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    जानिए किस तरह धमड़ी शहर का नाम पड़ गया नूरपुर, पहाड़ी पर बने किले में आज भी है तालाब व कुएं

    By Rajesh SharmaEdited By:
    Updated: Sat, 05 Dec 2020 11:12 AM (IST)

    Dhamadi Became Nurpur नूरजहां की नगरी नूरपुर के एेतिहासिक किले में मुगल एवं पहाड़ी कला के अवशेष आज भी इसके गौरवमयी इतिहास व अतीत की याद दिलाते हैं। नूरपुर के किले का निर्माण राजा बासू के कार्यकाल में वर्ष 1580 से 1613 के बीच हुआ था।

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    नूरपुर के किले में मुगल एवं पहाड़ी कला के अवशेष आज भी इसके गौरवमयी इतिहास की याद दिलाते हैं।

    नूरपुर, प्रदीप शर्मा। नूरजहां की नगरी नूरपुर के एेतिहासिक किले में मुगल एवं पहाड़ी कला के अवशेष आज भी इसके गौरवमयी इतिहास व अतीत की याद दिलाते हैं। नूरपुर की पहचान बन चुके नूरपुर के किले का निर्माण राजा बासू के कार्यकाल में वर्ष 1580 से 1613 के बीच हुआ था। केंद्रीय पुरातत्व विभाग पिछले कुछ सालों से किले के अवशेषों की मरम्मत कार्य में जुटा हुआ है। किले का रखरखाव भी पुरातत्व विभाग द्वारा किया जा रहा है। किले के अवशेषों की मरम्मत व नवनिर्माण उसी बनावट से किया जा रहा है। सरकारें नूरपुर के किले को प्रमुख पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने में पूरी तरह से असहाय रही हैं।

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    फिर भी जब देश-विदेश के सैलानी नूरपुर के किले के भीतर बने भगवान श्री बृजराज स्वामी जी महाराज के दर्शन करने आते हैं तो वह नूरपुर का किला व उसके अवशेषों को भी निहारते हैं। किले का प्रवेश द्वार, किला, दरबार-ए-खास में बना मंदिर, रानी महल व तालाब आज भी सैलानियों के आकर्षण का केंद्र हैं। वर्ष 1905 में कांगड़ा के आए भूकंप के कारण नूरपुर का किला भी क्षतिग्रस्त हो गया था। नूरपुर के किले का निर्माण पत्थर व चूने से किया गया है। पुरातत्व विभाग चूने, केरी व राब सहित अन्य पदार्थों से किले की मरम्मत व नवनिर्माण कर रहा है। पुरातत्व विभाग का यह प्रयास है कि किले की मरम्मत व नवनिर्माण पुरानी बनावट जैसा हो।

    राष्ट्रीय राजमार्ग से मात्र डेढ़ किलोमीटर दूरी पर है नूरपुर का किला

    नूरपुर का किला देखने के लिए व किले में बने एतिहासिक श्री बृजराज स्वामी मंदिर के दर्शन करने के लिए सरकार ने नूरपुर में राष्ट्रीय राजमार्ग से किले के लिए संपर्क मार्ग का निर्माण किया है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग से मात्र डेढ़ किलोमीटर दूर है।

    नूरजहां के आगमन पर शहर को मिला नूरपुर का नाम

    इस शहर का पुराना नाम धमड़ी था। यह समूचा एक ही राज घराने से संबंधित इलाका था। नूरपुर में पेठन राजपूत घराने का राज था, जिन्हें पठानिया भी कहा जाता था। प्राचीन ग्रंथों में भी इस शहर का जिक्र मिलता है। नूरपुर राज्य के निकट सिकंदर की लड़ाई भारतीय शासकों के साथ हुई थी। इसमें भारी तादाद में भारतीय राजाओं के सैनिक मारे गए थे। 1595 में पेठन (पठानिया) राज्य के राजा वासू ने अपनी राजधानी धमड़ी (नूरपुर) बदल दी। इसके बाद भी पठानिया वंश ने काफी देर तक शासन किया। इस किले के खंडहर काफी मात्रा में आज भी मौजूद हैं। बाद में पठानिया वंशजों ने नूरपुर को अपनी राजधानी बना दिया। 16वीं शताब्दी में पठानिया राजाओं ने धमड़ी (नूरपुर) में अपना ऐतिहासिक किला जो अब भी खंडहर के रूप में मौजूद है बनाया। इस किले को पहाड़ी पत्थरों को तराश कर पहाड़ पर ही बनाया गया था।

    बताया जाता है कि मुगल सम्राट जहांगीर की पत्नी नूरजहां जब नूरपुर में पहली बार आई तो इस धमड़ी शहर का नाम बदल कर नूरपुर रख दिया था। नूरजहां को नूरपुर का किला व इसकी आबोहवा इतनी पसंद आई कि वह नूरपुर रहना चाहती थी तथा किले का और निर्माण करना चाहती थी। लेकिन स्थानीय राज्य इसके पक्ष में नहीं थे कि यह स्थान मुगल गतिविधियों का केंद्र बने।

    भारतीय राजवंश मुगलों की नूरपुर में उपस्थिति को गुलामी समझते थे इसलिए उन्होंने ऐसी मनोवैज्ञानिक रणनीति बनाई कि बिना लड़ाई लड़े ही मुगल नूरपुर से चले गए तथा उनके साथ ही नूरजहां भी यहां से रुखसत हो गई। मुगलों को यहां से भगाने के लिए मनोवैज्ञानिक युद्ध का सहारा लिया गया, जबकि नूरजहां यहां से जाना नहीं चाहती थी, इसलिए राजपूत राजाओं ने किले के अंदर कार्य करने वाले सभी मजदूरों जो गिल्ड़ल (गले की) बीमारी से ग्रस्त थे, को लगा दिया। उस समय यह बीमारी आम थी।

    जब नूरजहां ने किले में बीमार मजदूरों को कार्य करते व उनके लटकते हुए गलों को इस स्थिति में देखा तो इसका कारण पूछा। इस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाते हुए राजपूत राजाओं ने तर्क दिया कि इस क्षेत्र की आबोहवा ही ऐसी है कि यह बीमारी आम लग जाती है। राजपूत राजाओं ने तर्क दिया कि अगर वह (नूरजहां) व उनके अधिकारी अधिक समय तक वहां रहे तो उन्हें इस बीमारी का शिकार देर-सवेर होना पड़ सकता है। यह सुनकर नूरजहां व उनके अधिकारी भय के मारे घबरा गए।

    चूंकि नूरजहां को अपनी सुंदरता पर मान था, इसलिए इस बीमारी का शिकार होने का भय उसे सताने लगा। इसी भय से चिंतित होकर नूरजहां व उनके अधिकारियों का काफिला वहां से चला गया। नूरजहां के आगमन के बाद ही धमड़ी शहर को नूरपुर का नाम मिला। इस मनोवैज्ञानिक युद्ध के कारण नूरपुर क्षेत्र व किला बिना युद्ध व खूनखराबे के राजपूत राजाओं के पास ही रह गया। 1849 में यह किला अंग्रेजों के अधीन आ गया।

    नूरपुर किले के खास पहलू

    किले के मुख्य द्वार पर भारतीय कला का बेजोड़ नमूना मौजूद है। किले के अंदर कई स्थानों पर विभिन्न प्रकार के पत्थरों पर प्राचीन कला का प्रदर्शन किया गया है जो आज भी अपनी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं। यह चित्र उस समय की हस्त कला का शानदार नमूना है जो दर्शाती है कि 16वीं सदी में भारतीय हस्त कला स्वर्णिम दौर में थी। किले के अंदर हवा-पानी का समुचित प्रबंध भी देखने को मिलता है। नूरपुर का किला ऊंची पहाड़ी पर बनाया गया था, जोकि सुरक्षा की दृष्टि से बेहद सुरक्षित एवं उपयुक्त था। किले के अंदर सुरक्षा कर्मियों के पहरा देने का भी खास प्रबंध था तथा किले से चहुं ओर दुश्मनों की गतिविधियों पर नजर आसानी से रखी जा सकती थी। किले में पानी के प्रयोग के लिए सुंदर तालाब तथा कुआं आज भी देखने को मिलता है। किले की दीवारों के करीब आज भी नूरपुर थाना, कचहरी, जेल सहित कई  अन्य कार्यालय मौजूद हैं।