Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Shimla Literature Festival : प्रवासी भारतीय साहित्यकारों ने बयां की पहाड़ों की रानी की सुंदरता

    By Virender KumarEdited By:
    Updated: Sat, 18 Jun 2022 07:54 AM (IST)

    Shimla Literature Festival बारिश का मौसम सभी को भाता है। आसमान पेंटिंग की तरह दिखाई देता है। कहीं बादल तो कहीं धुंध नजर आती है। मेघ मल्हार में भगवान शिव पार्वती के साथ खुशी से नृत्य करते हैं।

    Hero Image
    प्रवासी भारतीय-साहित्यिक अभिव्यक्तियां' विषय पर आयोजित सत्र में साहित्यकारों ने प्रवासी शब्द का मतलब समझाया।

    शिमला, जागरण संवाददाता। Shimla Literature Festival, 'प्रवासी भारतीय-साहित्यिक अभिव्यक्तियां' विषय पर आयोजित सत्र में साहित्यकारों ने प्रवासी शब्द का मतलब समझाया। सत्र में यूएसए से आए विजय शेषाद्रि, चित्रा बनर्जी दिवाकरुणी, मंजुला पद्मनाभन, यूके से दिव्या माथुर, सुनेत्र गुप्ता (आनलाइन), मेडागास्कर से अभय के, साउथ अफ्रीका से अंजू रंजन, नीदरलैंड से पुष्पिता अवस्थी और नार्वे से सुरेश चंद्र शुक्ल ने भाग लिया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अभय के ने कविता के माध्यम से बताया कि बारिश का मौसम सभी को भाता है। आसमान पेंटिंग की तरह दिखाई देता है। कहीं बादल तो कहीं धुंध नजर आती है। मेघ मल्हार में भगवान शिव पार्वती के साथ खुशी से नृत्य करते हैं। शिमला हिल्‍स सुहावनी लगती हैं और मालरोड में बारिश के बीच रंग-बिरंगे छाते लेकर घूमते लोग, बारिश में चमकता चर्च और जाखू मंदिर मनमोहक दिखता है।

    साहित्यकार दिव्या माथुर ने कहा कि प्रवासी महिलाओं के जीवन को बताना लेखिकाओं की जिम्मेदारी है। महिलाओं मं पुरुषों से अधिक काम करने की क्षमता होती है, वे मल्टी टास्क होती हैं। 1999 में भारत के बहुत से लेखकों से मिलने का मौका मिला। पहले विदेश में हिंदी साहित्य की बात नहीं होती थी। वहां विश्वविद्यालयों में हिंदी साहित्य में कुछ नहीं रचा जा रहा था, इसलिए 1998 और 2002 में हिंदी का संपादन करना शुरू किया और हिंदी में कई पुस्तकें लिखी। इसके बाद विदेश में हिंदी साहित्य में लोगों की रुचि बढ़ी। इसमें 22 लेखिकाएं भी शामिल हुईं। भारतीय जहां कहीं भी रह रहे हैं, वे कभी नहीं बदलते। कई संस्थाएं हिंदी के प्रचार के लिए संवाद, बाल साहित्य का प्रकाशन करती हैं।

    अंजू रंजन ने उत्तर प्रदेश और बिहार से दक्षिण अफ्रीका पहुंचाए मजदूरों पर बात कही। पुष्पिता अवस्थी ने प्रवासी भारतीयों के इतिहास के बारे में गहराई से बताया। उन्होंने कहा कि प्रवासी साहित्य भारत से बाहर दूसरी भाषाओं में भी लिखा जा रहा है। डच सरकार भारतीय मजदूरों को कांट्रेक्ट पर ले जाती थे, लेकिन वे कांट्रेक्ट नहीं बोल पाते, इसके लिए भारतीय मजदूर कंदराकी कहते थे। हिंदी अन्य बोलियों के बल पर है। हिंदी प्राण तत्व है और बोलियां उसकी आत्मा हैं। भारतीय संस्कृति के गुण सूत्र में वैश्विक संस्कृति समाई हुई है। भारतीय संस्कृति का प्रचार किया जा रहा है। विदेशी भाषा के बीच में अपनी भाषा को बचाने के लिए संघर्ष करना चाहिए।