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    Sair Festival: सायर उत्‍सव पर यहां होता है अखरोट से खेल, हर घर में बने खास पकवान, नवविवाहिताएं अभी नहीं आएंगी ससुराल

    By Rajesh Kumar SharmaEdited By:
    Updated: Sat, 17 Sep 2022 12:20 PM (IST)

    Himachal Kangra Sair Festival बरसात का मौसम संपन्‍न होने पर सायर उत्सव मनाया जाता है। इसके साथ ही यह त्यौहार खरीफ की तैयार हो रही फसल का भी स्वागत करता है। सायर उत्सव जिला कांगड़ा में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।

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    बरसात का मौसम संपन्‍न होने पर सायर उत्सव मनाया जाता है।

    धर्मशाला, जागरण संवाददाता। Himachal Kangra Sair Festival, बरसात का मौसम संपन्‍न होने पर सायर उत्सव मनाया जाता है। इसके साथ ही यह त्यौहार खरीफ की तैयार हो रही फसल का भी स्वागत करता है। सायर उत्सव जिला कांगड़ा में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस उत्सव को मनाने के पीछे एक धारणा यह भी है कि प्राचीन समय में बरसात के मौसम में लोग दवाएं उपलब्ध न होने के कारण कई बीमारियों व प्राकृतिक आपदाओं का शिकार हो जाते थे तथा जो लोग बच जाते थे वे अपने आप को भाग्यशाली समझते थे तथा बरसात के बाद पड़ने वाले इस उत्सव को खुशी खुशी मनाते थे। तब से लेकर आज तक इस उत्सव को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।

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    जिला के पालमपुर व बैजनाथ में इस दिन लोग एक खास खेल खेलते हैं। इसमें अखरोटों के साथ खेल खेला जाता है। इस खेल को स्थानीय भाषा में मीर कहते हैं। वैसे तो यह खेल सिक्कों से खेला जाता है, जिसमें हर व्यक्ति अपने अपने हिस्से का सिक्का डालता है। जिस व्यक्ति की बारी होती है कि इन सिक्कों को एक छोटे से गड्ढे में आसपास या गड्ढे में डालने का प्रयास करता है। इसके बाद अन्य लोग एक सिक्के पर निशाना लगाने को कहते हैं। अगर निशाना लग जाता है तो सारे सिक्के निशाना लगाने वाले के हो जाते हैं। इसी तरह सायर उत्सव पर यह खेल अखरोटों के साथ खेला जाता है। सायर का दिन नव दंपतियों के लिए भी खास होता है।

    नई दुल्हनें आ जाती हैं ससुराल

    यह त्योहार एक तरह से बरसात में बारिश के कारण एक-दूसरे से न मिल पाने के कारण मिलने का बहाना भी हो जाता है। जो नवविवाहिताएं “काला महीना” यानि भादों में अपने मायके आई होती हैं वो भी इस दिन वापस अपने ससुराल चली जाती हैं। लेकिन इस बार लड़कियां ससुराल थोड़ा देरी से जाएंगी, क्योंकि अभी श्राद्ध लगे हैं तो इन दिनों उनका अपने ससुराल आना शुभ नहीं माना जाता है।

    बनाए जाते हैं ये खास पकवान

    पकोड़ू और भटूरू, खीर, गुलगुले, चिलड़ू आदि पकवान बनाए जाते हैं। ये पकवान एक थाली में सजाकर आस-पड़ोस और रिश्तेदारों में बांटे जाते हैं और उनके घर से भी पकवान लिए जाते हैं। अगले दिन धान के खेतों में गलगल फेंके जाते हैं और अगले वर्ष अच्छी फसल के लिए प्रार्थना की जाती है।

    ऐसे होती है पूजा

    चावल या गेहूं को थाली में फैला दिया जाता है और उसके ऊपर मक्का, धान की बालियां, खीरा, अमरूद, गलगल आदि ऋतु के फल रखे जाते हैं। तड़के सुबह ही यह पूजन होता है।