अब धूप की मदद से पानी से अलग होगा हाइड्रोजन, आइआइटी शोधकर्ताओं ने किया फोटोकैटलिस्ट का विकास
IIT Mandi Researcher धूप की मदद से पानी से हाइड्रोजन को अलग करना अब आसान होगा।
मंडी, जागरण संवाददाता। धूप की मदद से पानी से हाइड्रोजन को अलग करना अब आसान होगा। इसके लिए कैटलिस्ट प्लेटिनम जैसे उपकरण खरीदने के लिए लाखों रुपये खर्च नहीं करने होंगे। मात्र हजारों रुपये कीमत के फोटोकैटलिस्ट से यह कार्य संभव होगा। आमजन को हाइड्रोजन गैस का संभावित ऊर्जा वाहक मिलेगा। इस कार्य को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी के शोधकर्ताओं ने संभव कर दिखाया है। शोधकर्ताओं ने एक फोटोकैटलिस्ट ईजाद किया है, जो बहुत कम खर्च कर धूप की मदद से पानी को विभाजित कर हाइड्रोजन को अलग कर देगा।
प्रकृति हमेशा सूरज की रोशनी की मदद से सभी प्रकार के रासायनिक परिवर्तनों को अंजाम देती रही है। इससे मनुष्य को सांस लेने के लिए हवा और खाने की चीजें मिलती हैं। फोटोसिंथेसिस की नकल अर्थात रासायनिक प्रतिक्रियाओं के लिए रोशनी का उपयोग करना हमेशा से व्यावहारिक रसायन विज्ञान की बड़ी चाहतों में एक रही है। लोग हमेशा से विशिष्ट रसायन की खोज में रहे हैं इसे कैटलिस्ट कहते हैं।
पहले पानी विभाजन में होता था कैटलिस्ट प्लेटिनम का इस्तेमाल
पानी के विभाजन में सालों से कैटलिस्ट प्लेटिनम का उपयोग किया जाता है। प्लेटिनम की कीमत देखते हुए सोलर हाइड्रोजन का उत्पादन अव्यावहारिक समाधान लगता था। शोधकर्ताओं जो कंपोनेंट कैटलिस्ट का विकास किया है। उसमें मॉलीब्डेनम सल्फाइड नैनोशीट कोटेड नाइट्रोजन डोप्ड जिंक ऑक्साइड नैनोरॉड हैं। यह प्रोजेक्ट योगी वेमना यूनिवर्सिटी आंध्र प्रदेश के शोधकर्ताओं के सहयोग से शुरू किया गया था।
डॉ. वेंकट कृष्णन के नेतृत्व में हुआ शोध
आइआइटी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंस के एसोसियट प्रो.डॉ. वेंकट कृष्णन के नेतृत्व में शोध विद्वान डॉ. सुनील कुमार, अजय कुमार, आशीष कुमार के अलावा योगी वेमना यूनिवर्सिटी आंध्र प्रदेश के डॉ. एमवी शंकर और वीएन राव शामिल हैं। शोध के उत्साहवर्धक परिणाम अमेरिकन केमिकल सोसाइटी (एसीएस) एप्लाइड एनर्जी मटीरियल्स जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।
तेजी से कम हो रहा जीवाष्म ईंधन का भंडार
डॉ. वेंकट कृष्णन बताते हैं, जीवाष्म ईंधन का भंडार तेजी से कम हो रहा है। इनके उपयोग से पर्यावरण संकट भी बढ़ रहा है। इसलिए अब वैकल्पिक, सुरक्षित ईंधन के विकास पर जोर दिया जा रहा है। हाइड्रोजन गैस को संभावित ऊर्जा वाहक के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि इससे ज्यादा ऊर्जा पैदा होती है और यह पर्यावरण अनुकूल है। इस प्रोजेक्ट से एक नई हाइड्रोजन आधारित अर्थव्यवस्था की शुरुआत होगी। हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था में यह बाधा है। यह गैस मोटे तौर पर जीवाष्म ईंधन से प्राप्त किया जाता है। इसके लिए पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस स्टीम रिफॉर्म की प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस तरह जीवाष्म ईंधन का विकल्प नहीं मिलता है, जो हमारा लक्ष्य रहा है।
इंसानों को ज्ञात सबसे सरल रासायनिक कंपाउंड पानी
पानी सबसे सरल रासायनिक कंपाउंड हैं। हाइड्रोजन के दो और ऑक्सीजन के एक अणु से बनता है। पानी हाइड्रोजन का अच्छा स्रोत है। हालांकि पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में अलग करना कठिन है और इसमें बहुत ऊर्जा लगती है। रोशनी की मदद से पानी को इसके घटक हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के अणुओं में बांटा जा सकता है। यह बात सभी दशकों से जानते हैं मगर प्रयास नहीं हुए।