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    हिमाचल: श्रीरेणुकाजी को माना जाता है भगवान परशुराम की जन्‍मस्‍थली, बना है भव्‍य मंदिर व झील, जानिए मान्‍यता

    By Rajesh Kumar SharmaEdited By:
    Updated: Tue, 03 May 2022 07:58 AM (IST)

    Parshuram Jayanti 2022 भगवान परशुराम के जन्म स्थान को लेकर कई विरोधाभास हैं। कुछ साहित्यकार भगवान विष्णु का जन्म स्थल श्रीरेणुकाजी मध्यप्रदेश के इंदौर ...और पढ़ें

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    हिमाचल प्रदेश के श्रीरेणुका जी में स्‍थापित भगवान परशुराम और माता श्रीरेणुकाजी का मंदिर।

    नाहन, राजन पुंडीर। Parshuram Jayanti 2022, भगवान परशुराम के जन्म स्थान को लेकर कई विरोधाभास हैं। कुछ साहित्यकार भगवान विष्णु का जन्म स्थल श्रीरेणुकाजी, मध्यप्रदेश के इंदौर तथा उत्तर प्रदेश के बलिया के समीप बताते हैं। जिला सिरमौर के श्रीरेणुकाजी में परशुराम की माता की नारी देह में बनी हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी प्राकृतिक झील झील है, इसके साथ परशुराम ताल भी है। भगवान परशुराम का जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन-रात्रि के प्रथम प्रहर में हुआ था। इनका जन्म समय सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन-रात्रि के प्रथम प्रहर में हुआ था।

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    मान्यता है कि पराक्रम के प्रतीक भगवान परशुराम का जन्म 06 उच्च ग्रहों के योग में हुआ, इसलिए वह तेजस्वी, ओजस्वी और वर्चस्वी महापुरुष बने। भगवान परशुराम जी का जन्म अक्षय तृतीया पर हुआ था। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम प्रहर में उच्च के ग्रहों से युक्त मिथुन राशि पर राहु के स्थित रहते माता रेणुकाजी के गर्भ से भगवान परशुराम का प्रादुर्भाव हुआ था। अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम की जन्म तिथि माना जाता है। इस तिथि को प्रदोष व्यापिनी रूप में ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि भगवान परशुराम का प्राकट्य काल प्रदोष काल ही है।

    भगवान परशुराम का जन्मोत्सव

    हिन्दू कैलेंडर इस दिन को वैशाख माह के शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन यानि अक्षय तृतीया को मनाता है। एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे परशुराम महर्षि जमदग्नि और रेणुका के पांचवें पुत्र थे। मान्यता है कि पराक्रम के प्रतीक भगवान परशुराम का जन्म 06 उच्च ग्रहों के योग में हुआ, इसलिए वह तेजस्वी, ओजस्वी और वर्चस्वी महापुरुष बने। वे एक अच्छी तरह से निर्मित काया के साथ, ताकत और अपार शक्ति के ऋषि माने जाते हैं। अपनी भक्ति और तपस्या (तपस्या) से परशुराम जी ने भगवान शिव को प्रसन्न किया। जिसके चलते शिव ने उन्‍हें अपने शक्तिशाली हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के लिए एक फरसा दिया।

    यह दिन देश के अधिकांश हिस्सों में अक्षय तृतीया के रूप में भी प्रसिद्ध है और मनाया जाता है। सनातन धर्म में भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। फरसे के साथ राम के नाम से लोकप्रिय, परशुराम शक्ति, ज्ञान और नैतिकता के प्रतीक हैं। भगवान परशुराम किसी समाज विशेष के आदर्श ही नहीं हैं, बल्कि वह संपूर्ण हिंदू समाज के हैं और उन्हें चिरंजीवी माना जाता है। इनका जन्म समय सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है। उन्हें सतयुग में जब एक बार गणेश जी ने परशुराम को शिव दर्शन से रोक लिया तो, रुष्ट परशुराम ने उन पर परशु प्रहार कर दिया, जिससे गणेश का एक दांत टूट गया और वे एकदंत कहलाए। वहीं भगवान विष्णु के सातवें अवतार राम के काल यानि त्रेता युग में वे सीता स्वयंवर में सामने आए, मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान राम ने जब शिव धनुष को तोड़ा, तो परशुराम जी महेंद्र पर्वत पर तपस्या में लीन थे, लेकिन जैसे ही उन्हें धनुष टूटने का पता चला तो क्रोध में आ गए। जब उन्हें प्रभु श्रीराम के बारे में मालूम हुआ। तो उन्होंने श्रीराम को प्रणाम किया बाद में श्रीराम ने परशुराम जी को अपना सुदर्शन चक्र भेंट किया और बोले द्वापर युग में जब उनका अवतार होगा, तब उन्हें इसकी जरूरत होगी। इसके बाद भगवान विष्णु के आठवें श्रीकृष्ण के काल यानि द्वापर युग में भी उन्हें देखा गया। द्वापर में उन्होंने कौरव-सभा में कृष्ण का समर्थन किया और इससे पहले उन्होंने श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र उपलब्ध करवाया था। इसके अलावा द्वापर में ही उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्र विद्या प्रदान की थी। मान्यता है कि वे कलिकाल के अंत में उपस्थित होंगे। ऐसा माना जाता है कि वे कल्प के अंत तक धरती पर ही तपस्यारत रहेंगे। पौराणिक कथा में वर्णित है कि महेंद्रगिरि पर्वत पर तपस्यारत होने के लिए चले गए थे।

    मां रेणुकाजी से मिलने वर्ष में एक बार आते हैं परशुराम

    कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक भगवान परशुराम जामूकोटी से वर्ष में एक बार अपनी मां रेणुकाजी से मिलने आते हैं। श्री रेणुकाजी में नारी देह के आकार की प्राकृतिक झील जिसे मां रेणुका जी की प्रतिछाया भी माना जाता है, स्थित है। इसी झील के किनारे मां श्री रेणुका जी व भगवान परशुराम जी के भव्य मंदिर स्थित हैं। महर्षि जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी, जिसे पाने के लिए सभी तत्कालीन राजा ऋषि लालायित थे। राजा अर्जुन ने वरदान में भगवान दतात्रेय से एक हजार भुजाएं पाई थी जिसके कारण वह सहस्त्रार्जुन कहलाए जाने लगा। एक दिन वह महर्षि जमदग्नि के पास कामधेनु मांगने पहुंच गया। महर्षि जमदग्नि ने सहस्त्रबाहु एवं उसके सैनिकों का खूब सत्कार किया तथा उसे समझाया कि कामधेनु गाय उसके पास कुबेर जी की अमानत है। जिसे किसी को नहीं दिया जा सकता। यह सुनकर गुस्साए सहस्त्रबाहु ने महर्षि जमदग्नि की हत्या कर दी। यह सुनकर मां रेणुका शोकवश राम सरोवर में कूद गई। राम सरोवर ने मां रेणुका की देह को ढकने का प्रयास किया, जिससे इसका आकार स्त्री देह समान हो गया। उधर भगवान परशुराम महेन्द्र पर्वत पर तपस्या में लीन थे। फिर योगशक्ति से उन्हें अपनी जननी एवं जनक के साथ हुए घटनाक्रम का अहसास हुआ और उनकी तपस्या टूट गई। परशुराम अति क्रोधित होकर सहस्त्रबाहु को ढूंढने निकल पड़े तथा उसे आमने-सामने के युद्ध के लिए ललकारा। भगवान परशुराम ने सेना सहित सहस्त्रबाहु का वध कर दिया। तत्पश्चात् भगवान परशुराम ने अपनी योगशक्ति से पिता जमदग्नि तथा मां रेणुका को जीवित कर दिया।