परमवीर चक्र विजेता संजय कुमार को मिला हिमाचल गौरव पुरस्कार, दुश्मन की मशीनगन से ही कर दिया था उनका सफाया
Param Vir Chakra Sanjay Kumar सूबेदार संजय कुमार भारतीय सेना के वह सिपाही हैं जिन्होंने कारगिल युद्ध में एरिया फ्लैट टॉप पर कब्ज़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी इस बहादुरी के लिए उन्हें 1999 में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

बिलासपुर, सुनील शर्मा। Param Vir Chakra Sanjay Kumar, सूबेदार संजय कुमार भारतीय सेना के वह सिपाही हैं, जिन्होंने कारगिल युद्ध में एरिया फ्लैट टॉप पर कब्ज़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी इस बहादुरी के लिए उन्हें 1999 में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। अब हिमाचल प्रदेश सरकार भारतीय सेना के इस बहादुर सैनिक को हिमाचल गौरव सम्मान से नवाजा है। हिमाचल सहित जिला बिलासपुर के निवासियों के लिए यह गौरव की बात है कि सूबेदार संजय कुमार जैसे साहसी सैनिक ने हिमाचल की धरती पर जन्म लिया और देश की एक महत्वपूर्ण लड़ाई में अपना संपूर्ण योगदान दिया।
आज सारा हिमाचल देश की आजादी का 75 वां जश्न मना रहा है, इसी जश्न के साथ प्रदेश सूबेदार संजय कुमार को हिमाचल गौरव सम्मान मिलने से भी उत्साहित है। आज मंडी में आयोजित 15 अगस्त के समारोह में प्रदेश के मुख्यमंत्री उन्हें इस सम्मान से नवाजा गया। इस खास मौके लिए सूबेदार संजय कुमार शनिवार को ही मंडी पहुंच गए थे।
बिलासपुर के बकैन से हैं सूबेदार संजय
संजय कुमार अभी 45 वर्ष की उम्र में हैं। उनका जन्म तीन मार्च 1976 को हुआ था और दसवीं तक की पढ़ाई उन्होंने अपने पैतृक गांव बकैन के निकटवर्ती स्कूल कलोल से की। उनके पीटीई जगदीश चंदेल बताते हैं कि वह कबड्डी और वॉलीबाल के बेहतर खिलाड़ी हुआ करते थे। दसवीं के बाद वह भर्ती के लिए गए थे और उनका चयन हो गया। हालांकि यह भी बताया जाता है कि सेना में शामिल होने से पहले उन्होंने दिल्ली में टैक्सी चालक का काम भी किया है।
23 साल की उम्र में देश के लिए खाई तीन गोलियां
संजय कुमार चार व पांच जुलाई को कारगिल में मस्को वैली प्वाइंट पर फ्लैट टॉप पर 11 साथियों के साथ तैनात थे। यहां दुश्मन ऊपर पहाड़ी से हमला कर रहा था। इस टीम में 11 साथियों में से दो शहीद हो चुके थे, जबकि आठ गंभीर रूप से घायल थे। संजय कुमार भी अपनी राइफल के साथ दुश्मनों का कड़ा मुकाबला कर रहे थे, लेकिन एक समय ऐसा आया कि संजय कुमार की राइफल में गोलियां खत्म हो गई। इस बीच संजय कुमार को भी तीन गोलियां लगी, इनमें दो उनकी टांगों में और एक गोली पीठ में लगी। संजय कुमार घायल हो चुके थे। ऐसी स्थिति में गम्भीरता को देखते हुए राइफल मैन संजय कुमार ने तय किया कि उस ठिकाने को अचानक हमले से खामोश करा दिया जाए। इस इरादे से संजय ने अचानक ही उस जगह हमला करके आमने-सामने की मुठभेड़ में तीन दुश्मन सैनिकों को मार गिराया और उसी जोश में गोलाबारी करते हुए दूसरे ठिकाने की ओर बढ़े। संजय इस मुठभेड़ में खुद भी लहू लुहान हो गए थे, लेकिन अपनी ओर से बेपरवाह वो दुश्मन पर टूट पड़े। अचानक हुए हमले से दुश्मन बौखला कर भाग खड़ा हुआ और इस भगदड़ में दुश्मन अपनी यूनीवर्सल मशीनगन भी छोड़ गए। संजय कुमार ने वो गन भी हथियाई और उससे दुश्मन का ही सफाया शुरू कर दिया।
संजय के इस कारनामे को देखकर उसकी टुकड़ी के दूसरे जवान बहुत उत्साहित हुए और उन्होंने बेहद फुर्ती से दुश्मन के दूसरे ठिकानों पर धावा बोल दिया। जख्मी होने के बावजूद संजय कुमार तब तक दुश्मन से जूझते रहे थे, जब तक कि प्वाइंट फ्लैट टॉप पाकिस्तानियों से पूरी तरह खाली नहीं हो गया। इसके बाद प्लाटून की कुमुक सहायतार्थ वहां पहुंची और घायल संजय कुमार को तत्काल सैनिक अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। आज अब सूबेदार संजय कुमार देहरादून में अपनी सेवाएं दे रहे हैं और भारत के लिए सैनिक तैयार करने में अपनी अहम भूमिका अदा कर रहे हैं।
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