बाबा बालकनाथ की तपोस्थली जाएं तो न करें यह काम, बदल गई है परंपरा
Baba Balak Nath Deotsidh बाबा बालकनाथ ने जिस गरने के पेड़ और वट वृक्ष के नीचे तप किया था उन पेड़ों को लोहे की ग्रिल लगाकर संरक्षित किया गया है। आस्था से जुड़े इन पेड़ों पर कच्चे धागे की डोरियां बांधने की परंपरा है।

शाहतलाई, अभिषेक शर्मा। Baba Balak Nath Deotsidh, बाबा बालकनाथ ने जिस गरने के पेड़ और वट वृक्ष के नीचे तप किया था, उन पेड़ों को लोहे की ग्रिल लगाकर संरक्षित किया गया है। आस्था से जुड़े इन पेड़ों पर कच्चे धागे की डोरियां बांधने की परंपरा है। मान्यता है कि मनोकामना पूरी होने पर लोग इन पेड़ों पर डोरी बांधते हैैं। अत्याधिक छेड़छाड़ व वृक्षों की पत्तियों व टहनियों को तोड़कर घर ले जाने के रिवाज से पेड़ों के अस्तित्व को खतरा पैदा होने लगा था, जिस कारण इन पेड़ों को संरक्षित करने के लिए लोहे की ग्रिल लगाई गई है और कच्चे धागे की डोरियां बांधने के लिए अलग व्यवस्था की गई है।
बाबा की तपोस्थली शाहतलाई के गरनाझाड़ी में यह चमत्कार देखने को मिलता है। यहां आज भी गरनाझाडी के चारों ओर लगी लोहे की ग्रिल के साथ कच्चे धागे की लाखों डोरियां बंधी हुई हैं।
बाबा बालक नाथ मंदिर के निकट स्थित एतिहासिक पेड़ों के साथ लगी लोहे की ग्रिल। जागरण।
गरने के दर्शन के बिना यात्रा अधूरी
प्राचीन काल से ही ये दोनों पेड़ सालभर हरे भरे रहते हैं। वहीं लोगों की आस्था है कि शाहतलाई में स्थित गरने के पेड़ के दर्शन किए बिना यात्रा अधूरी मानी जाती है। मान्यता के अनुसार बाबा बालक नाथ ने माई रतनों का धर्म पुत्र बनकर 12 वर्ष तक गाय चराई थी, जबकि बाबा जी चरण गंगा के किनारे स्थित गरने के पेड़ की छाया में बैठकर तपस्या की थी। श्रद्धालुओं का मानना है कि चैत्र मास में गरने के पेड़ के तने में डोरी बांधने से हर मनोकामना पूरी होती है।
शाहतलाई मंदिर में प्राचीन काल से एक गरने का पेड़ व एक वट वृक्ष है, जो सदा हराभरा रहते हैं। मान्यता है कि बाबा बालकनाथ ने इस गरने के नीचे बैठकर तपस्या की थी। इस धरोहर को संरक्षित रखने के लिए मंदिर प्रशासन ने ठोस कदम उठाए हैं। सफाई कर्मचारियों को यहां नियमित सफाई और सिंचाई के लिए नियुक्त किया है, ताकि पेड़ को नुकसान न हो।
-विजय ठाकुर, कनिष्ठ अभियंता, मंदिर न्यास
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