Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    प्रजा की प्यास बुझाने के लिए जिंदा जमीन में दफन हो गई थीं रानी सुनयना

    By Rajesh SharmaEdited By:
    Updated: Thu, 11 Apr 2019 05:08 PM (IST)

    Suhi Mela start at chamba चंबा की रानी सुनयना प्रजा की प्यास बुझाने की खातिर जिंदा जमीन में दफन हो गई थीं।

    प्रजा की प्यास बुझाने के लिए जिंदा जमीन में दफन हो गई थीं रानी सुनयना

    चंबा, जेएनएन। देवभूमि हिमाचल प्रदेश के जिला चंबा में एक मेला ऐसा भी होता है, जहां केवल महिलाएं और बच्चे ही उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। चंबा की रानी सुनयना के बलिदान की गाथा समेटे इस मेले में पुरुषों का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। छठी शताब्दी में चंबा की रानी सुनयना प्रजा की प्यास बुझाने की खातिर जिंदा जमीन में दफन हो गई थीं। इसका उल्लेख साहिल बर्मन के पुत्र युगाकर बर्मन के एक ताम्रलेख में भी मिलता है। कहा जाता है कि चंबा नगर की स्थापना के समय वहां पर पानी की बहुत समस्या थी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    इस समस्या को दूर करने के लिए चंबा के राजा ने नगर से करीब दो मील दूर सरोथा नाला से नगर तक कूहल द्वारा पानी लाने का आदेश दिया। राजा के आदेशों पर कूहल का निर्माण कार्य किया गया और कर्मचारियों के प्रयासों के बावजूद इसमें पानी नहीं आया। कथा के अनुसार एक रात राजा को स्वप्न में आकाशवाणी सुनाई दी जिसमें कहा गया कि कूहल में तभी पानी आएगा जब पानी के मूल स्रोत पर रानी या एक पुत्र को जीवित जमीन में दफना दिया जाए।

    राजा इस स्वप्न को लेकर काफी परेशान रहने लगा। इस बीच रानी सुनयना ने राजा से परेशानी की वजह पूछी तो उसने स्वप्न की सारी बात बता दी। लिहाजा रानी ने खुशी से प्रजा की खातिर अपना बलिदान देने की बात कह डाली। हालांकि राजा और प्रजा नहीं चाहती थी कि रानी पानी की खातिर अपना बलिदान दें, लेकिन रानी ने अपना हठ नहीं छोड़ा और लोकहित में ङ्क्षजदा दफन होने के लिए सबको मना भी लिया। कहा जाता है कि जिस वक्त रानी पानी के मूल स्रोत तक गई तो उसके साथ अनेक दासियां, राजा, पुत्र और हजारों की संख्या में लोग भी पहुंच गए थे। बलोटा गांव से लाई जा रही कूहल पर एक बड़ी क्रब तैयार की गई और रानी साज-श्रृंगार के साथ उसमें जब क्रब में प्रवेश कर गई तो पूरी घाटी आंसुओं से सराबोर हो गई। कहा जाता है कि क्रब से जैसे-जैसे मिट्टी भरने लगी, कूहल मेें भी पानी चढऩे लग पड़ा।

    चंबा शहर के लिए आज भी इसी कूहल में पानी बहता है, लेकिन वक्त के साथ-साथ शहर में अब नलों के जरिए इस कूहल का पानी पहुंचाया जाता है। इस तरह चंबा नगर में पानी आ गया और राजा साहिल बर्मन ने रानी की स्मृति में नगर के ऊपर बहती कूहल के किनारे रानी की समाधि बना दी। इस समाधि पर रानी की स्मृति मेें एक पत्थर की प्रतिमा विराजमान है, जिसे आज भी चंबा के लोग विशेषकर औरतें अत्यन्त श्रद्धा से पूजती हैं। प्रति वर्ष रानी की याद में 15 चैत्र से पहली बैशाखी तक मेले का आयोजन किया जाता है जिसे सूही मेला कहते हैं। मेले का नाम रानी सुनयना देवी के पहले अक्षर से रखा लगता है। इस मेले में केवल स्त्रियां और बच्चे ही जाते हैं। महिलाएं रानी की प्रशंसा में लोकगीत गाती हैं और समाधि तथा प्रतिमा पर फूल की वर्षा की जाती है।