बरसात में भाखड़ा बांध के पूरे भरने से फिर ताजा हुआ बिलासपुर का दर्द, 100 फीट कम होती ऊंचाई तो न डूबती धरोहरें
Bilaspur Bhakra Dam भाखड़ा बांध बनने के बाद देश के विकास को गति तो मिली लेकिन पुराने बिलासपुर शहर की सारी संस्कृति उस पानी में डूब गई। उस समय राजा आनंद चंद की एक ही मांग होती थी कि भाखड़ा बांध की ऊंचाई 1580 फीट रखी जाए

बिलासपुर, गौरव शर्मा। Bilaspur Bhakra Dam, भाखड़ा बांध बनने के बाद देश के विकास को गति तो मिली, लेकिन पुराने बिलासपुर शहर की सारी संस्कृति उस पानी में डूब गई। उस समय राजा आनंद चंद की एक ही मांग होती थी कि भाखड़ा बांध की ऊंचाई 1580 फीट रखी जाए, ताकि बांध से बनने वाली झील का जलस्तर सांडू मैदान से 20 फीट नीचे रहे। वहीं अगर ऐसा होता तो इस तरह सांडू मैदान, बिलासपुर शहर, महल, पुराने मंदिर आदि डूबने से बच जाते।शक्ति सिंह चंदेल ने अपनी पुस्तक बिलासपुर थ्रू द सेंचुरी में लिखा है कि सन 1938-39 में रोहतक व हिसार जिलों में बहुत भयंकर सूखा पड़ा था। उस समय काफी लोग और पशु मर गए थे। तब फिर भाखड़ा बांध बनाने की योजना पर विचार होने लगा।
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रोहतक जिला के छोटू राम चौधरी जो कि उस समय पंजाब में ऊर्जा मंत्री थे। उन्होंने भी बांध बनाने का सुझाव दिया था। तब पंजाब का चीफ इंजीनियर और फाइनांस कमिश्नर बिलासपुर आए थे और बांध बनाने की योजना को सिरे चढ़ाने के लिए राजा बिलासपुर से जरूरी बातचीत की थी। सर छोटू राम चौधरी ने भाखड़ा 1938 में विजिट किया था। वहां पर राजा आनंद चंद भी उनसे मिले थे। इस तरह उस समय उस अंग्रेज गवर्नर ने सतलुज नदी पर एक बांध बनाए जाने का प्रपोजल दिया था।
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राजा आनंद चंद से भाखड़ा बांध को लेकर बातचीत के कई दौर चले थे। पंजाब सरकार के चीफ इंजीनियर एएन खोसला ने कई बार राजा से बातचीत की। इस बातचीत में राजा आनंद चंद का एक ही स्टैंड रहता था कि भाखड़ा बांध की ऊंचाई 1580 फीट रखी जाए। राजा की बात मान ली गई थी, लेकिन यह खुशी बड़ी देर नहीं रही। जब देश आजाद हुआ तो भाखड़ा डैम की योजना फिर बदल गई। तब इस डैम की ऊंचाई 100 फीट और बढ़ाकर 1680 फीट कर दी गई। यदि बांध की ऊंचाई 1580 फुट रहती तो झील में 18067 एकड़ भूमि डूबनी थी। लेकिन बांध की ऊंचाई 1680 फीट करने से 63410 एकड़ जमीन और आठ हजार परिवार प्रभावित हुए थे। बरसात में जब बांध पूरी तरह पानी से भर जाता है तो लोगों का दर्द फिर से ताजा हो जाता है।

राजा आनंद चंद ने इस एवज में बिलासपुर को सी स्टेट घोषित करवाने की अहम भूमिका निभाई थी। विस्थापित होने वाले परिवारों के लिए मुआवजा और जमीन का प्रबंध भी करवाया गया था। हालांकि राजा को सरकार ने 300 एकड़ भूमि दिए जाने का वायदा किया था, जिस पर कभी अमल ही नहीं हुआ। भाखड़ा बांध के बाद जब गोविंद सागर झील अस्तित्व में आई तो इसमें बिलासपुर की लाइफ लाइन समझा जाने वाला भंजवानी पुल जलमग्न हो गया। बहुत से प्राचीन मंदिर झील की गाद में लुप्त हो गए हैं। राजा के महल, बाग बगीचे, चश्मे, प्राकृतिक जल स्रोत, सार्वजनिक स्नानागार सब गाद की भेंट चढ़ गए। देश में खुशहाली आई, लेकिन बिलासपुर के हिस्से तो विस्थापन ही आया। जो लोग हिसार, फतेहाबाद, सिरसा, डबवाली आदि के गांवों में जाकर बसाए गए वो भी वर्षों तक विस्थापन का दंश झेलते रहे। उन्हें वहां की संस्कृति में ढलने के लिए अपनी संस्कृति को भुलाना पड़ा है।

क्या है खटनाऊ
वरिष्ठ लेखक व साहित्यकार कुलदीप चंदेल ने बताया कि आज हम भले ही गोबिंद सागर झील में मोटर बोट द्वारा आरपार होते हैं। मोटर बोट से सैर करते हैं, लेकिन साठ के दशक से पहले सतलुज नदी में खटनाऊओं, दरंइयों व सनाईयों द्वारा ही आर-पार होने का इंतजाम रहता था। खटनाऊओं पर तो राजा आदि बड़े लोग ही बैठकर सैर करते थे। दरंई सनाई आदि भैंस और बकरे के चमड़े से बनाए जाते थे। जिनमें हवा भर कर आर पार होते थे। खटनाऊ को अच्छे तारु यानि तैराक ही चलाते थे।

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