नई शिक्षा नीति से मातृभाषा को मिलेगी संजीवनी
मुनीष गारिया धर्मशाला मनुष्य का मानसिक व व्यक्तित्व विकास करवाने वाले शिक्षा मंत्रालय को दशका
मुनीष गारिया, धर्मशाला
मनुष्य का मानसिक व व्यक्तित्व विकास करवाने वाले शिक्षा मंत्रालय को दशकों तक मानव संसाधन मंत्रालय बनाए रखा। मनुष्य जीवंत प्राणी है और उसे संसाधन कहना बिल्कुल भी सही नहीं था। शुक्र है मौजूदा समय में इस गलती को समझा और मानव संसाधन मंत्रालय को शिक्षा मंत्रालय बनाया है। केंद्र सरकार की ओर से जारी नई शिक्षा नीति से मातृभाषा का संजीवनी मिलेगी। ये विचार शिक्षाविदों ने दैनिक जागरण से बातचीत में साझा किए। पेश हैं प्रमुख अंश-
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शिक्षा जगत से जुड़े हर व्यक्ति को टीस थी कि शिक्षा मंत्रालय को मानव संसाधन मंत्रालय कहकर मनुष्य को संसाधन के रूप में समझा जाता था। नई शिक्षा नीति से मातृभाषा को संजीवनी मिलेगी, क्योंकि इस नीति में मातृभाषा को प्राथमिकता देने की बात कही गई है। हर व्यक्ति को क्षमता के अनुसार अधिक से अधिक भाषाएं सीखनी चाहिए, लेकिन यह भी अधिकार होना चाहिए कि वह मातृभाषा में उन्हें सीखे और यह अब संभव होता लग रहा है। इंटीग्रेटिड कोर्सों से बच्चों का पढ़ाई के लिए रुझान बढ़ेगा। अब बच्चों को स्कूल स्तर से ही यह सोचकर निकलना होगा कि उन्हें भविष्य में क्या करना है।
-कुलदीप चंद अग्निहोत्री, शिक्षाविद।
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सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों के लिए मानक एक समान होने से निष्पक्षता बढ़ेगी और शिक्षा में सुधार आएगा। नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) की स्थापना से रिसर्च और इनोवेशन को बढ़ावा मिलेगा।
-निशा मिश्रा, प्रदेशाध्यक्ष राजकीय अध्यापक संघ महिला विग।
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मानव संसाधन मंत्रालय का नाम शिक्षा मंत्रालय करना स्वागत योग्य है। शिक्षा नीति में प्रदेश सरकार जो भी बदलाव करना चाहती है उससे पहले वह शिक्षक संघों से इस संबंध में चर्चा कर सुझाव ले। जो आपसी सहमति बनेगी उसके अनुरूप ही शिक्षा नीति का प्रारूप हिमाचल प्रदेश में भी अमल लाया जाना चाहिए।
-नरेश शर्मा, जिलाध्यक्ष राजकीय अध्यापक संघ कांगड़ा।
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तकनीक के माध्यम से विशेष लोगों में शिक्षा और ई-कोर्सेस आठ प्रमुख क्षेत्रीय भाषाओं में विकसित करने से भारतीय क्षेत्र एवं मातृ भाषा का बल मिलेगा। नेशनल एजुकेशनल टेक्नोलॉजी फोरम (एनईटीएफ) से तकनीक में बढ़ोतरी होगी।
-अश्वनी भट्ट, संयोजक, राजकीय अध्यापक संघ।
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बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए चार-चार-चार का फॉर्मूला होना चाहिए। पहली से चौथी, पांचवीं से आठवीं तथा नौवीं से 12वीं तक। ऐसे स्लैब से पाठ्यक्रम और अध्ययन सुदृढ़ होगा।
चमन लाल, प्रदेशाध्यक्ष सीएंडवी अध्यापक संघ।
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इंटीग्रेटिड कोर्स शुरू होने से युवाओं का एक साल भी बच जाएगा और स्कूल स्तर से ही उन्हें भविष्य में बारे में सोचकर निकलना पड़ेगा। अक्सर बच्चे कॉलेज से पासआउट होने के बाद सोचने लगते हैं कि भविष्य में क्या करना है।
-परस राम, राज्य वित्त सचिव अध्यापक संघ