Move to Jagran APP

Shardiya Navratri: रोगाें से मुक्ति दिलाती हैं माता हाटेश्‍वरी, 800 वर्ष पुराने मंदिर में मां की विशाल प्रतिमा

Mata Hateshwari Mandir Shimla देवभूमि हिमाचल प्रदेश में कई मंदिर हैं। जिला शिमला के रोहडू क्षेत्र में स्थित शक्तिपीठ माता हाटकोटी मंदिर खास है। यह शिमला से करीब 100 किलोमीटर की दूरी व समुद्रतल से 1370 मीटर की ऊंचाई पर पब्बर नदी के दाहिने किनारे समतल स्थान पर स्थित है।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Published: Sat, 01 Oct 2022 08:51 AM (IST)Updated: Sat, 01 Oct 2022 09:52 AM (IST)
Shardiya Navratri: रोगाें से मुक्ति दिलाती हैं माता हाटेश्‍वरी, 800 वर्ष पुराने मंदिर में मां की विशाल प्रतिमा
जिला शिमला के रोहडू क्षेत्र में स्थित शक्तिपीठ माता हाटकोटी मंदिर

रोहडू, जागरण टीम। Mata Hateshwari Mandir Shimla, जिला शिमला के रोहडू क्षेत्र में स्थित शक्तिपीठ माता हाटकोटी मंदिर है। यह शिमला से करीब 100 किलोमीटर की दूरी व समुद्रतल से 1370 मीटर की ऊंचाई पर पब्बर नदी के दाहिने किनारे समतल स्थान पर स्थित है। तहसील जुब्बल कोटखाई में मां हाटेश्वरी का प्राचीन मंदिर है। हाटेश्वरी माता समस्त दुखों का निवारण करने वाली हैं। माता रोग शोक का नाश करती हैं। इसी मान्यता से लोग दरबार में पहुंचते हैं और समस्त रोगों से मुक्ति पाते हैं।

loksabha election banner

800 वर्ष पुराने मंदिर में है मां की विशाल प्रतिमा

मान्यता है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण 700-800 वर्ष पहले हुआ था। मंदिर के साथ लगते सुनपुर के टीले पर कभी विराट नगरी थी जहां पर पांडवों ने अपने गुप्त वास के कई वर्ष व्यतीत किए। यहां माता के मंदिर में शिल्पकला, वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूनों के साक्षात दर्शन होते हैं। माता हाटेश्वरी का मंदिर विशकुल्टी, राईनाला और पब्बर नदी के संगम पर सोनपुरी पहाड़ी पर स्थित है। मूलरूप से यह मंदिर शिखराकार नागर शैली में बना हुआ था, बाद में एक श्रद्धालु ने इसकी मरम्मत कर इसे पहाड़ी शैली के रूप में परिवर्तित किया। मंदिर के दक्षिण पश्चिम में चार छोटे शिखर शैली के मंदिर देखने को मिलते हैं। यह मुख्य अर्धनारिश्वरी मंदिर के अंग माने जाते हैं। मां हाटकोटी के मंदिर में एक गर्भगृह है, जिसमें मां की विशाल मूर्ति विद्यमान है यह मूर्ति महिषासुर मर्दिनी की है इतनी विशाल प्रतिमा केवल हिमाचल में ही नहीं बल्कि भारत के प्रसिद्ध देवी मंदिरों में भी देखने को नहीं मिलती।

तपस्‍या में लीन कन्‍या बन गई थी पत्‍थर की प्रतिमा

मान्यता है कि बहुत वर्षों पहले एक ब्राह्मण परिवार में दो सगी बहनें थीं उन्होंने अल्प आयु में ही सन्‍यास ले लिया और घर से भ्रमण के लिए निकल पड़ीं। उन्होंने संकल्प लिया कि वे गांव-गांव जाकर लोगों के दुख दर्द सुनेंगी और उसके निवारण के लिए उपाय बताएंगी। दूसरी बहन हाटकोटी गांव पहुंची जहां मंदिर स्थित है उसने यहां एक खेत में आसन लगाकर ईश्वरीय ध्यान किया और ध्यान करते हुए वह लुप्त हो गईं। जिस स्थान पर वह बैठी थी वहां एक पत्थर की प्रतिमा निकल पड़ी।

राजा ने चमत्‍कार देखकर किया मंदिर बनाने का निश्‍चय

इस आलौकिक चमत्कार से लोगों की उस कन्या के प्रति श्रद्धा बढ़ी और उन्होंने इस घटना की पूरी जानकारी तत्कालीन जुब्बल रियासत के राजा को दी। जब राजा ने इस घटना को सुना तो वह तत्काल पैदल चलकर यहां पहुंचे और इच्छा प्रकट की कि वह प्रतिमा के चरणों में सोना चढ़ाएंगे, जैसे ही सोने के लिए प्रतिमा के आगे कुछ खुदाई की तो वह दूध से भर गया। उसके उपरांत खोदने पर और राजा ने यहां पर मंदिर बनाने का निश्चय ले लिया। लोगों ने उस कन्या को देवी रूप माना और गांव के नाम से इसे ''हाटेश्वरी देवी'' कहा जाने लगा।

यह भी पढ़ें: Shardiya Navratri: भक्‍तों के दुख हरती है मां चिंतपूर्णी, ध्‍यान करने मात्र से दूर हो जाती है चिंता, बेहद रोचक है इतिहास व मान्‍यता

लोहे की जंजीरों में बंधा ताम्र कलश है खास

मंदिर में स्थायी पुजारी ही गर्भगृह में जाकर मां की पूजा कर सकते हैं। मंदिर के बाहर प्रवेश द्वार के बाईं ओर एक ताम्र कलश लोहे की जंजीर से बंधा है जिसे स्थानीय भाषा में चरू कहा जाता है। चरू के गले में लोहे की जंजीर बंधी है। यहां सावन भादों में जब पब्बर नदी में बाढ़ की स्थिति होती है तब हाटेश्वरी मां का यह चरू सीटियां भरता है और भागने का प्रयास करता है। मंदिर के दूसरी ओर बंधा चरू नदी के वेग से भाग गया था, जबकि पहले वाले को मंदिर पुजारी ने पकड़ लिया था चरू पहाड़ी मंदिरों में कई जगह देखने को मिलते हैं। इनमें यज्ञ में ब्रह्मा भोज के लिए बनाया गया हलवा रखा जाता है।

अज्ञातवास के दौरान आए थे पांडव

हाटकोटी मंदिर रोहडू के पुजारी दलीप शास्त्री का कहना है हाटकोटी माता को महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में आने से अपार लोगों को शांति का अनुभव होता है। यहां पर दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते हैं। नवरात्र में यहां पर श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए पुलिस व होमगार्ड के जवान तैनात किए जाते हैं, ताकि लोगों को आने-जाने में सुविधा हो। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां अज्ञात वास के समय में पांडव आए थे और यहां कुछ दिन बिताए। इसका प्रमाण आज भी यहां देखने को मिलते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.