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    विकास के दावों में कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को जनहित में लागू न करना सरकार की दोहरी नीति: संघर्ष मोर्चा

    By Richa RanaEdited By:
    Updated: Sat, 07 May 2022 09:44 AM (IST)

    सरकारें आमजन के विकास को लेकर दावे करतीं हैं परंतु जनहित में हाईकोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों को लागू ना करना सरकार कथनी व करनी को लेकर दोहरी नीति में विश् ...और पढ़ें

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    हाईकोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों को लागू ना करना, सरकार कथनी व करनी को काे दर्शाता है।

    पालमपुर, संवाद सहयोगी। सरकारें आमजन के विकास को लेकर लंबे चौड़े दावे करतीं हैं परंतु जनहित में हाईकोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों को लागू ना करना, सरकार कथनी व करनी को लेकर दोहरी नीति में विश्वास काे दर्शाता है। 2008 में हुईं नियुक्तियाें काे पुराने आरएंडपी रुलज के तहत नियमित रखने का प्रावधान के बावजूद तत्कालीन धूमल सरकार ने शिक्षा विभाग में नियुक्तियां अनुबंध में कर दीं। यह बात अध्यापक संघ राज्य मीडिया सचिव एवं न्यू मूवमेंट फार ओल्ड पेंशन संघ राज्य अध्यक्ष प्रवीण शर्मा ने जारी एक ब्यान में समानता के अधिकार के तहत अपना पक्ष रखते हुए कहा कि हाईकोर्ट के फैसलों को सरकार नहीं मान रही है।

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    उन्होंने बताया कि 2008 में पुराने आरंएडपी रूल्स के तहत स्कूलों में शिक्षकों की नियमित भर्तियाें काे चुनाैती देने वाली हाईकोर्ट की अंतिम बैंच ने फैसले में शिक्षकों को नियुक्ति तिथि से नियमित करने के आदेश सरकार काे दिए थे मगर सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले का भी सम्मान नहीं किया। उन्होंने कहा कि पीड़ित लोग ना ही हक की आवाज बुलंद कर सकते हैं और सरकार फरियादियाें की सुनती नहीं है।

    2008 में मात्र 8220 रुपये में इन शिक्षकों को दूरदराज इलाकों में भेजा गया। अब 2008 में नियुक्त बहुत से शिक्षक रिटायर हो चुके हैं। एलपीए-54 के तहत यदि सरकार हाईकोर्ट के फैसले के तहत लाभ देती है, तो हजारों लोगों के साथ-साथ सरकार का गुणगान करने वाले भी जिंदा रहेंगे। उन्हाेंने कहा कि यदि 2003 के बाद नियुक्त कर्मचारियाें काे पेंशन नहीं दी तो सबकी पेंशन बंद की जाए। ताकि समानता का अधिकार जिंदा रहे।