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Khushwant Singh Litfest: मैं बुरा था नहीं, बुरा बना दिया गया...रजा मुराद ने कसौली लिटफेस्ट में सुनाई दास्तां

Khushwant Singh Litfestमैं बुरा था नहीं बुरा बना दिया गया। भारी गले की आवाज में जैसे ही यह शब्द लोगों के कानों में पड़े तो दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाहट से पता चल गया कि मंच से किस दिग्गज अभिनेता ने दस्तक दी है।

By manmohan vashishtEdited By: Virender KumarPublished: Sun, 16 Oct 2022 10:41 PM (IST)Updated: Sun, 16 Oct 2022 10:41 PM (IST)
Khushwant Singh Litfest: मैं बुरा था नहीं, बुरा बना दिया गया...रजा मुराद ने कसौली लिटफेस्ट में सुनाई दास्तां
Khushwant Singh Litfest: खुशवंत सिंह लिटफेस्ट के दूसरे दिन के अंतिम सेशन में रजा मुराद। जागरण

कसौली (सोलन), मनमोहन वशिष्ठ। Khushwant Singh Litfest,मैं बुरा था नहीं, बुरा बना दिया गया। भारी गले की आवाज में जैसे ही यह शब्द लोगों के कानों में पड़े, तो दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाहट से पता चल गया कि मंच से किस दिग्गज अभिनेता ने दस्तक दी है। मौका था कसौली क्लब में चल रहे खुशवंत सिंह लिटफेस्ट के दूसरे दिन के अंतिम सेशन का जिसमें फिल्म इंडस्ट्री के विख्यात विलेन के किरदारों को लेकर चर्चा हुई। इसी चर्चा में दमदार आवाज के मालिक व फिल्मों के मशहूर विलेन रजा मुराद भी बतौर वक्ता पहुंचे थे। इस सत्र में लेखक बालाजी विट्टल की किताब प्योर एविल डिलाइट, जिसमें बालीवुड में विलेन के बदलते किरदारों पर चर्चा हुई। इसमें कैसे डाकुओं से पालिटिशियन, आतंकवादी व भू-माफिया जैसे किरदारों में विलेन के किरदार बदलते हैं। रजा मुराद व बालाजी विट्टल ने बातैर वक्ता जबकि लेखिका सथ्या सरन ने सत्र का वार्ताकार के रूप में संचालन किया। रजा मुराद ने भी नमक हराम फिल्म में अपने किरदार में शायर बदनाम से लेकर प्रेमरोग फिल्म में विलेन बनने के किस्से को सबके सामने रखा।

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इस तरह पूरी हुई 'मुराद'

सत्र में सथ्या सरन ने रजा मुराद से पूछा कि मुझे आपकी नमक हराम फिल्म में आपके गाने मैं शायर बदनाम वाला किरदार बहुत पसंद था, लेकिन उसके बाद आपकी विलेन वाली छवि से थोड़ी बहुत परेशान हुई। मैं आपको शायर के रूप में ही देखना चाहती थी। इस पर रजा मुराद ने कहा कि मैं बुरा था नहीं, बुरा बना दिया गया। इसकी भी एक कहानी है। रजा मुराद ने कहा कि राज कपूर ने मेरी नमक हराम फिल्म देखी थी। मेरी औकात नहीं थी कभी, उन तक पहुंचने की। एक दिन मैं रणधीर कपूर के साथ राम भरोसे फिल्म कर रहा था, तो मैंने कहा कि डब्बू प्लीज मुझे अपने पापा राज कपूर से मिलवाओ। इस पर रणधीर कपूर ने कहा कि व्हाई डू यू वांट टू मीट राज कपूर, तो मैंने कहा कि मैं उनसे मिलना चाहता हूं। रणधीर ने कहा कि राज कपूर जिस तरह की फिल्में बनाते हैं, उसमें तुम फिट नहीं है। मैंने सोचा कि मेरा पता कट गया, लेकिन वक्त बीता और राज कपूर 1980 में जब प्रेम रोग फिल्म की कास्टिंग कर रहे तो उन्होंने अपने प्रोडक्शन मैनेजर से कहा कि ऋषिकेश ने मजदूरों की समस्या पर फिल्म बनाई थी, जिसमें एक शायर था। लंबा सा, भारी आवाज वाला, उसे बुलाइए। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब मुझसे उनका संदेश मिला। राज कपूर ने कहा कि मेरी नजर में तुम इस किरदार में फिट हो। मैं खुश होने के साथ डर भी गया कि राज कपूर की फिल्म में मुझे मुख्य विलेन का किरदार दे रहे हैं, क्या मैं इनकी अपेक्षा पर खरा उतर पाउंगा, लेकिन मैंने अपना 100 प्रतिशत दिया। प्रेम रोग से मेरा विलेन वाली छवि शुरू हुई जो आज तक जारी है। उसके बाद उन्होंने मुझे राम तेरी गंगा मैली में भी मौका दिया। इसलिए मेरा कहना है कि किस्मत कभी कभार ही साथ देती है, तो मौका मिलने पर उसमें सौ प्रतिशत देकर सफल होना चाहिए।

रील व रियल डाकुओं में बहुत अंतर

रजा मुराद ने कहा कि फिल्मों में डाकुओं को घोड़े पर सवार, माथे तिलक लगाकर जय भवानी के नारे लगा रहे हैं। हम ने सच में भी डाकू भी देखे हैं, जो बीहड़ों में छिपे रहते हैं। घोड़ा तो दूर की बात उन्हें कुत्ता भी नहीं मिलता। यदि घोड़ों पर बैठकर डाकू चलेंगे तो कहीं भी पुलिस के शिकंजे में आ जाएंगे। इसलिए रील व रियल डाकुओं में बहुत अंतर है, लेकिन आज डाकुओं की छवि है कि माथे पर तिलक, पगड़ी व कांधे पर कारतूस व बंदूक लटाकर घोड़ों पर चलने वाला ही डाकू है। जबकि सच्चाई इससे अलग है। रजा मुराद ने कहा कि बाजाली विट्टल की किताब को बालीवुड के विलेन का एनसाइक्लोपीडिया बताया व उन्हें इसके लिए सैल्यूट भी किया।


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