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    Himachal Vidhan Sabha Chunav: फाइनल से पहले अभ्यास मैच में कांग्रेस, भाजपा की गलतियां

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Thu, 25 Aug 2022 12:02 PM (IST)

    आनंद शर्मा स्वयं इस बात को जानते और मानते हैं कि उनका मार्ग कभी चुनावी नहीं रहा। वह हमेशा उच्च सदन में या उच्च पदों पर रहे। हिंदी और अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ के साथ दस जनपथ की नजदीकियां उन्हें बड़े स्थानों पर स्वीकार्य बनाती आई हैं।

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    पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा (बीच में) का बुधवार को शिमला में अभिनंदन करते कांग्रेस कार्यकर्ता। जागरण

    कांगड़ा, नवनीत शर्मा। थोड़ी देर के लिए हिमाचल प्रदेश को एक मैदान मान लीजिए। तीन दल मैदान में उतर चुके हैं। खेल कोई एक नहीं, अपितु सब खेलों का सम्मिश्रण है। इसमें शतरंज, खो-खो, कबड्डी या फिर कुछ भी। और जो ट्राफी है उस पर लिखा है- हिमाचल प्रदेश सरकार 2022-27। चुनाव के मैच से पूर्व का मौसम है और अभ्यास जारी है। अभ्यास मैच देख कर भी पता चल जाता है कि कौन टीम कैसे खेल रही है। अभ्यास सत्र के दौरान बीते कुछ दिनों में कांग्रेस दो बार कैच आउट हुई है। भारतीय जनता पार्टी ने दो बार अपने ही विरुद्ध गोल दागे। आम आदमी पार्टी अभी मैदान में उतरते ही मैदान मारने के प्रयास में है। हालांकि वह भी बीच में रन आउट हुई, जब उसका दामन थामने वाले कुछ नेताओं ने घर वापसी कर ली थी।

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    कांग्रेस का कैच एक बार तब लपका गया जब कांग्रेस की केंद्रीय राजनीति का बड़ा नाम आनंद शर्मा ने हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की चुनाव संचालन समिति से त्यागपत्र दे दिया। सोनिया गांधी को लिखे पत्र में जो दिल आनंद ने उंड़ेला है उसका सार यही है कि बात ‘आत्मसम्मान’ को रगड़ लगने तक पहुंच गई थी.. और उनके पास ‘अन्य कोई विकल्प नहीं’ बचा था। आनंद शर्मा स्वयं इस बात को जानते और मानते हैं कि उनका मार्ग कभी चुनावी नहीं रहा। वह हमेशा उच्च सदन में या उच्च पदों पर रहे। हिंदी और अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ के साथ दस जनपथ की नजदीकियां उन्हें बड़े स्थानों पर स्वीकार्य बनाती आई हैं। उनके जाने से हुआ सबसे बड़ा प्रभाव कांग्रेस की किरकिरी ही है। जी-23 का अहम भाग होने के बाद वह आलाकमान के साथ सहज तो नहीं ही हैं। कांग्रेसमुक्त भारत के पक्ष में उठता कोई भी कदम भारतीय जनता पार्टी के लिए स्वागत के योग्य ही होता है। विशेषत: तब, जब उसमें कांग्रेस के स्तंभ ही योगदान दें। हालांकि कांग्रेस के एक नेता मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘आनंद जी को पता है कि कहां उनकी उपयोगिता है और कहां नहीं है.. इसीलिए वह अब तक कांग्रेस, भारत जोड़ो, केंद्रीय चुनाव समिति और केंद्रीय कार्यसमिति के साथ हैं।’ दूसरी अप्रिय स्थिति पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष पवन काजल और विधायक लखविंद्र राणा का भाजपा में जाना है।

    किंतु काजल और राणा का भाजपा में जाना या भाजपा में घर वापसी करना अभी तो पार्टी विद डिफरेंस के लिए स्वयं के विरुद्ध गोल जैसा ही है। बाद में स्थिति सुधरे तो कह नहीं सकते। इसे गिल्ली-डंडा खेल की एक शब्दावली ‘भटंड’ भी कह सकते हैं। हिमाचली पहाड़ी में ‘भटंड’ से आशय उस क्रिया से है, जिसके अंतर्गत खिलाड़ी गिल्ली की नोक पर डंडे से प्रहार करता है और चूकवश डंडे की नोक से गिल्ली विपरीत दिशा में उठ जाती है। इसे गलती ही माना जाता है। काजल और राणा का लौटना इसलिए भटंड है, क्योंकि मंडल भड़क गए हैं। हो सकता है पन्ना स्तर तक डटा कार्यकर्ता आलाकमान की मर्जी को मान ले। जिनके होठों पर हसीं, पांवों में छाले होंगे, हां वही लोग तेरे चाहने वाले होंगे। जाहिर है, पुराने कार्यकर्ता इस अवस्था को प्राप्त होने से पहले दरियां, कुर्सियां उठाने वालों की निष्ठा का क्या हुआ जैसे प्रश्न उठा रहे हैं। यहां तक बातें हो रही हैं कि ‘आयातित’ या पैराशूट से उतरे लोगों की सहायता करना कठिन है। हो सकता है, कल को काजल भाजपा के हर कार्यकर्ता की आंख में झलकें और लखविंद्र राणा भी नालागढ़ मंडल के दिल के राजा बन जाएं, किंतु अभी पेंच देहरा में भी है जहां आजाद जीते होशियार सिंह ने भाजपा में वापसी तो की, पर मंडल अभी ‘होशियार हो’ का आदेश मानने से हट रहा है। हार कर होशियार सिंह घोषणा कर चुके हैं कि टिकट नहीं मिला तो आजाद लड़ेंगे।

    भाजपा के नेता कह रहे हैं कि अभी तो और कई नेताओं को कांग्रेस का हाथ छिटक कर आना है। पौधारोपण के बाद भी पौधे को संभालना, सहेजना पड़ता है। यहां तो पेड़ एक स्थान से उठा कर दूसरे स्थान पर रोपे जा रहे हैं। देखना यह है कि उन्हें खाद पानी देने को मंडल कब, कैसे तैयार होते हैं। स्वयं के विरुद्ध भाजपा का एक गोल हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग की नियुक्तियां और उनका टल जाना भी रहा। पिछले दिन नियुक्तियां कर अगले दिन सुबह शपथ ग्रहण समारोह होना था, जो कतिपय कारणों से नहीं हुआ। ऐसा हिमाचल प्रदेश के इतिहास में पहली बार हुआ। कारण क्या रहा, यह बताने को कोई तैयार नहीं है, किंतु यह संदेश अवश्य गया कि किसी न किसी स्तर पर घोर संवादहीनता थी, अन्यथा राज्यपाल की अधिसूचना न मानी जाए, यह संभव नहीं है। दिलचस्प यह है कि विपक्ष ने यह तो जानना चाहा कि किन स्थितियों में नियुक्तियां टाली गई, यह नहीं कहा कि वर्ष 2013 के बाद से लोक सेवा आयोग में कोई भी नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई व्यवस्था के अनुसार नहीं हुई। क्योंकि अब का विपक्ष जानता है कि उसने पक्ष में रहते हुए भी कानून के बजाय स्वविवेक का सहारा लिया था।

    [राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]