...जब वीरभद्र सिंह ने पलट दी थी शंगचूल महादेव मंदिर की काया
प्रदेश के कुल्लू जिले का दुर्गम गांव शांघड़ आज देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी विख्यात है। यहां का काष्ठकुणी शैली का बना शंगचूल महादेव का भव्य मंदिर अ ...और पढ़ें

सैंज, सपना शर्मा। प्रदेश के कुल्लू जिले के दुर्गम गांव शांघड़ आज देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी विख्यात है। यहां का काष्ठकुणी शैली का बना शंगचूल महादेव का भव्य मंदिर अब देश-प्रदेश के लिए आस्था का केंद्र बन गया है जिसका श्रेय पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र ङ्क्षसह को जाता है।
ग्रामीण बताते हैं कि शांघड़ गांव में वर्ष 2016 से पहले न तो कोई नेता आता था और न ही कोई अधिकारी क्योंकि यहां पहुंचने के लिए पैदल मीलों का सफर करना पड़ता था, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री ने शांघड़ आते ही यहां की काया बदल दी थी और आज यह गांव अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं। स्थानीय बाङ्क्षशदे मोतीराम, प्यारे लाल, लाल चंद, लग्न चंद ने बताया कि शांघड़ के आराध्य देवता शंगचूल महादेव तथा देवी उषा का इतिहास रामपुर बुशहर से जुड़ा है जिस कारण बुशहरी राजा का भी शांघड़ के साथ खास रिश्ता है। आज भी देवता का मुख्य मोहरा रामपुर बुशहर से लाया जाता है। देश की आजादी के बाद यह पहला मौका था जब कोई मुख्यमंत्री यहां आया। वीरभद्र ने नौ दिसंबर 2016 को जिला कुल्लू के इस दुर्गम गांव में आकर ग्रामीणों का दिल जीता था। इतना ही नहीं पूर्व मुख्यमंत्री ने शंगचूल महादेव, देवी उषा, देवता सरुनाग व देव सेवक शांघड़ी के साथ यहां आकर मिलन किया तथा मंदिर की प्रतिष्ठा में उपस्थित रहकर राजवंश की ओर से चांदी का कलश भेंट किया जो आज भी इस भव्य मंदिर में स्थापित है। देवता कमेटी के आग्रह पर मुख्यमंत्री ने कच्ची सड़क होने के बावजूद शांघड़ का दौरा किया और मैदान में स्थित रियासती स्थल पर भी बैठे।
एक वर्ष में तैयार हुआ था शांघड़ का भव्य मंदिर
सात अप्रैल, 2015 को शांघड़ के पटाहरा गांव में हुए भीषण अग्निकांड में देवता का मंदिर भी पूरी तरह जल गया था। तत्कालीन आयुर्वेद मंत्री कर्ण ङ्क्षसह ने अग्निकांड की सूचना तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र ङ्क्षसह को दी। उन्होंने तुरंत 40 लाख स्वीकृत करके प्रशासन को शांघड़ मंदिर का शीघ्र पुनर्निमाण करने के निर्देश दिए थे। परिणामस्वरूप रिकार्ड समय में एक वर्ष के भीतर ही मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ और देवता कमेटी ने प्रतिष्ठा में वीरभद्र ङ्क्षसह को भी बुलाया। 82 वर्ष की उम्र में वीरभद्र ङ्क्षसह आठ किलोमीटर कच्ची सड़क से शांघड़ पहुंचे थे।

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