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    Mahashivratri: महाशविरात्रि पर इस स्‍वयंभू शिवलिंग के दर्शन के लिए उमड़ती है भीड़, दो भागों में है विभाजित

    By Rajesh Kumar SharmaEdited By:
    Updated: Tue, 09 Mar 2021 01:02 PM (IST)

    Kathgarh Shiva Temple शिवरात्रि पर्व पर काठगढ़ मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की जाएगी। काठगढ़ मंदिर लोगों की आस्था का प्रतीक है। भगवान शिव यहां पर अर्द्धनारीश्वर रूप में विराजमान है। यहां पर पूजा अर्चना कर श्रद्धालुओं को भगवान शिव की असीम कृपा होती है।

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    शिवरात्रि पर्व पर काठगढ़ मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की जाएगी। काठगढ़ मंदिर लोगों की आस्था का प्रतीक है।

    इंदौरा, रमन कुमार। शिवरात्रि पर्व पर काठगढ़ मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की जाएगी। काठगढ़ मंदिर लोगों की आस्था का प्रतीक है। भगवान शिव यहां पर अर्द्धनारीश्वर रूप में विराजमान है। यहां पर पूजा अर्चना कर श्रद्धालुओं को भगवान शिव की असीम कृपा होती है। यहां पर न केवल हिमाचल प्रदेश बल्कि पंजाब के श्रद्धालु भी श्रद्धापूर्वक माथा टेकने व पूजा अर्चना के लिए पहुंचते हैं। हर वर्ष यहां पर शिवरात्रि पर मेले का आयोजन होता है। जिला कांगड़ा के इंदौरा उपमंडल मुख्यालय से छह किलोमीटर की दूरी पर शिव मंदिर काठगढ़ का विशेष महत्‍व है। वर्ष 1986 से पहले यहां केवल शिवरात्रि महोत्सव ही मनाया जाता था। अब शिवरात्रि के साथ रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, श्रवण मास महोत्सव, शरद नवरात्रि व अन्य समारोह मनाए जाते हैं। इसी कारण अब काठगढ़ महादेव लाखों ही शिवभक्तों की आस्था का मुख्य केंद्र है।

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    मंदिर का इतिहास

    शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार ब्रह्मा व विष्णु भगवान के मध्य बड़प्पन को लेकर युद्ध हुआ था। भगवान शिव इस युद्ध को देख रहे थे। दोनों के युद्ध को शांत करने के लिए भगवान शिव महाग्नि तुल्य स्तंभ के रूप में प्रकट हुए। इसी महाग्नि तुल्य स्तंभ को काठगढ़ स्थित महादेव का विराजमान शिवलिंग माना जाता है। इसे अर्द्धनारीश्वर शिवलिंग भी कहा जाता है। आदिकाल से स्वयंभू प्रकट सात फुट से अधिक ऊंचा, छह फुट तीन इंच की परिधि में भूरे रंग के रेतीले पाषाण रूप में यह शिवलिंग ब्यास व छौंछ खड्ड के संगम के नजदीक टीले पर विराजमान है। यह शिवलिंग दो भागों में विभाजित है। छोटे भाग को मां पार्वती तथा ऊंचे भाग को भगवान शिव के रूप में माना जाता है।

    मान्यता के अनुसार मां पार्वती और भगवान शिव के इस अर्धनारीश्वर के मध्य का हिस्सा नक्षत्रों के अनुरूप घटता-बढ़ता रहता है और शिवरात्रि पर दोनों का मिलन हो जाता है।  इतिहास मे वर्णित एक कथा के अनुसार कहते हैं कि भगवान श्री राम के भाई भरत जब भी अपने नानिहाल कश्मीर जाते थे, तब वह हमेशा इसी स्थान पर पूजा अर्चना करते थे l एक अन्य कथा के अनुसार कहते हैं कि विश्व विजेता सिकंदर अपनी सेना का उत्साह कम जानकर इसी स्थान से वापस चला गया था। कहते है कि तत्कालीन राजा के राज्य में गुज्जरों के माध्‍यम से इस शिवलिंग का पता चला था। हिन्दू-सिख एकता के प्रतीक कहे जाने वाले महाराजा रणजीत सिंह ने भी इस शिवलिंग पर मंदिर का निर्माण करवाकर विधिवत रुप से पूजा अर्चना की थी l

    मंदिर तक कैसे पहुंचे

    पंजाब, हरियाणा और देश के अन्य राज्यों से बस द्वारा सफर कर मंदिर तक पहुंचने वाले भक्तों को पठानकोट-जालंधर राष्ट्रीय राजमार्ग-1ए पर स्थित पंजाब के मीरथल नामक कस्बा में उतरकर मिलिट्री एरिया पार कर करीब दो किलोमीटर की दूरी तय कर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है l मीरथल क़स्बा से श्रद्धालुओं के मंदिर तक पहुंचने के लिए ऑटो रिक्शा की सुविधा भी है l इसके माध्यम से भी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है l पठानकोट जम्मू से आने वाले भक्त ढांगू से इंदौरा बस मे सवार होकर काठगढ़ मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

    जसूर से 27 किलोमीटर दूर इंदौरा

    हिमाचल के कांगड़ा,  धर्मशाला की तरफ से आने वाले श्रद्धालुओं को जसूर से 27 किलोमीटर सफर तय कर इंदौरा पहुंचना पड़ता है l उसके पश्चात इंदौरा से छह किलोमीटर सफर तय कर काठगढ़ मंदिर तक पहुंचा जा सकता है l रेल मार्ग से आने वाले यात्रियों के लिए पंजाब के क़स्बा मीरथल स्थित रेलवे स्टेशन पर उतरकर लगभग दो2 किलोमीटर सफर तय कर पहुंचा जा सकता है। लेकिन इस स्टेशन पर पर कुछ ही रेलगाड़ियों के रुकने की व्यवस्था है l मेल और सुपरफ़ास्ट रेलगाड़ियों के माध्यम से आने वाले श्रद्धालु पठानकोट कैंट स्टेशन पर उतरकर बस के माध्यम से या निजी टैक्सी के माध्यम से करीब 25 किलोमीटर का सफऱ तय कर मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

    मंदिर की पूजा अर्चना का जिम्मा मुख्य पुजारी महंत काली दास के परिवार के पास

    वर्तमान में इस मंदिर में पूजा का जिम्मा महंत काली दास तथा उनके परिवार के पास है। वर्ष 1998 से पूर्व उनके पिता महंत माधो नाथ के पास इस मंदिर की पूजा का उत्तरदायित्व था। इस प्राचीन मंदिर का समस्त चढ़ावा वंश परंपरा के अनुसार मंदिर के पुजारी के परिवार को ही जाता है। मंदिर परिसर के अन्दर की पूजा अर्चना और रख रखाव की  वर्तमान मे सारी जिम्मेवारी महन्त काली दास का परिवार बखूबी निभा रहा है l

    1984 मे किया गया कमेटी का गठन

    मंदिर के उत्थान के लिए वर्ष 1984 में प्राचीन शिव मंदिर प्रबंधकारिणी सभा काठगढ़ का गठन किया गया। वर्ष 1986 में इस सभा का पंजीकरण होने के बाद मंदिर में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कई विकास कार्य किए गए। सभा ने वर्ष 1995 में प्राचीन शिव मंदिर के दायें ओर श्रीराम दरबार मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर कमेटी प्रधान ओम प्रकाश कटोच बताते हैं कि श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए कमेटी ने दो लंगर हॉल, दो सराय, एक भव्य सुंदर पार्क, पेयजल की व्यवस्था तथा सुलभ शौचालयों का निर्माण करवाया है। मंदिर में कमेटी प्रतिदिन तीन बार नि:शुल्क लंगर की व्यवस्था उपलब्ध करवा रही है। इसके अलावा कमेटी समय-समय पर नि:शुल्क चिकित्सा शिविरों का आयोजन भी करवा रही है।