Shimla Literature Festival: साहित्य उत्सव शिमला में आदिवासी लेखकों का छलका दर्द, झेलनी पड़ रही ये दो समस्याएं
Shimla Literature Festival अंतराष्ट्रीय साहित्य उत्सव के दूसरे दिन शुक्रवार को आदिवासी लेखकों के सामने चुनौतियां सत्र में आदिवासी लेखकों ने अपना पूरा दर्द चंद शब्दों में बयां कर दिया। आदिवासी लेखक मदन मोहन सोरेन के सामने सबसे बड़ी समस्या प्रकाशकों की है।

शिमला, जागरण संवाददाता। Shimla Literature Festival, अंतराष्ट्रीय साहित्य उत्सव के दूसरे दिन शुक्रवार को आदिवासी लेखकों के सामने चुनौतियां सत्र में आदिवासी लेखकों ने अपना पूरा दर्द चंद शब्दों में बयां कर दिया। आदिवासी लेखक मदन मोहन सोरेन के सामने सबसे बड़ी समस्या प्रकाशकों की है। उनको कोई भी प्रकाशक आगे आकर सपोर्ट नहीं करता है। इस कारण उन्हें हमेशा परेशानी का सामना करना पड़ता है। राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार किसी से भी उन्हें मदद नहीं मिलती है। हमेशा मदद के लिए उन्हें दरकार रहती है।
आदिवासी लेखक चंद्रकांत मान सिंह ने कहा उनके साहित्य को पढ़ने वाले लोगों की संख्या काफी कम होती है, इसलिए इन्हें रीडर नहीं मिलते हैं, इन्हें रीडर तलाशने के लिए अंग्रेजी या हिंदी भाषा में अपने साहित्य का अनुवाद करना पड़ता है। जिसके बाद उन्हें रीडर और प्रकाशक सभी मिल जाते हैं। इनका सबसे बड़ा दर्द प्रकाशकों की तलाश और रीडर की तलाश है।
महिला आदिवासी लेखिका स्ट्रेमलेट ने कहा कि जब तक साहित्य अकादमी उनकी भाषा को मान्यता नहीं देती है, तब तक उनकी समस्या ऐसे ही रहेगी और आने वाले समय में भी उन्हें ऐसी समस्याएं झेलनी पड़ेगी। इसलिए राज्य सरकारों से लेकर केंद्र सरकार नहीं बल्कि साहित्य अकादमी को भी इस दिशा में काम करना होगा, ताकि उन लोगों को प्रकाशक और रीडर तलाशने में कोई ज्यादा समस्या न हो।
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