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Himachal Election Result 2022: हिमाचल की सत्ता तक पहुंचने के लिए किसकी टिकट होगी कन्फर्म, अभी करना होगा इंतजार

Himachal Election 2022 भाजपा की आंख के काजल बने प्रत्याशी का पत्र भी चर्चा में है जिसमें उन्होंने अपनों पर ही साथ न चलने के आरोप लगाए हैं। सुना है कुछ आडियो भी हैं उनके पास। चलिए प्रतीक्षा करते हैं आठ दिसंबर तक।

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalPublished: Thu, 24 Nov 2022 10:02 AM (IST)Updated: Thu, 24 Nov 2022 10:02 AM (IST)
Himachal Election Result 2022: हिमाचल की सत्ता तक पहुंचने के लिए किसकी टिकट होगी कन्फर्म, अभी करना होगा इंतजार
Himachal Election 2022: कौन बनेगा मुख्यमंत्री, कौन मुख्य सचिव

कांगड़ा, नवनीत शर्मा। हिमाचल प्रदेश कैडर के तीन आइएएस अधिकारियों राम सुभाग सिंह, निशा सिंह और संजय गुप्ता को मुख्यधारा से हटा, सलाहकार बना कर प्रदेश सरकार ने राम दास धीमान को मुख्य सचिव बनाया था जो अगले माह सेवानिवृत्त हो रहे हैं। हिमाचल प्रदेश काडर से वरिष्ठता क्रम में अब वरिष्ठ नौकरशाह अली रजा रिजवी और के संजयमूर्ति हैं जो केंद्र में सचिव हैं। उनके बाद वर्तमान अतिरिक्त मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना हैं। इनके अलावा, कोई अधिकारी मुख्य सचिव श्रेणी का नहीं है तो स्पष्ट है कि प्रबोध सक्सेना ही मुख्य सचिव पद के स्वाभाविक दावेदार हैं। यह कहना बड़ा कठिन है कि वह मुख्य सचिव बनेंगे या नहीं। किंतु इस बीच खाली बैठे लोगों ने जिस तरह न्यायपालिका का समय बर्बाद किया है, अपना कार्य छोड़ कर अतिरिक्त गतिविधियां की हैं, उससे कुछ प्रश्न अवश्य उठते हैं।

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हिमाचल में यह रिवाज पुराना है कि अपनी पसंद का मुख्य सचिव तैनात करने में आड़े आ रहे वरिष्ठ अधिकारियों को लांघ कर नियुक्ति की जाती है। यह भी सरकार का विशेषाधिकार है। वीरभद्र सरकार में भी विनीत चौधरी, उपमा चौधरी और दीपक सानन को सलाहकार बना कर वीसी फारका को मुख्य सचिव बनाया गया था। किंतु जिन्हें प्रशासन की मुख्यधारा से हटाने का निर्णय लिया जाता है, उनकी सुविधाएं कायम रहती हैं। यदि उनमें कोई कटौती नहीं होती तो उनसे कार्य क्यों नहीं लिया जाता। खाली बैठे तो कुछ सूझता ही है। रिपोर्टिंग उनकी मुख्य सचिव को इसलिए नहीं होती कि वे वरिष्ठ हैं। उनकी रिपोर्टिंग मुख्यमंत्री को होती है तो उनके पास अनगिन दायित्व होते हैं। यानी जब कोई काम नहीं है तो अफसर पत्र लेखन विधा की ओर ही लौटेगा। जब सरकार ने ठान लिया हो कि सलाहकार वही बनेगा जिससे सलाह नहीं लेनी है तो अफसर निजी क्षेत्र को सलाह देता रहे, कौन रोक सकता है। लेकिन सवा दो लाख बेसिक वेतन वाले तीन अधिकारी वार्षिक रूप से कितने रुपये में पड़ते हैं, हिमाचल जैसे केंद्रपोषित राज्य में, ध्यान दिया ही जाना चाहिए।

दिल्ली दरबार में हम भी हैं

‘असां दा जागत दिल्लिया लग्गेया।’ यानी हमारा लड़का दिल्ली में नौकरी पर लगा है। हिमाचली परिवेश में यह उत्तर कई बार तब मिलता है जब यह पूछा जाए कि आपका बेटा क्या करता है। इन दिनों घर द्वार, गली हाट, राह बाजार नई सरकार कौन बनाएगा, की चर्चा है। जाहिर है, भाजपा को आशा है कि रिवाज बदलेगा और कांग्रेस को आशा है कि इस बार के पांच वर्ष उसके हैं, इसलिए उसके सब बड़े नेता दिल्ली पहुंच रहे हैं।

समर्थकों से पूछें कि साहब कहां हैं, तो जवाब मिलता है- दिल्ली गए हैं। बड़े नेताओं के सामने कुछ कह रहे हैं। वे न भी कह रहे हों तो उनका बड़े नेताओं के सामने चेहरा दिखाने में ही यह प्रार्थना नत्थी हुई रहती है कि… सर... मैडम…... हम भी हैं! यदि जनता हाथ का साथ देती है तो आप हाथ मत कीजिएगा। हाथ करना यानी अधर में छोड़ना। संदेह नहीं कि यह उनका अधिकार है। अब कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के इतने उम्मीदवार हैं तो इसमें कांग्रेस का क्या दोष।

एक युग था जब वीरभद्र सिंह ही होते थे, दूसरा कोई नहीं। जेबीएल खाची, सुखराम, राम लाल ठाकुर, सत महाजन और बाद में कौल सिंह, जीएस बाली आदि सब किनारे कर दिए गए। यह पहली बार है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए इतने लोग कतार में हैं। देखना यह है कि आठ दिसंबर को परिणाम यदि कांग्रेस के पक्ष में आया तो सीएम पद के लिए हिमाचल का मल्लिकार्जुन खरगे कौन बनेगा। एक कौल सिंह हैं जिन्होंने कहा है कि वह मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे परिपक्व व अनुभवी व्यक्ति हैं। परिणाम से पहले आडियो लीक के रुझान : एक विद्वान ने कहा था कि जब फट पड़ने का पूरा मन हो, ठीक उसी समय चुप रहना चाहिए।

एक भारत श्रेष्ठ भारत

हिमाचल के राजनीतिकों को यह समझाने वाला कोई नहीं। पहले मंडी से एक वरिष्ठ, किंतु मुख्यधारा से दूर कर दिए गए भाजपा नेता का आडियो सामने आया था। अब चंबा की वादियों से अर्ध हिंदी और अर्ध पंजाबी में एक पूर्व विधायक का नारी स्वर संचार माध्यमों को गुंजायमान कर रहा है। प्रत्याशी चयन पर आर वाला और पार वाला की बातचीत में भाजपा पर सवालों की बौछार करते हुए कांग्रेस नेता की सहायता के वचन सुनने में आ रहे हैं। कुछ बांध के इस ओर और उस पार वाले की बात हो रही है। यानी धरतीपुत्र की बात हो रही है। राजनीति ने धरतीपुत्र शब्द को अपने क्षुद्र हितों के लिए कहीं का नहीं छोड़ा है। काश, एक विधानसभा क्षेत्र में भी ‘इस ओर, उस पार’ में फंसे राजनीतिकों को एक भारत श्रेष्ठ भारत का कुछ पता होता। वहीं, भाजपा की आंख के काजल बने प्रत्याशी का पत्र भी चर्चा में है जिसमें उन्होंने अपनों पर ही साथ न चलने के आरोप लगाए हैं। सुना है कुछ आडियो भी हैं उनके पास। चलिए, प्रतीक्षा करते हैं आठ दिसंबर तक।

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]


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