Kangra Earthquake in 1905: एहतियात कम कर सकती है नुकसान, कांगड़ा के भवनों पर हुए शोध ने चौंकाया
Kangra Valley Earthquake in 1905 भूकंप की दृष्टि से हिमालयन रेंज में जिला कांगड़ा सबसे संवेदनशील जोन पांच में आता है। सीधे शब्दों में कहें तो अगर यहां पांच की तीव्रता से अधिक का भूकंप आया तो तबाही निश्चित है।
धर्मशाला, मुनीष गारिया। Kangra Valley Earthquake in 1905, भूकंप की दृष्टि से हिमालयन रेंज में जिला कांगड़ा सबसे संवेदनशील जोन पांच में आता है। सीधे शब्दों में कहें तो अगर यहां पांच की तीव्रता से अधिक का भूकंप आया तो तबाही निश्चित है। कांगड़ा केंद्र में पिछले कुछ सालों से लगातार भूकंप के झटके महसूस किए जा रहे हैं। यह कोई नई बात नहीं है, लेकिन झटके 1905 की उस काली सुबह की याद दिला देते हैं, जिसके बारे में शायद ही कांगड़ा के किसी व्यक्ति को पता न हो। ऐसा नहीं है कि ऐसे संवेदनशील जिले में ऐसी आपदा से निपटने के लिए कोई तैयारी या प्रशिक्षण नहीं है।
सब कुछ होने के बावजूद डर तो रहता ही है। हो भी क्यों न, सबको पता है कि प्रकृति के आगे किसकी चली है। भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा का प्रभाव हो, इसके लिए हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान स्कूल के वरिष्ठ प्राध्यापक एवं भूगर्भ वैज्ञानिक डा. अबरीश महाजन पिछले कुछ सालों से कांगड़ा घाटी पर शोध कर रहे हैं।
उन्होंने भूकंप को लेकर जिला के सभी क्षेत्रों पर शोध किया है। शोध के बाद उन्होंने कुछ तथ्य तैयार किए हैं, जिसमें मुख्य रूप से कांगड़ा के गृह निर्माण को लेकर मुख्य बातें हैं। अब वह इन तथ्यों को लेकर जिला प्रशासन से बैठक करेंगे और कांगड़ा के शोध के आधार पर ही गृह निर्माण को लेकर जिला प्रशासन को सुझाव देंगे।
शोध में मुख्य बिंदु
- जिला कांगड़ा में कहीं भी तीन जमा एक भवन बनाने वाली भूमि नहीं है। ऐसी स्थिति में अगर भूकंप आता है तो यह भवन बहुत ज्यादा नुकसान करेंगे।
- कोतवाली बाजार जिला में सबसे संवेदनशील क्षेत्र में आता है। यहां की मिट्टी के हिसाब से दो जमा एक भवन बनाना भी उचित नहीं हैं।
- मैक्लोडगंज में नड्डी व सतोवरी दो जमा एक मंजिला भवन बनाए जा सकते हैं।
- शोध में मुख्य बात यह है कि भवन बनाने के पूर्व विशेषज्ञों की सलाह लेना जरूरी है, क्योंकि क्षेत्र में परिस्थिति के हिसाब से घर का मॉडल बने, तभी उपर की मंजिले बन सकती हैं।
क्यों आता है भूकंप
प्रदेश में इस वर्ष अभी तक छोटे बड़े करीब 15 भूकंप आ चुके हैं। विज्ञानियों के अनुसार पूरी धरती टेक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है और इसके नीचे तरल पदार्थ (लावा) है। यह प्लेटें धरातल से करीब 30 से 50 किलोमीटर तक नीचे स्थित हैं। इन प्लेटों के आपस में टकराने से जो ऊर्जा निकलती है उससे कंपन पैदा होती है। इस कंपन से धरती हिलने लगती है, जिसे भूकंप कहा जाता है। कई बार इसकी तीव्रता ज्यादा होने से धरती पर व्यापक नुकसान होता है।
1905 के भूकंप में मारे गए थे हजारों लोग
4 अप्रैल, 1905 को कांगड़ा जिले में भूकंप आया था और इसकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 7.8 मापी गई थी। उस समय मरने वालों का आंकड़ा करीब 20 हजार पहुंचा था और एक लाख भवन तबाह हो गए थे।
भूकंप की दृष्टि से संवदेनशील क्षेत्र
जम्मू-कश्मीर का सांबा, हिमाचल का कांगड़ा, धर्मशाला, मैक्लोडगंज, मंडी, कुल्लू, चंबा, सोलन, उत्तराखंड व नेपाल भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र हैं।
पिछले साल एक ही दिन में नौ बार ही हिल चुकी है हिमाचल की धरती
28 मार्च 2020 को हिमाचल प्रदेश में एक दिन में नौ बार भूकंप के झटकों से धरती हिली। एक से डेढ़ घंटे के बीच ये झटके महसूस किए गए थे। पहला झटका शाम 4:21 बजे महसूस हुआ। रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता 2.73 रही। भूकंप का केंद्र जिला कांगड़ा के धर्मशाला में रहा। दूसरा झटका चार बजकर 31 मिनट पर महसूस हुआ। इसकी तीव्रता रिक्टर पैमान पर 3.0 मापी गई। दूसरे झटके का केंद्र चंबा जिला में जमीन से पांच किलोमीटर नीचे रहा। भूकंप का तीसरा झटका पांच बजकर 11 मिनट पर आया, इसका केंद्र भी चंबा में रहा। रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता 36 रही। भूकंप का चौथा झटका पांच बजकर 17 मिनट पर महसूस किया गया, इसकी तीव्रता सबसे ज्यादा 43 मापी गई। इसके बाद पांच बजकर 45 मिनट पर पांचवीं बार धरती हिली। इस झटके की तीव्रता 30 मापी गई।
क्या हैं वैज्ञानिक प्रबंध
कश्मीर से लेकर नेपाल तक हिमालयन रेंज की टेक्टोनिक प्लेटों में क्या बदलाव आ रहे हैं। कहां इनकी हलचल ज्यादा या कम हुई है। प्लेटों की गति में कमी से भी हिमालयन रेंज में बड़ा भूकंप आ सकता है। इसके लिए हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ लाइफ साइंस व इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (आइआइआरएस) देहरादून, नूरपुर और पालमपुर के जिया गांव में ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम स्थापित किया है। नूरपुर व जिया में 30 लाख की मशीनें लगी हैं। मशीनें लगाने का उद्देश्य टेक्टोनिक प्लेटों की हलचल का पता लगेगा।
प्रदेश में बड़े भूकंप के झटकों से हुआ नुकसान
- तिथि, स्थान, तीव्रता, नुकसान
- 4 अप्रैल 1905, कागड़ा, 7.8, 20 हजार लोगों की मौत
- 1 जून 1945, चंबा, 6.5, आंकड़े उपलब्ध नहीं
- 19 जनवरी 1975, किन्नौर, 6.8, 60 लोगों की मौत
- 26 अप्रैल 1986,धर्मशाला, 5.5, 6 लोगों की मौत
- 1 अप्रैल 1994, चंबा, 4.5, कई घरों को नुकसान
- 24 मार्च 1995, चंबा, 4.9, कई घरों को नुकसान
- 9 जुलाई 1997,सुंदरनगर,5, एक हजार घरों को नुकसान।
इस वर्ष आए भूकंप
- तिथि, स्थान, रिक्टर पैमाना
- 9 जनवरी, करेरी, 4.2
- 11 जनवरी, किश्तवाड़, 5.2
- 1 मार्च, शिमला, 3.2
- 8 मार्च, चंबा, 3.4
- 8 मार्च, चंबा, 3.2
- 9 मार्च, चंबा, 3.5
सतर्कता से कम किया जा सकता है नुकसान
भूगर्भ विज्ञानी डा. अबरीश महाजन का कहना है भूकंप को देखते हुए पूरी कांगड़ा घाटी की जमीन का अध्ययन किया है। उससे बहुत रोचक तथ्य भी सामने आए हैं। प्राकृतिक आपदा को आने से रोका तो नहीं जा सकता, लेकिन उसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसके लिए भवन निर्माण के समय लोगों को सतर्कता बरतनी होगी। मेरे शोध में जो तथ्य सामने आए हैं, उसको लेकर जिला प्रशासन से बात की जाएगी और जरूरी सुझाव दिए जाएंगे।
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