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    Sair Festival: हिमाचल में सायर का त्‍योहार है बेहद खास, कांगड़ा में बनते हैं ये पारंपरिक पकवान, नई ऋतु का आगमन है यह उत्‍सव

    By Rajesh Kumar SharmaEdited By:
    Updated: Wed, 14 Sep 2022 07:42 AM (IST)

    Himachal Kangra Sair Festival सायर उत्सव इस वर्ष 17 सितंबर को मनाया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में इस त्‍योहार को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व पर लजीज पकवान बनाए जाते हैं जिन्हें आसपास व नाते रिश्तेदारों में भी बांटने का प्रचलन है।

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    सायर उत्सव इस वर्ष 17 सितंबर को मनाया जा रहा है।

    धर्मशाला, जागरण संवाददाता। Himachal Kangra Sair Festival, सायर उत्सव इस वर्ष 17 सितंबर को मनाया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में इस त्‍योहार को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व पर लजीज पकवान बनाए जाते हैं, जिन्हें आस पास के घरों में व नाते रिश्तेदारों में भी बांटने का प्रचलन है। सायर उत्सव हिमाचल प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। अन्य जिलों सहित खासकर कांगड़ा जिला में इस पर्व का खास महत्‍व है। यह पर्व अश्विन माह की संक्रांति को वर्षा ऋतु खत्म होने व शरत ऋतु के स्वागत में भी मनाया जाता है। इस समय खरीफ की फसलें पक जाती हैं और काटने का समय होता है, तो फसलों के लिए भगवान का धन्यवाद देने के लिए सैरी माता को फसलों का अंश और मौसमी फल चढ़ाए जाते हैं। फसलों व फलों की पूजा होती है। इसके अलावा राखियां भी उतार कर सैरी माता को चढ़ाई जाती हैं। सायर उत्सव के बाद दीपावली तक विभिन्न व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं।

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    यह बनते हैं पकवान

    पतरोड़े, पकोड़ू और भटूरू, खीर, गुलगुले, चिलड़ू आदि पकवान भी बनाए जाते हैं। ये पकवान एक थाली में सजाकर आस-पड़ोस और रिश्तेदारों में बांटे जाते हैं और उनके घर से भी पकवान लिए जाते हैं। अगले दिन धान के खेतों में गलगल फेंके जाते हैं और अगले वर्ष अच्छी फसल के लिए प्रार्थना की जाती है।

    सायर की पूजा में यह होता है शामिल

    चावल या गेहूं को थाली में फैला दिया जाता है और उसके ऊपर मक्का, धान की बालियां, खीरा, अमरूद, गलगल आदि ऋतु फल रखे जाते हैं। तड़के सुबह ही यह पूजन होता है।

    उत्सव मनाने के पीछे यह भी है धारणा

    इस उत्सव को मनाने के पीछे एक धारणा यह भी है कि प्राचीन समय में बरसात के मौसम में लोग दवाएं उपलब्ध न होने के कारण कई बीमारियों व प्राकृतिकआपदाओं का शिकार हो जाते थे तथा जो लोग बच जाते थे वे अपने आप को भाग्यशाली समझते थे तथा बरसात के बाद पड़ने वाले इस उत्सव को खुशी खुशी मनाते थे। तब से लेकर आज तक इस उत्सव को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।