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    Chaitra Navratri 2022: हिमाचल के पांच शक्तिपीठों में पूरी होती है हर मुराद, नवरात्र में लगेगा भक्‍तों का मेला, ये हैं पहुंचने के बेस्‍ट रूट

    By Rajesh Kumar SharmaEdited By:
    Updated: Thu, 31 Mar 2022 02:54 PM (IST)

    Chaitra Navratri 2022 दो अप्रैल से चैत्र नवरात्र शुरू हो रहे हैं और हिमाचल के पांचों शक्तिपीठों में दिन-रात मां के जयकारे गूंज उठेंगे। नवरात्र के दौरान पांचों शक्तिपीठों में श्रद्धालुओं की भीड़ हजारों में पहुंच जाती है।

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    जिला कांगड़ा में स्थित मां बज्रेश्‍वरी देवी का भव्‍य मंदिर। फाइल फोटो

    धर्मशाला, जागरण टीम। Himachal Pradesh Shaktipeeth, दो अप्रैल से चैत्र नवरात्र शुरू हो रहे हैं। चैत्र नवरात्र के दौरान देशभर के विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु हिमाचल प्रदेश के पांच शक्तिपीठों एवं सिद्धपीठों में दर्शन के लिए आते हैं। नवरात्र के दिनों में मंदिरों में श्रद्धा का काफी सैलाब देखने को मिलता है। हिमाचल प्रदेश में पांच शक्तिपीठ हैं। इनमें मां चामुंडा देवी, श्री बज्रेश्वरी देवी, श्री ज्वालाजी देवी, मां चिंतपूर्णी देवी, मां नयना देवी के मंदिर काफी प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों में भक्तों की हर मुराद पूरी होती है। सभी मंदिरों में चैत्र नवरात्र को लेकर तैयारियां लगभग पूरा हो चुकी हैं। श्रद्धालुओं को उचित व्यवस्था से लेकर सुरक्षा व्यवस्था तक सभी व्यवस्थाओं को लेकर मंदिर प्रशासन ने रूप रेखा तैयार कर ली है। मंदिरों में सुरक्षा की दृष्टि से प्रदेश की विभिन्न पुलिस बटालियनों से पुलिस व गृह रक्षक जवान बुलाए गए हैं, जोकि कल से डयूटी पर तैनात हो जाएंगे। इन मंदिरों तक पहुंचने के लिए दैनिक जागरण को आपको बेहद आसान रूट बता रहा है।

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    बज्रेश्‍वरी देवी मंदिर में लगी श्रद्धालुओं की लाइनें। फाइल फोटो

    मां बज्रेश्वरी देवी मंदिर कांगड़ा

    कांगड़ा का बज्रेश्वरी देवी शक्तिपीठ जिसे नगरकोट धाम भी कहा जाता है, एक ऐसा स्थान हैं, जहां पहुंच कर भक्तों का हर दुख तकलीफ मां के एक दर्शन भर से दूर हो जाता है। 51 शक्तिपीठों में से यह मां का वह शक्तिपीठ है, जहां मां सती का दाहिना वक्ष गिरा था। माता के इस धाम में मां की पिंडियां भी तीन ही हैं। मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित पहली और मुख्य पिंडी मां बज्रेश्वरी की है। दूसरी मां भद्रकाली और तीसरी और सबसे छोटी पिंडी मां एकादशी की है। मां के इस शक्तिपीठ में ही उनके परम भक्त ध्यानु ने अपना शीश अर्पित किया था। इसलिए मां के वे भक्त जो ध्यानु के अनुयायी भी हैं वह पीले रंग के वस्त्र धारण कर मंदिर में आते हैं और मां का दर्शन पूजन कर स्वयं को धन्य करते हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त मन में सच्ची श्रद्धा लेकर मां के इस दरबार में पहुंचता है उसकी कोई भी मनोकामना अधूरी नहीं रहती। चाहे मनचाहे जीवनसाथी की कामना हो या फिर संतान प्राप्ति की लालसा। मां अपने हर भक्त की मुराद पूरी करती हैं।

    कैसे पहुंचे बज्रेश्वरी देवी

    पठानकोट से कांगड़ा करीब 100 किलोमीटर दूरी पर है। सड़क मार्ग से पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग से भी आया जा सकता है। इसके अलावा पठानकोट से जोगिंद्रनगर ट्रेन से भी आ सकते हैं। यह ट्रेन पुराना कांगड़ा से होकर जाती है। इसके अलावा हवाई यात्रा करने वाले लोग दिल्ली या चंडीगढ़ से फ्लाइट लेकर भी आ सकते हैं।

    ज्वालाजी मंदिर

    ज्वालामुखी मंदिर को ज्वालाजी के रूप में भी जाना जाता है। यह जिला में कांगड़ा शहर से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर हिंदू देवी ज्वालामुखी को समर्पित है। इनके मुख से अग्नि का प्रवाह होता है। इस मंदिर में अग्नि की अलग-अलग छह लपटें हैं जो अलग अलग देवियों को समर्पित हैं जैसे महाकाली अन्नपूरना, चंडी, हिंगलाज, बिंध्यबासनी, महालक्ष्मी सरस्वती, अम्बिका और अंजी देवी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर सती के कारण बना था। बताया जाता है कि देवी सती की यहां जीभ गिरी थी। इस मंदिर में अग्नि की लपटें एक पर्वत से निकलती हैं। अकबर को अपने शासन के समय जब इस मंदिर के बारे में पता चला था तो उसने आग की लपटों के ऊपर एक नहर बनाकर पानी छोड़ दिया था, फिर भी यह लपटें नहीं बुझी थी। उसके बाद अकबर ने इन्हें लोहे के बड़े ढक्कन (तवा) से बुझाने का भी प्रयास किया था। लेकिन यह उसे फाड़कर भी बाहर आ गई थी। उसके बाद अकबर यहां नंगे पांव आया था और मां से माफी मांगते हुए यहां सोने का छत्र अर्पित किया था।

    चामुंडा नंदीकेश्वर धाम

    चामुंडा देवी मंदिर भी हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में स्थित है। जिला मुख्यालय धर्मशाला से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर बनेर नदी के किनारे स्थित यह मंदिर 700 साल पुराना है। इस विशाल मंदिर का विशेष धार्मिक महत्व है जो 51 सिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर हिंदू देवी चामुंडा जिनका दूसरा नाम देवी दुर्गा भी है, को समर्पित है। इस मंदिर का वातावरण बड़ा ही शांत है जिस कारण यहां आने वाला व्यक्ति असीम शांति की अनुभूति करता है। माता का नाम चामुंडा पडऩे के पीछे एक कथा प्रचलित है कि मां ने यहां चंड और मुंड नामक दो असुरों का संहार किया था। उन दोनों असुरों को मारने के कारण माता का नाम चामुंडा देवी पड़ गया। यहां साथ ही में एक गुफा के अंदर भगवान शिव भी नंदीकेश्वर के नाम से विराजमान हैं। ऐसे में इस स्थान को चामुंडा नंदीकेशवर धाम भी कहा जाता है।

    ऐसे पहुंचे श्रीनयना देवी

    उत्तर भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठ श्रीनयना देवी पहुंचने के लिए दो प्रमुख रास्ते हैं। दिल्ली व चंडीगढ़ की तरफ से अगर कोई भक्तजन आ रहा है तो सड़क के रास्ते चंडीगढ़ से उन्हें सबसे पहले कीरतपुर पहुंचना होगा। उसके बाद एक रास्ता कीरतपुर से वह गड़ा मोड़ा होते हुए स्वारघाट के रास्ते पर बाएं तरफ श्रीनयना देवी के रास्ते से मंदिर पहुंच सकेंगे। वहीं दूसरा रास्ता चंडीगढ़ से सीधा कीरतपुर होते हुए आनंदपुर साहिब पहुंचे। यहां वाया टोबा होकर आप सीधा श्रीनयना देवी मंदिर तक पहुंच सकते हैं। चंडीगढ़ से मंदिर तक की दूरी करीब 105 किलोमीटर है, कार के माध्यम से दो या तीन घंटे का सफर है।

    ऐसे पहुंचें मां चिंतपूर्णी के दरबार में

    मां चिंतपूर्णी माता मंदिर से नजदीकी हवाई अड्डा कांगड़ा एयरपोर्ट है, जिसकी चिंतपूर्णी से दूरी करीब 64 किलोमीटर है। नजदीकी रेलवे स्टेशन अम्ब में है, जिसकी दूरी इस मंदिर से करीब 25 किलोमीटर है। पंजाब व हरियाणा के बड़े शहरों और दिल्ली से इस धार्मिक नगरी के लिए सीधी बस सेवा है। चिन्तपूर्णी से चंडीगढ़ की दूरी 175 किलोमीटर और जालंधर से 92 किलोमीटर है। बस या टैक्सी द्वारा भी मां चिंतपूर्णी देवी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।