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    दलाई लामा बोले, ग्रंथों से अध्ययन एवं ध्यान करने से कम होता है मोह, आगे बढ़ने में बाधा बनती हैं ये दो बातें

    By Jagran NewsEdited By: Rajesh Kumar Sharma
    Updated: Sat, 26 Nov 2022 11:54 AM (IST)

    Dalai Lama तिब्‍बती धर्म गुरु दलाई लामा ने दक्षिण कोरिया से आए अनुयायियों के लिए प्रवचन किया। दलाई लामा ने कहा मोह को कम करना है ताे ग्रंथों का ध्यान करना चाहिए। माेह हमेशा आगे बढ़ने में बाधा बनता है।

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    मैक्‍लोडगंज मुख्‍य मंदिर में दलाई लामा ने दक्षिण कोरिया से आए अनुयायियों के लिए प्रवचन किया।

    धर्मशाला, जागरण संवाददाता। दलाई लामा ने दक्षिण कोरिया से आए अनुयायियों के लिए प्रवचन किया। दलाई लामा ने कहा इस दुनिया में दूसरे बुद्ध के रूप में आचार्य नागार्जुन को माना जाता है और उन्होंने बुद्ध के शासन और दर्शन की बहुत अच्छी व्याख्या की है। इसलिए उनका स्थान महत्वपूर्ण है। दलाई लामा ने कहा मोह को कम करना है ताे ग्रंथों का ध्यान करना चाहिए। जैसे जैसे आप ग्रंथों का अभ्यास करेंगे। वैसे-वैसे हमारे मन में कलेश खत्म होते जाएंगे। इससे भी ज्यादा खुद में मैं का भाव न आने दें। मैं कोरिया से, मैं तिब्बत से हूं... यह किसी की पहचान नहीं है, ऐसे हम सच्चाई को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। मेरी तरह सभी ध्यान लगाया करें और अपने मन की आशक्ति को बाहर निकालें। मैं का भाव और मोह हमेशा आगे बढ़ने में बाधा बनता है।

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    सभी का कर्तव्‍य सुख व शांति के लिए कार्य करें

    दुनिया के हित के बारे में सोच सकते हैं तो जरूर सोचें। ऐसा न सोचें कि अकेला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता है। हम इस पृथ्वी के प्राणी हैं तो जितना हो सके उतना लोगों के हित और शांति के लिए काम करे। यह हम सभी की जिम्मेवारी भी है। चाहे हम धार्मिक व्यक्ति हों या न हों, सभी का कर्तव्य है कि सभी के सुख और शांति के लिए काम करें।

    शून्‍यता पर चिंतन करें

    दुखों के हेतु को पकड़कर रखने से कभी सुख नहीं मिलता है। इससे दुख और बढ़ता ही जाएगा। इसलिए जितना हो सके शून्यता पर चिंतन करें। हमारे ऐसे काम से मनुष्य के साथ साथ जीव जंतु भी सुखी रहेंगे। जब तक मेरा जीवन है पृथ्वी के रहने वाले लोगों के सुखों पर काम करूंगा, ऐसा विचार होना चाहिए।

    क्रोध व भय को कम करने की ओर प्रयास करना चाहिए

    मेरे मित्र शत्रु इससे आशक्ति पैदा होती है। इसलिए क्रोध व भय को कम करने की ओर प्रयास करना चाहिए। जब हमारे मन में स्वतंत्र रूप से कोई चीज नहीं है तो सब नाम मात्र रह जाएगा और कुछ नहीं होगा। चित को एक विषय भगवान बुद्ध में बहुत अच्छी व्याख्या की है। वैसे हमें देखना और अच्छा तो बहुत कुछ लगता है, लेकिन बिना परीक्षण किए हम असल में जो अच्छा है उसे प्राप्त नहीं कर सकते हैं। बिना परीक्षण किए लौकिक व्यवहार के रूप में स्वीकार न करें। अभ्यास और परीक्षण करते हुए कृतत्व की प्राप्ति होगी। शून्यता को नहीं मानेंगे तो आप जो भी देखते हैं उसका सत्य मान लें। नागार्जुन के ग्रंथों के विभिन्न अध्यायों के संक्षिप्त में वर्णन किया। जिसमें जन्म, कर्म, ध्यान, मोह, परीक्षण, तत्व, राग, धर्मसिद्धि, उत्पति, संस्कृति धर्म, कर्म कारक परीक्षा मुख्य रूप से शामिल रहे। इससे पूर्व उन्होंने अनुयायियों के ओर से आए हुए कुछ प्रश्नों की जबाव भी दिए।