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तिब्बतियों के लिए काला दिवस है आज का दिन, चीन सरकार ने जबरन थोपा था 17 सूत्रीय एजेंडा; जानिए

International Tibet Mukti Divas 23 मई 1951 को वह आज का ही दिन था जब चीन सरकार द्वारा जबरन अपना 17 सूत्रीय एजेंडा तिब्बत पर थोपा गया था।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Sat, 23 May 2020 02:25 PM (IST)Updated: Sat, 23 May 2020 02:27 PM (IST)
तिब्बतियों के लिए काला दिवस है आज का दिन, चीन सरकार ने जबरन थोपा था 17 सूत्रीय एजेंडा; जानिए
तिब्बतियों के लिए काला दिवस है आज का दिन, चीन सरकार ने जबरन थोपा था 17 सूत्रीय एजेंडा; जानिए

धर्मशाला, दिनेश कटोच। 23 मई 1951 को वह आज का ही दिन था जब चीन सरकार द्वारा जबरन अपना 17 सूत्रीय एजेंडा तिब्बत पर थोपा गया था। इस एजेंडे को जबरन तिब्बत के तत्कालीन अधिकारियों से हस्ताक्षरित भी करवाया गया था। हालांकि इस एजेंडे में दलाई लामा के पद को लेकर कोई हस्तक्षेप न करने, तिब्बत की भाषा व संस्कृति के खुद तिब्बतियाें द्वारा संरक्षण करने, तिब्बत में विकास की कई योजनाओं को खुद तिब्बतियों द्वारा आगे चलाने व पंचेन लामा को लेकर भी कोई भी हस्तक्षेप न करने की बाताें को शामिल किया गया था। लेकिन खुद चीन द्वारा बनाए गए इस एजेंडे को दरकिनार किया गया था।

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हालांकि इससे पहले चीन व तिब्बत के बीच दोनों ही आेर से एक संयुक्त एजेंडा भी बना था, लेकिन चीन सरकार ने इसे नकार दिया और अपना ही एजेंडा तिब्बत पर थोपा था। दलाई लामा ने भारत आ जाने के बाद 18 अप्रैल 1959 को चीन के इस एजेंडे को पूरी तरह से नकार दिया था।

तब से लेकर तिब्बती समुदाय के लोग इस दिवस को काले दिन के रूप में भी मनाते हैं। हालांकि तिब्बती समुदाय के लाेग 10 मार्च को क्रांतिकारी दिवस के रूप में मनाते हैं, लेकिन उनके लिए 23 मई का दिन भी एक काले अध्याय के रूप में है।

यहां यह भी बता दें कि वर्ष 1956 में बौद्ध गया में बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर एक आयोजन में दलाई लामा बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे थे। इस दौरान उनकी मुलाकात तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से भी हुई थी। दलाई लामा ने चीन द्वारा जबरन तिब्बत पर थाेपे गए अपने एजेंडे को लेकर उनसे चर्चा भी की थी।

इसके बाद पंडित नेहरू द्वारा यह सुझाव भी दलाई लामा काे दिया गया था वह चीन सरकार से इस मामले को लेकर बात करें। लेकिन चीन सरकार अपने निर्णयों को लेकर पीछे नहीं हटी अौर दलाई लामा को तिब्बत छोड़कर भारत आना पड़ा। तब से लेकर तिब्बत की आजादी को लेकर उनका संघर्ष जारी है। 

मुहिम जारी रहेगी

निर्वासित तिब्बती संसद के उपसभापति अाचार्य यशी फुंचक का कहना है तिब्बत की आजादी को लेकर संघर्ष जारी है। आज के दिन चीन द्वारा जबरन अपना 17 सूत्रीय एजेंडा तिब्बत पर थोपा गया था। विश्व स्तर पर तिब्बत की अाजादी को लेकर आवाज बुलंद है और आगे भी यह मुहिम जारी रहेगी।

24 वर्ष के छोडऩा पड़ा था देश

तिब्बत पर चीन के आक्रमण के बाद वर्ष 1959 में दलाई लामा को अनुयायियों के साथ देश छोडऩे पर मजबूर होना पड़ा था। उस समय उनकी उम्र महज 24 वर्ष की थी। दलाई लामा बेहद जोखिम भरे रास्तों को पारकर भारत पहुंचे थे। कुछ दिन उन्हें देहरादून में ठहराया गया था। उसके बाद उन्हें धर्मशाला के मैक्लोडगंज में रहने की सुविधा दी गई है। यहां उनका पैलेस, बौद्ध मंदिर है। इसके कुछ फासले पर ही निर्वासित तिब्बत सरकार भी कार्य करती है।


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