Shimla Literature Festival: जानिए, बलदेव भाई शर्मा ने क्यों कहा - सावरकर न होते तो रद्दी की टोकरी में फेंक दिया होता स्वाधीनता आंदोलन
Shimla Literature Festival पत्रकारिता साहित्य की विधा है। साहित्य को समृद्ध करती है और साहित्य से संस्कार और बौद्धिक संजीवनी ग्रहण करती है। भारतीय साहित्य और पत्रकारिता कभी अलग नहीं रही। जब से पत्रकारिता शुरू हुई साहित्य सर्जक की भूमिका में रहा।
शिमला, राज्य ब्यूरो। Shimla Literature Festival, पत्रकारिता साहित्य की विधा है। साहित्य को समृद्ध करती है और साहित्य से संस्कार और बौद्धिक संजीवनी ग्रहण करती है। भारतीय साहित्य और पत्रकारिता कभी अलग नहीं रही। जब से पत्रकारिता शुरू हुई साहित्य सर्जक की भूमिका में रहा। 'उन्मेष-अभिव्यक्ति का उत्सव' के दूसरे दिन शुक्रवार को 'मीडिया, साहित्य और स्वाधीनता आंदोलन सत्र' के अध्यक्ष एवं कुशाभाऊ पत्रकारिता एवं जन संचार विश्वविद्यालय के कुलपति बलदेव भाई शर्मा ने कही।
उन्होंने कहा कि वीर सावरकर न होते तो 1857 का स्वतंत्रता संग्राम गदर मानकर रद्दी की टोकरी में फेंक दिया होता। उन्होंने 10 वर्ष से अधिक समय तक काला पानी की सजा झेली। जेल में महान ग्रंथ लिखा और प्रथम स्वाधीनता संग्राम को परिभाषित किया। भारत की पत्रकारिता आज विस्तृत रूप में मीडिया हो गई है। इसका उद्देश्य भारत और भारतीयता के हितों की रक्षा करना है। देश भक्ति और कर्तव्य बोध का जागरण करना मुख्य ध्येय है। पत्रकारिता जब-जब भटकी तब-तब फेक न्यूज जैसे कलंक लगे। भारत की पत्रकारिता की मूल शक्ति स्वाधीनता का आंदोलन है। भारतीयता के मूल्य बोध का भाव रहे और यह न भटके। भारतीय पत्रकारिता और साहित्य मूल्य बोध से युक्त है। दोनों ने भारतीय जनमानस को सर्वोच्च बलिदान देने के लिए प्रेरित किया। इसके लिए उन्होंने लोकमान्य तिलक के गीता रहस्य का उदाहरण दिया।
...तो बीकानेर होता पाकिस्तान का हिस्सा : मधु आचार्य
राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार मधु आचार्य ने कहा कि पत्रकारिता और साहित्य कभी अलग नहीं रहे। जब-जब अलग करने के प्रयास किए गए तब यह न मिशन रही न संस्कृति। यह एक कारोबार बन गया है। स्वाधीनता की कहानी पत्रकारिता की कहानी है। पत्रकारों ने शब्दों में आग उकेरी। आजादी के बाद भी पत्रकारों की बड़ी भूमिका रही। अगर पत्रकारिता की भूमिका नहीं रही होती तो राजस्थान का बीकानेर पाकिस्तान का हिस्सा होता। इसे पाकिस्तान में मिलाने के प्रयास हो रहे थे।
सूमा राहा बोले-भारतीय पत्रकारिता का मूल तत्व राष्ट्रीयता
सुमा राहा ने कहा कि स्वाधीनता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने साहित्य से कहीं अधिक भूमिका निभाई हैं। उन्होंने बंगाली साहित्य और पत्रकारिता का विशेष तौर से जिक्र किया। उन्होंने कहा कि भारतीय पत्रकारिता का मूल तत्व राष्ट्रीयता ही रहा है। अनुराधा शर्मा पुजारी ने नार्थ ईस्ट में साहित्य स्वाधीनता पर अपनी बात रखी। 19वीं शताब्दी में असमिया भाषा पर बड़ा संकट आया था। उस काल को काले अध्याय के तौर पर जाना जाएगा। स्वाधीनता के लिए बड़ा संघर्ष किया। साहित्यकारों व पत्रकारों ने मिलकर बड़ी भूमिका निभाई।
उडिय़ा साहित्य ने पैदा की राष्ट्र की भावना : सुवास
सुवास चंद सतपथी ने उडिय़ा साहित्य और पत्रकारिता पर विचार रखे। उन्होंने कहा कि दोनों ने लोगों में राष्ट्र की भावना पैदा की। ब्रिटिश हुकूमत के प्रति संघर्ष किया। उडिय़ा अखबारों ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई। सरजू ने कर्नाटक के साहित्य व पत्रकारों की भूमिका पर विचार व्यक्त किए। ए कृष्णा राव ने कहा कि तेलुगु साहित्य और पत्रकारिता की पृष्ठभूमि बताई। कहा कि दोनों ने मिलकर कार्य किया। क्षेत्रीय भाषा का संरक्षण होना चाहिए, अगर भाषा नहीं बची तो देश भी नहीं बच पाएगा।
पत्रकारिता से जुड़े लोगों की तस्वीर नहीं होने से स्तब्ध
गौर हरि दास ने कहा कि ओडिशा में उडिय़ा भाषा पर कभी बड़ा खतरा मंडराया था। उन्होंने कहा कि उत्सव के दौरान गेयटी थियेटर के बाहर पत्रकारिता से जुड़े लोगों की तस्वीर नहीं लगाई है। इससे मैं स्तब्ध हूं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।