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भारतीय संस्कृति में वैदिक काल से ही दिया गया पर्यावरण को महत्व

वर्तमान में पर्यावरण संरक्षण वैश्विक स्तर पर ज्वलंत मुद्दा बन गया है। पर्यावरण को सुरक्षित एवं संरक्षित रखना संपूर्ण विश्व के लिए एक संयुक्त मुद्दा है। पर्यावरण का अर्थ है परि आवरण अर्थात चारों ओर से घिरा हुआ। पर्यावरण में जल मंडल थल मंडल और वायु मंडल सम्मिलित है। अगर इनमें से कोई एक घटक भी असंतुलित होता है तो वह पर्यावरण को प्रभावित करता है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 20 Oct 2021 07:10 PM (IST)Updated: Wed, 20 Oct 2021 07:10 PM (IST)
भारतीय संस्कृति में वैदिक काल से 
ही दिया गया पर्यावरण को महत्व
भारतीय संस्कृति में वैदिक काल से ही दिया गया पर्यावरण को महत्व

वर्तमान में पर्यावरण संरक्षण वैश्विक स्तर पर ज्वलंत मुद्दा बन गया है। पर्यावरण को सुरक्षित एवं संरक्षित रखना संपूर्ण विश्व के लिए एक संयुक्त मुद्दा है। पर्यावरण का अर्थ है, परि आवरण अर्थात चारों ओर से घिरा हुआ। पर्यावरण में जल मंडल, थल मंडल और वायु मंडल सम्मिलित है। अगर इनमें से कोई एक घटक भी असंतुलित होता है तो वह पर्यावरण को प्रभावित करता है। अगर पर्यावरण प्रभावित होता है तो धरती पर मौजूद जीवन आवश्यक रूप से प्रभावित होगा। भारतीय संस्कृति में पर्यावरण को वैदिक काल से ही अत्यधिक महत्व दिया गया है।

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वेदों में कहा गया है कि मनुष्य शरीर पृथ्वी, जल, अंतरिक्ष, अग्नि और वायु जैसे पांच तत्वों से निर्मित है। यदि इनमें से एक भी तत्व दूषित होता है तो इसका प्रभाव मानव जीवन पर अवश्य पड़ेगा। यही कारण है कि प्राचीन काल से ही हमारे पूर्वजों ने प्रकृति को देवी-देवताओं का स्थान दिया है। सूर्य, चंद्रमा, अग्नि, वायु व नदियों को देवी-देवताओं के रूप में पूजा जाता था। जड़ी-बूटियों और वनस्पतियों को औषधि के रूप में प्रयुक्त किया जाता था। पेड़ों जैसे पीपल, वटवृक्ष व केला को आज भी पूजा जाता है। पेड़ों को लगाना पुत्र प्राप्ति के समान माना गया है परंतु समय परिवर्तन के साथ-साथ सब कुछ परिवर्तित होता गया। हम सब आधुनिकता के पथ पर अग्रसर हो गए। पूर्वजों की ओर से बताए गए मूल्य और संस्कार हमें अंधविश्वास लगने लगे। हम विकास और तकनीक पर गर्व करने लगे। औद्योगीकरण एवं असंख्य वाहनों के आवागमन के फलस्वरूप वायुमंडल पूर्ण रुप से दूषित हो चुका है। फसलों की पैदावार में वृद्धि करने के लिए उर्वरक एवं कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग किया जाने लगा। परिणामस्वरूप मृदा के साथ-साथ उसमें उत्पन्न होने वाले खाद्यान्न भी विषैले होने लगे हैं। उद्योगों से उत्पन्न अनावश्यक विषैले पदार्थों से नदियां भी प्रदूषित हो चुकी हैं। भूजल स्तर निम्न हो चुका है। कुल मिलाकर आज के समय में हम अन्न, जल व वायु को प्रदूषित कर चुके हैं। अधिकतर जंगल मैदानों में परिवर्तित हो चुके हैं। वन्य प्राणियों का जीवन संकट में है। बहुत सी प्रजातियां हमेशा के लिए लुफ्त हो चुकी हैं। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि पर्यावरण के सभी घटक असंतुलित एवं प्रदूषित हो चुके हैं। हम आने वाली पीढ़ी के लिए एक ऐसा ग्रह छोड़कर जा रहे हैं जिसमें जल, वायु और मृदा संपूर्ण रूप से प्रदूषित होंगे और संसाधन समाप्त हो चुके होंगे। इस सबके लिए मात्र मानव जाति ही जिम्मेदार है। जनमानस में जागृति लाने के लिए राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई अभियान चलाए जा रहे हैं। चिपको आंदोलन, जंगल बचाओ आंदोलन व नर्मदा बचाओ आंदोलन प्रमुख रहे हैं। समय-समय पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन पर सम्मेलन होते रहते हैं और इनमें अधिकतर देशों के प्रमुख हिस्सा लेते हैं परंतु पर्यावरण संरक्षण के लिए यह सब पर्याप्त नहीं है। इसमें प्रत्येक व्यक्ति को योगदान देना होगा, इसलिए एक जिम्मेदार नागरिक एवं एक सतर्क प्रहरी की भूमिका निभानी होगी। स्वामी दयानंद सरस्वती ने हमें पुन: वेदों का रुख करने के लिए कहा था। वह यह कहना चाहते थे कि वेद हमारी हर समस्या का समाधान करने में सक्षम हैं। हमें प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करना होगा। जंगलों को बचाना होगा, अधिक से अधिक पौधे लगाने होंगेतभी धरती पर जीवन संभव रहेगा। आओ सभी मिलकर प्रतिज्ञा लें कि हम पर्यावरण संरक्षण में पूर्ण योगदान देंगे।

-तरसेम कुमार शर्मा, प्रधानाचार्य सेक्रेड सोल कैंब्रिज स्कूल रोड, नूरपुर


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