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    दसवें सिख गुरु गोबिंद सिंह जी ने स्‍थापित किया था हिमाचल का यह शहर, अचानक यहां रुक गया था घोड़ा

    Paonta Sahib Himachal हिमाचल-उत्तराखंड की सीमा पर यमुना नदी के किनारे बसे जिला सिरमौर का पावंटा साहिब शहर सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। पांवटा साहिब को दसवें सिख गुरु गोबिंद सिंह द्वारा स्थापित किया गया था। इस जगह का नाम पहले पाओंटिका था।

    By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Updated: Sun, 09 Jan 2022 02:16 PM (IST)
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    यमुना नदी के किनारे बसे जिला सिरमौर का पावंटा साहिब शहर सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है।

    नाहन, राजन पुंडीर। Paonta Sahib Himachal, हिमाचल-उत्तराखंड की सीमा पर यमुना नदी के किनारे बसे जिला सिरमौर का पावंटा साहिब शहर सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। पांवटा साहिब को दसवें सिख गुरु गोबिंद सिंह द्वारा स्थापित किया गया था। इस जगह का नाम पहले पाओंटिका था। पौंटा शब्द का अर्थ है पैर, इस जगह का नाम इसके अर्थ के अनुसार सर्वश्रेष्ठ महत्व रखता है। ऐसा माना जाता है कि सिख गुरु गोबिंद सिंह जी अपने घोडे़ से जा रहे थे तथा इसी स्थान पर पहुंच कर उनके घोडे़ अपने आप रुक गए थे। तो गुरु गोबिन्द सिंह ने इसलिए पाओं और टीके को मिलाकर पांवटा का नाम दिया। गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसी स्थान पर गुरुद्वारा स्थापित किया था। साथ ही अपने जीवन के साढ़े चार वर्ष यही गुजरे थे।

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    गुरुद्वारा के अंदर श्रीतालाब स्थान, वह जगह है। जहां से गुरु गोबिंद सिंह वेतन वितरित करते थे। इसके अलावा गुरुद्वारे में श्रीदस्तर स्थान मौजूद है। जहां माना जाता कि वे पगड़ी बांधने की प्रतियोगिताओं में न्याय करते थे। गुरुद्वारा का एक अन्य आकर्षण एक संग्रहालय है, जो गुरु के उपयोग की कलम और अपने समय के हथियारों को दर्शाती है।

    संक्राति 1742 संवत को रखी गई थी पांवटा साहिब की नींव

    गुरु गोबिंद सिंह जी का यमुना नदी के तट पर बसाया नगर पांवटा साहिब इतिहास की कई महान घटनाओं को संजोये हुए है। एक तरफ जहां सिख धर्म के इतिहास में विशेष स्थान रखता है। तो दूसरी तरफ सिखों के गौरवमयी इतिहास की यादों को ताजा करता है। इस धरती पर पांवटा साहिब ही एक ऐसा नगर है। जिसका नामकरण स्वयं गुरु गोबिन्द सिंह जी ने किया है। इतिहास में लिखा है कि गुरु गोबिन्द सिंह जी 17 वैशाख संवत 1742 को 1685 ई. को नाहन पहुंचे तथा संक्राति 1742 संवत को पांवटा साहिब की नींव रखी।  

    साढ़े 4 वर्ष रहे पांवटा साहिब में गुरु गोबिन्द सिंह जी

    गुरु गोबिंद सिंह जी साढ़े 4 साल तक पांवटा साहिब में रहे। इस दौरान उन्होंने यहां रहकर बहुत से साहित्य तथा गुरुवाणी की रचनांए भी की हैं। प्राचीन साहित्य का अनुभव और ज्ञान से भरी रचनाओं को सरल भाषा में बदलने का काम भी गुरु गोबिन्द सिंह जी ने लेखकों से करवाया। गुरु गोबिन्द सिंह जी यहां पर एक कवि दरबार स्थान की स्थापना की। जिसमें 52 भाषाओं के भिन्न-भिन्न कवि थे। कवि दरबार स्थान पर गुरु गोबिन्द सिंह जी पूर्णमासी की रात को एक विशेष कवि दरबार भी सजाया जाता था।

    राजा मेदनी प्रकाश ने रियासत को बचाने के लिए गुरु गोबिन्द सिंह से किया था नाहन आने का आग्रह

    इतिहास के पन्नों के अनुसार बाईस धार के राजाओं में परस्पर लड़ाई झगड़े चलते रहते थे। नाहन रियासत के तत्कालीन राजा मेदनी प्रकाश का कुछ इलाका श्रीनगर गढ़वाल के राजा फतहशाह ने अपने कब्जे में कर लिया थे। राजा मेदनी प्रकाश अपने क्षेत्र को वापिस लेने में विफल रहा था। राजा मेदनी प्रकाश ने रियासत के प्रसिद्ध तपस्वी ऋषि काल्पी से सलाह मांगी। उन्होंने कहा कि दसवें गुरु गोबिन्द सिंह जी को अपनी रियासत में बुलाओ, वही तुम्हारा संकट दूर कर सकते हैं। राजा मेदनी प्रकाश के आग्रह पर गुरु गोबिन्द सिंह जी नाहन पहुंचे। जब गुरु जी नाहन पहुंचे, तो राजा मेदनी प्रकाश, उनके मंत्रियों, दरबारियों व गुरु घर के सैकड़ों श्रद्धालुओं ने उनका शानदार और परंपरागत स्वागत किया। कुछ दिन नाहन रहकर गुरु गोबिन्द सिंह जी इलाके का दौरा किया और कई स्थान देखे। 10वें गुरु गोबिंद सिंह ने 1686 में अपनी पहली लड़ाई लड़ी थी। गुरु गोबिंद सिंह ने 20 वर्ष की कम आयु में यह लड़ाई लड़ी, जिसमें राजा फतेह साहिब को हाराया था। बिना प्रशिक्षण एकत्रित फौज को बाईसधार के राजाओं के मुकाबले में लाकर उनकी 25 हजार फौज की कमर तोड़ दी थी। इसी युद्ध से गुरु जी ने जुल्म के विरुद्ध जंग लडऩे का ऐलान किया और एक-एक करके 13 युद्ध लड़े।

    पांवटा साहिब गुरुद्वारा में है सोने से बनी पालकी

    पांवटा साहिब गुरुद्वारा दुनिया भर में सिख धर्म के अनुयायियों के लिए एक बहुत ही उच्च ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखता है। इस गुरुद्वारे के धार्मिक महत्व का एक उदाहरण है। यहां पर रखी हुई पालकी, जो कि शुद्ध सोने से बनी है। यह पालकी किसी भक्त ने दानस्वरुप दी है। लोक कथाओं के अनुसार पास में बहती यमुना नदी जब बहुत शोर के साथ बहती थी। तब गुरु जी के अनुरोध पर यमुना नदी गुरूद्वारा के समीप से शांत होकर बहने लगी, जिससे गुरुजी यमुना किनारे बैठकर दसम् ग्रंथ लिख सके। तब से यहां पर यमुना नदी गुरुद्वारा की सीमा में बिलकुल शांत होकर बहती आ रही है। इसी जगह पर सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह ने सिख धर्म के शास्त्र दसम् ग्रंथ या दसवें सम्राट की पुस्तक का एक बड़ा हिस्सा लिखा था।

    विशेष आयोजन के दौरान गुरुद्वारे का खूबसूरत दृश्य

    यमुना नदी के तट पर बसा यह गुरुद्वारा विश्व प्रसिद्ध है। यहां पर भारत से ही नहीं, अपितु दुनियाभर से श्रद्धालु आते हैं। पांवटा साहिब आने वाला प्रत्येक यात्री चाहे वह किसी भी धर्म से संबंधित क्यों न हो, गुरुद्वारे में माथा टेकना नहीं भूलता है। प्रतिवर्ष होला मोहल्ला पर्व भी पांवटा साहिब में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। जिसमें सभी धर्मों के लोग बढ़चढ़ कर भाग लेते हैं। धार्मिक आस्था रखने वालों के लिए यह स्थान अति महत्वपूर्ण है। यह स्थान देश के सभी प्रमुख स्थानों से सडक़ मार्ग से वर्ष भर जुड़ा हुआ है।

    कैसे पंहुचें पांवटा साहिब व कहां से कितनी दूरी

    पांवटा साहिब शहर वर्तमान में चंडीगढ़-देहरादून एनएच 07 पर स्थित है। दिल्ली, चंडीगढ़, देहरादून, शिमला, यमुनानगर, अंबाला व पंजाब के कई शहरों से सीधी बस सेवा उपलब्ध रहती है। सबसे नजदीक के रेलवे स्टेशन अंबाला, यमुनानगर, चंडीगढ़ व देहरादून हैं। जबकि सबसे नजदीक के एयरपोर्ट चंडीगढ़ व देहरादून है। जिला मुख्यालय नाहन 45 किलोमीटर, यमुनानगर 50 किलोमीटर, चंडीगढ़ 125 किलोमीटर, अंबाला 105 किलोमीटर, शिमला से वाया सराहां-नाहन 190 किलोमीटर तथा देहरादून से 45 किलोमीटर दूर है।

    क्‍या कहती है प्रबंधन कमेटी

    पांवटा साहिब गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी के प्रबंधक जगीर सिंह ने बताया गुरुद्वारा साहिब में गुरु का अटूट लंगर बरता जाता है। देश-विदेश के आने वाले श्रद्वालुओं के ठहरने के लिए गुरुद्वारा में विशेष सुविधा है। यह गुरुद्वारा गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा बनाया गया है। गुरुद्वारा में प्रदेश सरकार के कोविड नियमों का पालन किया जा रहा है।