर दूर डल झील, धर्मशाला में करीब 45 किलोमीटर दूर मसरूर में रॉक टैंपल, कांगड़ा शहर से करीब दो किलोमीटर दूर कांगड़ा किला, मां बज्रेश्वरी के मंदिर समेत कई दर्शनीय स्थल हैं।

 

क्रिकेट स्टेडियम

धर्मशाला अब क्रिकेट स्टेडियम से अधिक प्रसिद्ध हो गया है। दुनिया के पांच खूबसूरत स्टेडियमों में शुमार इस स्टेडियम में लोग सिर्फ मैच देखने के लिए नहीं आते हैं बल्कि सामान्य दिनों में प्रतिदिन दो से तीन हजार लोग इसे निहारने के लिए ही आ जाते हैं। 2005 में बने इस स्टेडियम में क्रिकेट के अंतरराष्ट्रीय मैच आयोजित किए जाते हैं।

मैक्लोडगंज

धर्मशाला से करीब 10 किलोमीटर दूर मैक्लोडगंज में धर्मगुरु दलाईलामा का मंदिर है। तिब्बती संस्कृति से परिपूर्ण दलाईलामा मंदिर परिसर जिसे त्सुगलाखंग मंदिर भी कहा जाता है। यहां का शांतिपूर्ण वातावरण दुनिया भर के पर्यटकों को बेहद आकर्षित करता है। वर्ष में दो-तीन बार यहां दलाईलामा विशेष टीचिंग के जरिये उपदेश देते हैं, जिसमें कई विदेशी भी शिरकत करते हैं। मैक्लोडगंज के साथ ही नामग्यालमा स्तूप एक पुरानी बौद्ध संरचना है। इसका निर्माण उन तिब्बती सैनिकों के सम्मान में करवाया गया था जिनकी मौत तिब्बती स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुई थी। मैक्लोडगंज से करीब नौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह स्थान साहसिक गतिविधियों के शौकीन लोगों के लिए पसंदीदा स्थल बन गया है। साल में करीब तीन माह तक बर्फबारी के दिनों में यहां जाना उचित नहीं रहेगा।

चंबा

हिमाचल प्रदेश स्थित रावी नदी के तट पर बसा है चंबा। लोकगीतों में इसे इस तरह पिरोया गया है कि 'माये नी मेरिये शिमले दी राहें चंबा  कितनी की दूर। शिमले नी बसना, कसौली नी बसना, चंबे जाना जरूर...चंबे रे चगाने मेरा डेरा कुंजुआ...' आधुनिकता के रंगों में रंग जाने के बाद भी यहां लोकरंग जीवंत रूप में नजर आता है। घाटी में देवी-देवता आस्था का विषय ही नहीं जीवनशैली में घुल-मिल गए हैं। प्रदेश की सीमा पर बसे होने के कारण चंबा में हिमाचल के साथ-साथ पंजाब, जम्मू और जनजातीय क्षेत्र की संस्कृति का भी प्रभाव दिखता है। विरासत के तौर पर यहां की चप्पलें भी प्रसिद्घ हैं। चंबा का भूरि सिंह संग्रहालय शहर और आसपास की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत से परिचय कराता है। चंबा जिले के उपमंडल सलूणी से 40 किलोमीटर दूर भलेई नामक गांव में प्रसिद्ध शक्तिपीठ भद्रकाली माता का मंदिर है। यह चंबा के ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है। लक्ष्मीनारायण मंदिर मुख्य बाजार में है। मंदिर परिसर में श्री लक्ष्मी दामोदर मंदिर, महामृत्युंजय मंदिर, श्रीलक्ष्मीनाथ मंदिर, श्रीदुर्गा मंदिर, गौरी शंकर महादेव मंदिर, श्रीचंद्रगुप्त महादेव मंदिर और राधा कृष्ण मंदिर हैं। 

खजियार

मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से मशहूर खजियार चंबा से 22 किलोमीटर दूर है। स्विट्जरलैंड के राजदूत ने यहां की खूबसूरती से आकर्षित होकर सात जुलाई,1992 को खजियार को हिमाचल प्रदेश के 'मिनी स्विट्जरलैंडÓ का नाम दे गए। यहां का मौसम, चीड़ और देवदार के ऊंचे-लंबे पेड़, हरियाली, पहाड़ और वादियां स्विट््जरलैंड का एहसास कराती हैं। खजियार का आकर्षण चीड़ व देवदार के वृक्षों से ढकी झील है। झील के चारों ओर हरी-भरी मुलायम और आकर्षक घास इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देती है।

डलहौजी

अंग्रेजी शासन के समय सन 1854 में अस्तित्व में आए इस पर्यटन स्थल की दूरी चंबा से 192 किलोमीटर है। हिमाचल के कुछेक बेहद खूबसूरत पर्यटन स्थल में से एक है जहां खूबसूरत कुदरती नजारों के बीच साहसिक पर्यटन के भी काफी स्कोप हैं। डलहौजी के साथ नेताजी जी सुभाष चंद्र बोस व लेखक एवं साहित्यकार रविंद्र नाथ टैगोर जैसी महान हस्तियों का नाम भी जुड़ा है।

भरमौर

चंबा से साठ किलोमीटर की दूरी पर है धर्ममंदिर मंदिर। मान्यता है कि मरने के बाद हर व्यक्ति को इस मंदिर में जाना पड़ता है। मंदिर में एक खाली कमरा है, जिसे चित्रगुप्त का कमरा माना जाता है। कहते हैं किसी के मौत के बाद धर्मराज महाराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं।


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