कचनार (कराली) पेड़ के साथ लगी कलियों और फूलों से बनती है सब्जी, कई रोगों के लिए है रामबाण
देवभूमि हिमाचल में कई जड़ी बूटियां है जो कई रोगों का उपचार करती हैं। कुछ एक एेसी हैं जिसे सीजन में खाने में सब्जी के तौर पर भी प्रयोग किया जाता है। इन्हीं में से एक है कचनार जिसे स्थानीय भाषा में कराली भी कहते है।

डाडासीबा, कमलजीत। देवभूमि हिमाचल में कई जड़ी बूटियां है जो कई रोगों का उपचार करती हैं। कुछ एक एेसी हैं जिसे सीजन में खाने में सब्जी के तौर पर भी प्रयोग किया जाता है। इन्हीं में से एक है कचनार, जिसे स्थानीय भाषा में कराली भी कहते है। यह एक वृक्ष होता है, जिसकी लकड़ी इंधन के काम अाती है अौर पत्तियां पशुओं के लिए चारे के रूप में प्रयोग होती है। लेकिन जब इस पर कलियां व फूल अाते हैं तो वह सब्जी बनाने के काम अाती है।
कराली के फूल की कई प्रकार की सब्जियां लोग बनाते हैं। इसकी तासीर ठंडी होने के कारण लोग इसे सुखा भी लेते हैं अौर ज्यादा गर्मियां पड़ने पर इसकी सब्जियां बनाते हैं। कुछ लोग इसका अचान बनाकर इसका प्रयोग करते हैं। कुछ इसके पकौड़े बनाकर इसका प्रयोग करते हैं। हिमाचल प्रदेश के विभिन्न जिलों में यह पेड़ अासानी से पाया जाता है अौर किसान के खाने की अौर पशुओं के चारे की दोनों ही समस्याओं को दूर करने के साथ साथ यह पेड़ व इसके फूल एक डाक्टर भी हैं। कचनार के फूल अौर कलियां बात रोग, जोड़ों के रोग के लिए लाभकारी मानी गई है। इसके अलावा रक्त पित, फोड़े, फुंसियों की समस्याओं से भी यह कचनार की कलियां निजात दिलाती हैं।
पहाड़ी गीतों में भी है कराली (कचनार ) का जिक्र
इस पेड़ व इसकी कलियों के सब्जी के रूप में प्रयोग व अन्य लाभ को लेकर लोग इतना जानते हैं अौर प्रयोग करते हैं कि इस पेड़ को संबोधित करते हुए पहाड़ी गीतों में भी इसे पिरोया गया है। इस गीत में एेसे मौसम का जिक्र किया है जब कराली (कचनार) के पेड़ में कोपले व फूल अाते हैं। हिमाचल के लोग इसकी कलियों और फूलों की सब्ज़ी बनाते हैं। मार्च अप्रैल में ज़्यादातर इस फ़ूल की सब्ज़ी बनायी जाती है। इस वृक्ष पर कलियां और फ़ूल खिलते हैं। फ़ूलों के पूर्ण रूप से खिलने के पश्चात इस पेड़ की सुंदरता देखते ही बनती है। सफ़ेद, पीले, लाल रंग के फूल, गुलाबी रंग की धारियों के साथ बेहद खूबसूरत दिखाई देते हैं।
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