23 लाख से संवरेगा पहाड़ी बुलबुल का आशियाना
सुनील राणा देहरा पहाड़ी बुलबुल स्वतंत्रता सेनानी बाबा कांशीराम के खंडहर हो रहे पैतृक मकान के दिन जल्द फिरने वाले हैं। लोक निर्माण विभाग ने बाबा का स्मारक घोषित हो चुके इस मकान को संवारने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। भाषा एवं संस्कृति विभाग की मंजूरी मिलते ही मरम्मत का काम शुरू कर दिया जाएगा।

सुनील राणा, देहरा
पहाड़ी बुलबुल स्वतंत्रता सेनानी बाबा कांशीराम के खंडहर हो रहे पैतृक मकान के दिन जल्द फिरने वाले हैं। लोक निर्माण विभाग ने बाबा का स्मारक घोषित हो चुके इस मकान को संवारने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। भाषा एवं संस्कृति विभाग की मंजूरी मिलते ही मरम्मत का काम शुरू कर दिया जाएगा। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि पहाड़ी बुलबुल के आशियाने का जल्द कायाकल्प हो जाएगा। मरम्मत पर 23 लाख रुपये खर्च किए जाएंगे।
2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने बाबा कांशी राम के खंडहर हो रहे मकान को स्मारक बनाने की घोषणा की थी। काफी समय तक इस संबंध में कार्यवाही आगे नहीं बढ़ी, लेकिन 2018 में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने फिर से खंडहर हो रहे मकान की मरम्मत की घोषणा की। अब करीब चार साल बाद ही सही लोक निर्माण विभाग ने इस काम के लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी है। बताया जा रहा है कि अब भाषा एवं संस्कृति विभाग से मंजूरी का इंतजार किया जा रहा है। निर्माण कार्य पर 23 लाख 37 हजार 141 रुपये खर्च होंगे।
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1882 में हुआ था जन्म
बाबा कांशी राम का जन्म 11 जुलाई, 1882 को कांगड़ा जिले के डाडासीबा के नजदीकी गांव गुरनवाड़ में हुआ था। सात साल की उम्र में बाबा कांशीराम का विवाह खुद से दो साल छोटी सरस्वती से हो गया। बचपन काफी चुनौतीपूर्ण रहा क्योंकि 11 वर्ष की आयु में ही सिर से पिता का साया उठ गया था। रोजी रोटी का संकट आया तो वह काम की तलाश में लाहौर चले गए। वहां उनकी भेंट लाला लाजपत राय समेत कई स्वतंत्रता सेनानियों से हुई। उनसे प्रभावित होकर वह स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे।
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ऐसे मिला बुलबुल नाम
1937 में बाबा को जब गढ़दीवाला (होशियारपुर) की जनसभा में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सुना तो वे उनसे बहुत प्रभावित हुए। नेहरू ने उन्हें पहाड़ी गांधी का नाम दिया। कांशीराम की सुरीली आवाज जब सरोजिनी नायडू ने सुनी तो उन्होंने बाबा को बुलबुल-ए-पहाड़ यानी पहाड़ी बुलबुल नाम दिया था।
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अंतिम सांस तक पहने काले कपड़े
1931 में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई। तब बाबा बहुत दुखी हुए और उन्होंने प्रण लिया कि जब तक देश को आजादी नहीं मिलती वह काले कपड़े ही धारण करेंगे। यह प्रण उन्होंने मरते दम तक नहीं तोड़ा। 1943 में 15 अक्टूबर को आजादी का सपना पूरा होने से पहले ही उनका निधन हो गया था। तब भी उनके बदन पर काले कपड़े ही थे। उनके प्रण को ध्यान में रखते हुए उन्हें कफन भी काला ही दिया गया था।
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डाक टिकट भी हो चुका जारी
बाबा के सम्मान में 23 अप्रैल, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ज्वालामुखी में हुए समारोह में 50 पैसे का डाक टिकट जारी किया था। डाडासीबा में राजकीय महाविद्यालय उनके नाम पर है।
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बाबा कांशी राम के मकान की मरम्मत के लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। अब सिर्फ भाषा एवं संस्कृति विभाग की ही मंजूरी का इंतजार है। वहां से स्वीकृति मिलते ही मरम्मत का काम शुरू कर दिया जाएगा।
-हर्ष पुरी, एक्सईएन, पीडब्ल्यूडी कोटला बेहड़।
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