International Literature Festival : संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल बोले, साहित्य मेरे लिए दैनिक जीवन
International Literature Festival संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के लिए साहित्य दैनिक जीवन जितना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि यह जीवन में परिलक्षित होता है। भाव शब्दों को साकार करते हैं। इसे पढ़ते हैं तो संस्कारित हो जाते हैं। शब्द साधना से साहित्य निर्माण होता है।

शिमला, राज्य ब्यूरो। International Literature Festival, संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के लिए साहित्य दैनिक जीवन जितना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि यह जीवन में परिलक्षित होता है। भाव शब्दों को साकार करते हैं। इसे पढ़ते हैं तो संस्कारित हो जाते हैं। शब्द साधना से साहित्य निर्माण होता है। मेरे लिए साहित्य के गहरे मायने हैं।
गेयटी थियेटर शिमला में आयोजित अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव 'उन्मेष-अभिव्यक्ति का उत्सव' में 'मेरे लिए साहित्य के मायने' विषयक सत्र में पूर्व राज्यपाल राम नाईक ने कहा कि संसद में उनकी वजह से जन गण मन व वंदेमातरम गाया जाता है। वर्ष 1992 तक इसे वहां नहीं गाया जाता था। बकौल नाइक उनकी पुस्तक चरैवेति-चरैवेति ही उनका जीवनमंत्र है।
सत्र के दौरान डा. सोनल मान सिंह ने कहा कि साहित्य से नृत्य तो समृद्ध होता ही है, जीवन भी समृद्ध होता है। साहित्य मेरा जीवन है। इसने मेरे जीवन को समृद्ध किया है। मैं नृत्यांगना हूं, इसलिए यह मुझे इंद्रधनुष पर नृत्य को प्रेरित करता है। भारतीय संस्कृति व परंपरा का कला साहित्य से गहरा रिश्ता है। साहित्य ने मेरे जीवन में अहम भूमिका निभाई है। यह शब्दों से बनता है और भाव शब्द से साकार करता है। कलाकार की हैसियत से नृत्य मैंने बचपन से सीखा है। कला साहित्य इसके दो आयाम हैं। नृत्य तीसरा आयाम है। भारतीय परंपरा में खासकर शास्त्रीय संगीत इसे मूर्त रूप प्रदान करता है। अगर नृत्यांगना सक्षम हो, परिपक्व हो तो यह चौथे पहलू यानी परिप्रेक्ष्य में अध्यात्म की ओर इंगित करता है।
मेघवाल ने पत्नी को दिया सफलता का श्रेय
संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सफलता का श्रेय पत्नी को दिया। उन्होंने अपने गुरु के उपन्यास का उदाहरण दिया। कहा कि मेरे गुरु ने 'फिमेल डाग' पर उपन्यास लिखा था। बाद में वह काफी चर्चित हुआ। उसका भाव यह था कि जब उसकी डिलीवरी हुई तो उस मोहल्ले के लोगों ने यूनियन बनाई और उसे तेल, आटा, घी आदि खिलाया। इसके जरिये कटाक्ष किया था कि जब महिला का प्रसव होता है तो उसके साथ इसी संजीदगी के साथ व्यवहार नहीं किया जाता है। घरों में डिलीवरी के दौरान व अस्पताल में कहीं सास समय नहीं दे पाती, कहीं ननद कहती है मैं क्यों आऊं। बाद में गुरुजी को इसी उपन्यास पर अवार्ड मिला था।
पत्नी ने दिए दो रुपये ताकि स्कूल से नाम न कटे
अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि मैं 15 वर्ष का था जब मेरी शादी हुई थी। मैं 11वीं कक्षा में पढ़ता था तब एक शिक्षक ने कहा कि क्या आप फुटबाल खेलते हो तो मैैंने हां कहा। उन्होंने कहा कि आपने दो रुपये जमा नहीं करवाए हैं। अगर कल 11 बजे तक जमा नहीं करवाए तो आपका नाम स्कूल से काट दिया जाएगा। मैंने दादी से दो रुपये मांगे तो उन्होंने बुनकर या खेती अपनाने की सलाह दी। रिश्तेदारों ने भी मदद नहीं की लेकिन पत्नी ने बाजार से सात रुपये की जमा पूंजी में से हैंडीक्राफ्ट का सामान खरीदा और रातों-रात उससे कई उत्पाद तैयार किए। सुबह इसे बाजार में नौ रुपये में बेचा गया। उन्होंने मुझे दो रुपये दिए ताकि मेरा नाम स्कूल से न कटे। अगर पत्नी मदद न करती तो मैं यहां नहीं होता। जब मैं आइआइएम में आइएएस का प्रशिक्षण ले रहा था तब जर्मन के एक प्रोफेसर ने तीन घंटे के पेपर में पूछा कि एक ऐसा नाम बताओ जिसकी वजह से आप सफल हुए हो। काफी दिमाग खपाया तब मैंने पत्नी का नाम लिखा लेकिन लंच के समय पेपर आउट हो गया। सब मुझे कहने लगे कि मैं जोरू का गुलाम हूं। प्रोफेसर ने बताया कि तुम अकेले ऐसे व्यक्ति हो जिसने पत्नी का नाम बताया है। वह इस उत्तर से काफी प्रसन्न हुए।
जीवन में जो बैठ जाएगा, उसका भाग्य भी बैठ जाएगा : नाईक
पूर्व राज्यपाल राम नाईक ने कहा कि मैं अकेला ऐसा व्यक्ति हूं जो महाराष्ट्र से तीन बार विधायक और पांच बार सांसद बना है। मैं ऐसा अकेला पेट्रोलियम मंत्री हूं जिसने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है वर्ष 1963 से 2022 तक ऐसा नहीं हुआ है। मैंने संगठन के कई पदों पर काम किया है। उमा भारती को मैंने ही पार्टी से निकाला था, तब मैं अनुशासन समिति का अध्यक्ष था। मुझे संसद में जन गण मन और वंदे मातरम गाना शुरू करने के लिए जाना जाता है। जनप्रतिनिधि जनतंत्र का आधार है। यह आगे कैसे बढ़े, इस पर भी साहित्यकारों को लिखना चाहिए। जनप्रतिनिधियों का दर्जा सुधारने के लिए इस दिशा में कार्य करने की जरूरत है। मेरी किताब चरैवेति चरैवेति का 12 भाषाओं में अनुवाद हुआ है। इसी से मैं लेखक बन गया। इसका अर्थ है चलते रहो, चलते रहो। जीवन में जो बैठ जाएगा, उसका भाग्य भी बैठ जाएगा। जो सो जाएगा, उसका भाग्य अभी सो जाएगा। अगर कोई व्यक्ति चलता है तो उसका भाग्य भी साथ में चलता है। सत्र में सतीश आलेकर व राघव चंद्रा ने भी विचार व्यक्त किए।
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